अपने गाँव, कस्बे या शहर में आपने कभी न कभी सुना होगा की फलाने को लकवा मार दिया है। जब प्रथम दृष्टया मरीज से भेंट होती है तो पता चलता है कि उनके शरीर का कोई अंग सुन्न हो गया है। लकवाग्रस्त मरीज के सोचने समझने की क्षमता कम हो जाती है। मुख में सूजन भी देखने को मिलती है। गंभीर और घातक बीमारी होने के अतिरिक्त यह एक आम समस्या भी है। ऐसे में लकवा क्या होता है और लकवा कैसे होता है जैसे प्रश्नों ने आपके मन को भीतर से अवश्य झकझोर दिया होगा।
ये बड़ी ही घातक और गंभीर बिमारी है जो केवल भारत की नहीं अपितु सकल संसार में एक चिंताजनक विषय बन चुका है। इसलिए लकवा को वैश्विक समस्या के तौर पर चिन्हित किया गया है। कुल मिलाकर एक यह एक ऐसी समस्या है जो अपने अंतिम रूप को प्राप्त कर ले तो मरीज का जीवन कष्टकारी हो जाता है। उसके जीवन में दुखों का पहाड़ खड़ा हो जाता है। केवल रोगी ही नहीं बल्कि उसका परिवार भी इस संकट काल में आजीवन निर्वाह करता है। इसलिए इस घातक बीमारी के गंभीर और अंतिम स्तर पर पहुँचने से पहले उसके बारे में सही और पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि लकवा का इलाज से इस बीमारी को जड़ से मिटाया जा सके।
जागरूकता और सतर्कता से ही मरीज को नया जीवनदान मिल सकता है तथा अनेकों लोगों का जीवन फिर से सुंदर बनाया जा सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए आज के इस लेख का विषय लकवा है। ये लेख पाठकों को सरल-सहज भाषा में उचित, उपयोगी और अहम जानकारी प्रदान करने के लक्ष्य से प्रेषित किया गया है।
आज के लेख में लकवा क्या होता है, लकवा कैसे होता है, लकवा क्यों होता है, लकवा के लक्षण, लकवा का इलाज और निष्कर्ष पर वृहत्तर प्रकाश डाला गया है।
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लकवा क्या होता है? (Paralysis Meaning in Hindi)

आइए जानें कि लकवा क्या होता है। लकवा का मतलब पक्षाघात होता है। इसकी मेडिकल टर्मिनोलॉजी ब्रेन स्ट्रोक है। इसे पैरालिसिस भी कहते हैं। खड़ी बोली हिंदी में इसे लकवा और शुद्ध हिंदी में इसे पक्षाघात भी कहते हैं। पैरालिसिस या पक्षाघात को जीवंत पर्यन्त रोग भी कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि पक्षाघात जीवन जीने के तरीके से जन्म लेता है और मरीज के शरीर में आजीवन निवास करती है। यह एक प्रकार की विकलांगता है जो उम्र के बढ़ते क्रम अर्थात वृद्धावस्था में ही होती है। उम्र की दहलीज पार कर लेने पर व्यक्ति की बीमारी से लड़ने की क्षमता(इम्म्यून सिस्टम) क्षीण होने लगती है जिस कारण ऐसी अनेक बीमारियां शरीर में निवास करने लगती हैं जो आगे चलकर पक्षाघात में रूपायित हो जाती हैं। लेकिन आधुनिक जीवनशैली और कसरत, व्यायाम की कमी ने युवाओं को भी इस बीमारी की चपेट में ले लिया है।चलिए अब विस्तार से समझें कि लकवा क्या होता है ताकि आमजन में इस घातक बीमारी के प्रति जागरूकता और सतर्कता दोनों हो सके। पक्षाघात के रोगी के शरीर का कोई विशेष हिस्सा अर्थात हाथ, पैर मुंह और आँख का हिस्सा काम करना बंद कर देता है। इससे यह भी पता चलता है कि पक्षाघात मांसपेशियों से जुड़ा रोग है। शरीर के एक हिस्से की मांसपेशियों की कार्यविधि अनिश्चित काल के लिए प्रभावित हो जाती है। इसलिए मरीज के शरीर का प्रभावित हिस्सा सुन्न हो जाता है। हालांकि इन सभी लक्षणों के अतिरिक्त मरीज में अन्य लक्षण भी देखने को मिलते हैं। लेख के बढ़ते क्रम में पक्षाघात के सभी लक्षणों पर विस्तार से चर्चा करने वाले हैं। चूंकि हमने यह जान लिया है कि लकवा क्या होता है इसलिए हम कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर को विधिवत खोजने वाले हैं।
लकवा कैसे होता है?
लकवा धीरे-धीरे होने वाली बीमारी नहीं है। यह एक दिन अचानक से विराट रूप लेता है। कुछ क्षण में ही यह मरीज को