फेफड़ों का कैंसर : लक्षण, प्रकार, चरण और इलाज | Lung Cancer In Hindi

क्या आप जानते हैं कि दुनिया में सबसे खतरनाक बीमारी कौन सी है? इस प्रश्न का उत्तर है कैंसर। एक ऐसी बीमारी जो केवल रोगी ही नहीं अपितु उसके पूरे परिवार का नाश कर देती है। कर्क रोग अर्थात कैंसर के कई प्रकार हैं – आँख का कैंसर, पित्त की थैली में कैंसर, पेशाब की थैली में कैंसर, स्तन कैंसर, अग्नाशय कैंसर, किडनी कैंसर, बोन मैरो कैंसर, अपेंडिक्स कैंसर इत्यादि। इन सभी कैंसर में फेफड़ों का कर्क रोग सबसे घातक कैंसर की श्रेणी में आता है।

फेफड़ों का कैंसर जिसे लंग कैंसर भी कहते हैं, दुनिया की सबसे खतरनाक बिमारी है। इसका एक कारण यह भी है कि जब यह बीमारी अपने प्रारम्भिक स्तर में होती है तब इसका पता लगा पाना कठिन होता है। जब तक मरीज में इस रोग के लक्षण पता चलते हैं तब तक यह व्यापक स्तर पर फ़ैल चुका होता है।

इस लेख के माध्यम से पाठकों को फेफड़ों के कैंसर, उसके प्रकार, लक्षण, चरण, मेडिकल इलाज तथा कैंसर सम्बन्धी जाँच, सर्वाइवल रेट, इलाज में लगाने वाले समय, मेडिकल निदान के दुष्प्रभाव और निष्कर्ष को सरल-सहज भाषा में प्रस्तुत किया गया है।

कर्क रोग क्या है?

फेफड़ों के कैंसर के लक्षण

संसार की सबसे विनाशकारी बीमारी फेफड़ों के कर्क रोग की वृहत्तर जानकारी लेने से पूर्व हमें कर्क रोग अर्थात कैंसर को जान लेना चाहिए। कर्क रोग अथवा कैंसर एक प्राणघातक बीमारी है। यह किसी रोगी में तब निर्मित होती है जब अनियंत्रित कोशिकाएं अथवा सेल असामान्य रूप से अपना विस्तार करने लगती हैं। दुनिया में सबसे खतरनाक बीमारी का खिताब ग्रहण करने वाली कैंसर मृत्यु के कारणों की सूची में शीर्ष पायदान पर स्थापित है। इसका नामकरण इस बात पर निर्भर करता है कि यह शरीर के किस अंग से जन्म लेती है तथा अपना व्यापक विस्तार करती है। जैसा की इस लेख के प्रारंभिक परिचय के माध्यम से आप यह जान चुके हैं कि कैंसर कई प्रकार के होते होते हैं – आँख का कैंसर, पित्त की थैली में कैंसर, किडनी कैंसर, अग्नाशय कैंसर, स्तन कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, पेशाब की थैली में कैंसर आदि। अब जान लेते हैं कि फेफड़ों का कैंसर क्या होता है तथा लेख के बढ़ते क्रम में हम इसके लक्षण के बारे में चर्चा करेंगें।

 फेफड़ों का कैंसर

लंग कैंसर को फेफड़ों का कैंसर अथवा फेफड़ों का कर्क रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार के कैंसर में रोगी के फेफड़ों में गाँठ बन जाती है। इस कैंसर पूर्व अर्थात कर्क रोग होने से पहले यह गांठ शरीर में निर्मित होती है। फेफड़ों में बानी इस गाँठ को मेटास्टेटिक ट्यूमर कहते हैं। मरीज के फेफड़ों में पायी जाने वाली यह ट्यूमर निरंतर अपना सतत विकास करती है। फिर एक ट्यूमर से अनेक ट्यूमर का जन्म होता। तीव्र व्यापक विस्तार की प्रक्रिया के माध्यम से ट्यूमर पूरे शरीर में फ़ैल जाता है।
जिस प्रकार हमारी प्रकृति का सबसे सूक्ष्म जीव अमीबा स्वविभाजन कर अपनी संख्या को असंख्य गुना बढ़ा लेता है ठीक उसी प्रकार कर्क रोग की यह गांठ उर्फ़ ट्यूमर भी विभाजन की सहायता से अपना संख्या बल बढ़ा लेती है। यह गांठ इतनी शक्तिशाली और सामर्थ्यवान होती है कि रोगी के शरीर में यह प्रतिदिन-प्रतिपल श्रीवृद्धि करती है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि फेफड़ों में बनने वाली यह गांठे केवल छाती तक सीमित नहीं रहती अपितु यह रोगी के शरीर में फेफड़ों के अतिरेक अन्य अंगों में भी व्यापक विस्तार करती है। अनियंत्रित तरीके से बढ़ना ही इनका एकमात्र लक्ष्य होता है।

आंकड़े क्या कहते हैं?

संसार सकल में फेफड़ों के कैंसर को सबसे आम कैंसर की श्रेणी में रखा जाता है। हालिया समय में सर्वाधिक मामले सामने आये हैं। विश्व में प्रतिवर्ष फेफड़ों के कर्क रोग के कुल 20 लाख नए मामले देखने को मिले हैं। केवल भारत में प्रतिवर्ष 63000 से अधिक लोगों का मृत्यु का कारण फेफड़ों के कैंसर है।

फेफड़ों के कैंसर के प्रकार

फेफड़ों का कैंसर के दो प्रकार का होते हैं जिनका वृहद उल्लेख निम्न स्वरूप है :

  1. नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर(NSCLC)  : फेफड़ों के कर्क रोग से जूझ रहे कुल सभी रोगियों में से अधिकांश रोगी NSCLC से पीड़ित हैं। इस श्रेणी में आने वाले फेफड़ों के कर्क रोग के अंतर्गत मेटास्टेटिक ट्यूमर अर्थात गांठ का निर्माण एक धीमी प्रक्रिया होती है। NSCLC के तीन तरह के होते हैं। उनका सामान्य और सूक्ष्म परिचय निम्न प्रकार है :
    • एडेनोकार्सिनोमा(Adenecarcinoma) : यह केवल फेफड़ों के परिधि को ही प्रभावित करता है।
    • स्कैमर्स सेल कार्सिनोमा(Squamous Cell Carcinoma) : ब्रोंकस अर्थात श्वास नली और फेफड़ों के बीच में पाया जाने वाला लंग कैंसर।
    • लार्ज सेल कार्सिनोमा(Large Cell Carcinoma) : यह NSCLC का वह प्रकार है जो अन्य दो की तुलना में तीव्र प्रक्रिया के माध्यम से फैलने का सामर्थ्य रखता है।

स्मॉल सेल लंग कैंसर(Small Cell Lung Cancer) : NSCLC की तुलना में स्मॉल सेल लंग कैंसर होने की संभावना या इससे पीड़ित रोगियों की संख्या बहुत कम है। लेकिन इसका उपचार अत्यंत कठिन है क्योंकि रोगी के फेफड़े में निर्मित इस प्रकार का कर्क रोग फेफड़े के बाहर भी अपना व्यापक विस्तार करता है।

कुछेक सामान्य लक्षण

जैसा की इस लेख के प्रारम्भ में ही उल्लेखित किया गया है कि फेफड़ों के कैंसर के लक्षण दिखाई नहीं देते। कैंसर का उपचार करने वाले अधिकांश डॉक्टरों का यह स्पष्ट रूप से मत है कि इस रोग के लक्षण का पहचान अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती है। इसका कारण यह है कि अगर किसी मरीज के फेफड़ों में कर्क रोग हो भी गया हो तो भी इस रोग के लक्षण प्रत्यक्ष रूप से दृष्टद्रव्य नहीं होते अर्थात सीधे तौर पर मरीज में इसके लक्षण दिखाई नहीं देते। मरीज के फेफड़ों में कैंसर है या नहीं इसका पता लगाने के लिए कई प्रकार की जांच करवाई जाती है और फिर उन जांच रिपोर्ट के आधार पर ही कैंसर का पता चलता है।

लेकिन फेफड़ों के कर्क रोग के सामान्य लक्षणों को डाक्टरों तथा शोधकर्ताओं ने अवश्य रूप से परिभाषित किया है। निम्न लक्षणों के दिखने पर इस रोग की पहचान हो सकती है : 

  • लगातार खांसी : फेफड़ों के कैंसर का पहला सामान्य लक्षण लगातार खांसी आना है। अगर मरीज को असामान्य रूप से आने वाली खांसी अपने तीन सप्ताह की सामान्य परिधि से जब बाहर हो जाए तो यह फेफड़ों के कर्क रोग का पहला लक्षण है।
  • सांस फूलना : फेफड़े के कैंसर के लक्षण के रूप में सांस फूलने को डिस्पनिया कहते हैं। आम तौर पर सांस फूलना निमोनिया और अस्थमा का लक्षण है किन्तु ऐसा अमूमन देखा गया है कि रोगी ने खांसते समय अथवा खांसी के अलावा सांस फूलने की भी शिकायत रहती है। ऐसा भी देखा गया है कि रोगी को श्वास लेने में समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
  • कंधे में दर्द : छाती के अतिरेक रोगी को कंधे में भी दर्द का सामना करना पड़ सकता है।
  • सिर दर्द : जब फेफड़े में निर्मित कैंसर की अनियंत्रित कोशिकाएं तीव विस्तार प्रक्रिया के माध्यम से मष्तिष्क में स्थापत्य हो तो सर दर्द की समस्या प्रमुख लक्षण के रूप में देखि जाती है। 
  • छाती में दर्द : फेफड़ों के कैंसर के सामान्य लक्षणों में एक लक्षण मरीज की छाती में दर्द होना भी सम्मलित है।
  • छाती में लगातार संक्रमण : तीन सप्ताह से अधिक समय बीत जाने पर लगातार खांसी के साथ-साथ अगर छाती का संक्रमण भी बना हुआ तो यह भी इसके लक्षण के रूप में गिना जाता है। बार-बार उपचार करने पर भी अगर तीन सप्ताह से अधिक छाती में संक्रमण है तो निश्चित ही यह चिंता का विषय है।
  • खांसी में खून : अगर मरीज को खांसी आने पर खून भी निकल रहा है तो यह कैंसर होने की संभावना की ओर इंगित करता है। इसे हीमोप्टाइसिस भी कहते हैं।
  • कर्कशता : इस लक्षण के अंतर्गत मरीज के आवाज़ की गुणवत्ता में असामन्य परिवर्तन परिलक्षित होता है। गला बैठ जाना, बात करने में समस्या आना, खिचखिच की समस्या देखने को मिलती है।
  • घरघराहट : श्वास लेते समय बहुत मोटी ध्वनि का निकलना ही घरघराहट है।

इनके अतिरिक्त कुछ रोगियों में ऐसे भी लक्षण देखे गए हैं : 

  • सुपीरियर वेना कावा सिंड्रोम(Superior Vena Cava Syndrome) : इस लक्षण के दृष्टद्रव्य होने से रोगी के मुख, भुजा, गर्दन और छाती पर सूजन आ जाती है। सुपीरियर वेना कावा नस में आंशिक या पूर्णकालिक अवरोध के परिणामस्वरूप यह सिंड्रोम रोगियों में पाया जाता है।
  • थकान : शरीर में अनावश्यक थकान की अनुभूति होना।
  • वजन घटना : अचानक से शरीर में अनावश्यक, अकारण  वजन घटना। हालांकि डॉक्टरों के अनुसार ऐसा होने के पीछे का असल कारण कैंसर की अनियंत्रित कोशिकाओं द्वारा रोगी का आहार ग्रहण कर लेना बताया है।
  • अल्प आहार : इस लक्षण के कारण रोगी को भूख कम लगती है।
  • खाने में समस्या : ऐसा भी अमूमन देखा गया है कि रोगी को खाना खाने में समस्या पैदा होती है अर्थात उसे खाना निगलने में समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • जोड़ों में दर्द : फेफड़ों के कैंसर में होने वाले इस लक्षण का कारण स्पष्ट नहीं है किन्तु यह सत्य कि मरीजों के जोड़ों में दर्द भी देखने को मिलता है।

चिंताजनक बात यह है कि फेफड़े के कैंसर के रोगी में दिखने वाले ये लक्षण टीबी की बीमारी के लक्षणों से मेल खाते हैं। ऐसे में इन लक्षणों के आधार पर किसी निष्कर्ष पर आना डॉक्टरों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। जब दो अलग-अलग बीमारियों के एक ही लक्षण हो तो भ्रम के कारण गलत उपचार होना स्वाभाविक बात है। फेफड़े के कर्क रोग और टीबी के लक्षण एक जैसे दिखने के कारण यह पता लगा पाना कठिन हो जाता है कि रोगी को लंग कैंसर है या टीबी? मेडिकल साइंस की इस विशेष तथा गंभीर समस्या के कारण ऐसा अनेकों बार हुआ है जब कई वर्षों तक टीबी का इलाज चलने के पश्चात सुधार होने के स्थान पर तबियत नासिर हो जाती है। ऐसी परिस्तिथि में ही  यह पता लगटा है की रोगी को टीबी नहीं अपितु फेफड़े का कैंसर है।

एक और बात जो हमें ध्यान में रखनी चाहिए की इन लक्षणों के आधार पर कोई चिकित्सक या परामर्श इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सकता की रोगी को फेफड़ों के कैंसर हुआ है। अगर यह लक्षण तीन सप्ताह से अधिक देखने को मिलें तो ही डॉक्टर की सलाह पर इलाज प्रारम्भ करें।

फेफड़ों के कैंसर के विभिन्न कारण

रोगी के शरीर में कोशिकाओं के कारण होने वाले अनियंत्रित परिवर्तन के चलते फेफड़ों का कैंसर न केवल निर्मित होता है अपितु वह तीव्र प्रक्रिया के माध्यम से व्यापक विस्तार भी करता है। जिस प्रकार से कैंसर का इतिहास रहा है, चिकित्सकों के लिए यह पता लगा पाना हमेशा जटिल कार्य रहा की कैंसर किन कारणों से होता है। लेकिन समय के बढ़ते क्रम में जब विज्ञान ने प्रगति की और औद्योगिक नवाचार अपने पूर्ण रूप में आया तो कैंसर के विभिन्न कारणों का पता लगा। आइए फेफड़ों के कैंसर के कारणों को विधिवत पढ़ कर समझने का प्रयास करें : 

  • धूम्रपान : फेफड़ों के कैंसर का सबसे प्रमुख कारण है धूम्रपान। सिगरेट, बीड़ी या तम्बाकू पदार्थों के धुंए से कर्क रोग होने की संभावना सर्वाधिक रहती है। हालांकि आज कल के सिगरेट में अत्याधुनिक फ़िल्टर के प्रयोग से फेफड़ों में धुंआ जाने की संभावना काम रहती है किन्तु यह फिर भी फेफड़ो को कर्क रोग से सुरक्षित नहीं करता।
  •  सिगरेट का धुंआ : यह भी ध्यान देने योग्य बात है की जो लोग सिगरेट नहीं पीते उन्हें भी फेफड़ों के कर्क रोग हो सकता है। असल में एक व्यक्ति जो धूम्रपान नहीं करता, जब वह ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह से घिरा हो जो धूम्रपान करते हैं तो अप्रत्यक्ष रूप से वह सिगरेट के धुएं का सेवन कर रहा होता है। ख़तरा तो इस बात का भी है जो सिगरेट का धुंआ सिगरेट ना पीने वाले के फेफड़ों में जा रहा है वह बिना किसी फ़िल्टर के उसके फेफड़ों तक पहुँच रहा है।
  • प्रदूषण : फैक्ट्री, गाड़ी, किसी प्रकार के रसायन से निर्मित धुंआ मनुष्य के फेफड़ों के लिए अत्यंत हानिकारक है। इसके सेवन से फेफड़े के कर्क होने की संभावना में बहुत अधिक वृद्धि हो जाती है.
  • पारिवारिक इतिहास : अगर रोगी के परिवार में फेफड़े के कर्क का इतिहास रह चूका है अर्थात पहले की पीढ़ियों में किसी को फेफड़े का कर्क रोग हुआ है तो ऐसे में आने वाली पीढ़ी को भी यह रोग हो सकता है।

फेफड़ों के कैंसर के विभिन्न चरण

वह सभी व्यक्ति जो फेफड़े के कर्क रोग से पीड़ित है उनका इलाज अथवा मेडिकल निराकरण एकसमान नहीं होता। किसी भी फेफड़े के कैंसर से पीड़ित रोगी का इलाज अन्य व्यक्ति से बिलकुल अलग हो सकता है। रोग का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि रोगी का कैंसर किस चरण में है। मेडिकल साइंस की भाषा में कैंसर के चरण को स्टेज कहते हैं। इन सभी स्टेज में नीचे से ऊपर जाने पर कैंसर पीड़ित के जीवित रहने की संभावना बहुत कम रह जाती है। आइए हम क्रमानुसार इन सभी स्टेज को समझने का प्रयास करें : 

  • शून्य स्तर(Stage Zero) : जैसा कि हम नाम से समझ पा रहे हैं कि यह फेफड़े के कैंसर का सबसे प्रारंभिक स्तर है। अगर कोई रोगी इस स्तर पर है तो घबराने की बात नहीं है। इस स्तर पर कैंसर फेफड़ों तक अपना अधिपत्य नहीं बना पाता अपितु वह श्वास नली तक सीमित रहता है।
  • प्रथम चरण(Stage 1) : भले ही यह प्रारंभिक चरण हो किन्तु इस चरण में रोगी की चिंता योग्य स्थिति बनी रहती है। हालांकि इस चरण में कर्क रोग फेफड़े के बाहर विस्तार नहीं कर पाता लेकिन फेफड़ों में वह अपनी जगह बना लेता है।
  • द्वितीय चरण(Stage 2) : इस चरण में भी कर्क रोग केवल रोगी के फेफड़े तक सीमित है लेकिन पहले चरण की तुलना में वह अब अधिक शक्तिशाली हो चला है। द्वितीय चरण में फेफड़े का कर्क रोग फेफड़े में अपने साम्राज्य का व्यापक रूप से विस्तार कर रहा है। फेफड़े और आंतरिक लिम्फ नोड्स में उसके अनियंत्रित  कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि हो चुकी है।
  • तृतीय चरण(Stage 3) : जैसा की हमने लेख के इस भाग में उल्लेखित किया था कि फेफड़े के कर्क रोग के सभी स्टेज में नीचे से ऊपर जाने पर कैंसर पीड़ित के जीवित रहने की संभावना बहुत कम रह जाती है। इस चरण में विकसित कैंसर कोशिकाएं नोड्स से बाहर निकल कर सम्पूर्ण छाती में अपना विस्तार तीव्र गति प्रक्रिया के माध्यम से कर रही हैं। इस चरण को प्राणघातक चरण भी कहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस चरण में रोगी के जीवन पर संकट के बादल मंडराने लगते हैं।
  • चतुर्थ चरण अथवा अंतिम चरण(Stage 4 or Final Stage) : इस चरण को विनाशकारी चरण के नाम से भी जाना जाता है। अगर किसी रोगी के फेफड़ों का कैंसर इस चरण में है तो निश्चित जीवित रहने की संभावना ना के बराबर रहती है। इस चरण में रोगी के फेफड़ों में निर्मित कैंसर अब पूरे शरीर में फ़ैल चुका है।

किस चरण में क्या उपचार होगा यह चिकित्सक द्वारा परामर्श और जांच रिपोर्ट तय करती है। हर अगले स्तर पर रोगी की बीमारी में संकट बढ़ता ही चला जाता है।

फेफड़ों के कैंसर का निदान

जैसा की लेख के पहले भाग में उल्लेखित है की  कर्क रोग के लक्षण को पहचान पाना अत्यंत कठिन होता है। कैंसर के लक्षण टीबी के लक्षण से शाट प्रतिशत मिलते-जुलते हैं। इसलिए चिकित्सक द्वारा यह प्रयास रहता है की बहुचरणीय जांच के माध्यम से ही कैंसर होने के निष्कर्ष पर पहुंचा जाए।

सर्वप्रथम रोगी के फेड़ों में कैंसर है या नहीं इसका पता लगाने के लिए कुछ जांच की आवयश्कता होती है जो की निम्न प्रकार है : 

  1. रक्त परीक्षण : इस जांच के माध्यम से चिकित्सक यह जानने में समर्थ हो पाते हैं कि कैंसर शरीर के बाकी के हिस्सों में पहुंचा या नहीं।
  2. छाती का एक्स रे : हालांकि प्रारम्भिक स्तर पर यह नहीं किया जाता क्योंकि आरंभिक चरणों में कैंसर की कोशिकाओं को एक्स रे में देख पाना असंभव है। लेकिन अगर ऊपर की चरणों में कोशिकाओं को देखना हो तो यह कारगर होती है।
  3. सिटी स्कैन : रोगी की काया में कैंसर विस्तारित हुआ या नहीं इसकी सटीक रिपोर्ट सिटी स्कैन द्वारा संभव हो पाती है।
  4. बायोप्सी : फेफड़े के भीतर वास्तविक कैंसर परिस्तिथि को देखने के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। रोग के उपचार के लिए सबसे कारगर चिकित्सा पद्धति है। इस परीक्षण के अंतर्गत रोगी के अनियंत्रित तथा असामान्य रूप से बढ़ने वाली सेल या ऊतक को नमूने के रूप में चिकित्सक द्वारा लिया जाता है। नमूने हेतु शरीर के किसी भी अंग (त्वचा, गुर्दा, फेफड़े आदि) से ऊतक लिया जाता है। इस पद्धति के माध्यम से कैंसर के चरण का पता लगा पाना असंभव है किन्तु कर्क रोग ने शरीर में कितने प्रतिशत हिस्से तक विस्तार किया है। बायोप्सी पूर्व कुछ बातें ध्यान में रखनी होती है :
    • अगर कोई अन्य बीमारी रोगी को है तो उससे संबंधित दवाइयों का विवरण डॉक्टर को पता होना चाहिए।
    • रोगी के स्वास्थ्य सम्बंधित सभी जानकारियों को इकठ्ठा किया जाता है 
    • अगर रोगी एक गर्भवती महिला है तो उस परिस्थिति में विशेष तैयारियां की जाती हैं।

बायोप्सी सभी कर्क रोगियों के लिए एक समान नहीं होती अपितु रोग के प्रकार के अनुसार बायोप्सी की जाती है। बायोप्सी परीक्षण का नामकरण भी इसी आधार पर किया है। उदाहरण स्वरूप प्रोस्टेट बायोप्सी, लीवर बायोप्सी, स्तन बायोप्सी आदि। चूंकि बायोप्सी में ऊतक निकालना अनिवार्य होता है इसलिए मरीज को एनेस्थीसिया के माध्यम से क्षुधा की अवस्था में ले जाया जाता है। इस अवस्था में बायोप्सी करना चिकित्सकों के लिए अत्यंत आसान हो जाता है।

क्या इलाज संभव है?

मेडिकल साइंस ने इतनी तेजी से विकास किया है कि आज कैंसर के सभी प्रकारों का उपचार उपलब्ध है। इस दिशा में मानव जाती को एक नया जीवनदान देने का काम डॉक्टरों और शोधकर्ताओं द्वारा संभव हुआ है। अन्य सभी रोगों की तरह फेफड़े के कर्क रोग का उपचार भी उपलब्ध है। लेकिन इसके उपचार के अनेक तरीके हैं जिसके बारे में हमें जान लेना चाहिए :

  • सर्जरी : अगर रोगी के शरीर में ट्यूमर की संख्या केवल एक है तो इसे निकाला जा सकता है। यह ठीक वैसे ही जैसे अगर कोई फोड़ा या फुंसी बड़ा हो जाए तो हम उसे फोड़ देते हैं। सर्जरी में भी ट्यूमर को शरीर से अलग कर दिया जाता है। सर्जरी की इस प्रक्रिया को थोरैकोटॉमी कहते हैं।
  • रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन : इसका सूक्ष्म नाम RFA है। NSCLC कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए एक ऐसी तरंगों को प्रयोग में लाया जाता है जो कोशिकाओं को गर्म करके समाप्त कर देते हैं।
  • विकिरण चिकित्सा : रेडिएशन या विकरण प्रबल ऊर्जाओं के माध्यम से कोशिकाओं को नष्ट कर दिया जाता है।
  • कीमोथेरेपी : फेफड़ों के कर्क रोग में यह एक ऐसी पद्धति है जो या तो एकल या किसी अन्य चिकित्सा पद्धति के माध्यम से रोगी के भीतर कोशिकाओं को समाप्त कर देती है। चूंकि कीमो में उन सभी कोशिकाओं को नष्ट कर दिया जाता जो असामान्य रूप से वृद्धि कर रही होती हैं इसलिए इसके दुष्प्रभाव में मरीज के बाल झड़ जाते हैं।
  • टार्गेटेड मेडिकेशन : यह ड्रग थेरेपी के नाम से भी जानी जाती है। कुछ रोगियों में कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि नए तरह से विकसित होती है। ऐसे में ये दवाइयां उन कोशिकाओं के बढ़ने की प्रक्रिया को शून्य पर ला देती हैं।
  • इम्यूनोथेरेपी : हमारे शरीर की संरचना कुछ इस प्रकार से है कि अगर हमें कोई रोग हो जाए तो हमारे भीतर की तंत्र प्रणाली इसे समाप्त कर देती है। लेकिन कैंसर ऐसा होने नहीं देता। दरअसल वह शरीर को भ्रम में दाल देता है रोगी स्वास्थ्य है और रोगी की खुराक चुरा कर स्वयं का विकास करता रहता है।

सर्वाइवल रेट

अगर फेफड़ों के कैंसर के लक्षण प्रारम्भिक चरण में मिल चुके हैं तथा समय पर निदान की प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी है तो निश्चित ही रोगी की देह से कर्क रोग दूर हो जाता है। लेकिन इसके लक्षण सीधे तौर पर नहीं दिखते इसलिए इलाज भी समय पर नहीं हो पाता है। अगर तीसरे या अंतिम चरण में इसका इलाज शुरू किया जाए तो मरीज के जीने की संभावना ना के बराबर रहती है।

निराकरण के दुष्प्रभाव

यह ध्यान देने योग्य बात है कि अगर कोई रोगी कर्क रोग का उपचार करा रहा है तो निश्चित उपचार से उस पर कुछ प्रभाव अवश्य रूप से होगा। दुष्प्रभाव कैसे होंगे यह उपचार की पद्धति पर निर्भर करता है। कर्क रोग के उपचार के दुष्प्रभाव इस प्रकार हैं : 

  • कीमोथेरेपी : बार-बार उल्टी होना या उसकी अनुभूति होना, बाल झड़ना, अनावश्यक थकान, चक्कर, मुंह में छले और दस्त लगना।
  • इम्यूनोथेरेपी : चक्कर आना, दस्त लगना, खुजली, उल्टी, जोड़े में दर्द आदि।
  • रेडिएशन : दम घुटना, चक्कर आना, खाना निगलने में समस्या आना आदि।
  • सर्जरी : दम घुटना, चक्कर आना, सीने में दर्द आदि।

निष्कर्ष

फेफड़ों का कर्क रोग एक प्राणघातक रोग है। अगर समय रहते लक्षणों का पता न चले तथा सही समय पर उपचार न हो तो रोगी के जीवित रहने की आशा भी समाप्त हो जाती है। केवल रोगी की मृत्यु नहीं होती अपितु उसके परिवार तथा आस-पास की अनेक ज़िन्दगी तबाह हो जाती हैं। इसका इलाज भी महंगा है। ऐसे में किसी मनुष्य का हार मान लेना स्वाभाविक है। लेकिन इम्पैक्ट गुरु हारे का सहारा है। आपके परिवार की खुशियों को वापिस लौटाने के लिए और रोगी को स्वस्थ करने के लिए हम इलाज का पैसा जुटाते हैं।

निर्धन होना अपराध नहीं लेकिन हार मान गलत बात है। अगर आप या आपके जान पहचान में ऐसा कोई है जिसे उपचार के लिए धन जुटाने में समस्या आ रही है तो क्राउडफंडिंग एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

कैंसर का इलाज अक्सर महंगा हो सकता है। ऐसे मामलों में, इम्पैक्ट गुरु जैसी वेबसाइट पर क्राउडफंडिंग कैंसर के इलाज के लिए धन जुटाने का एक शानदार तरीका हो सकता है।

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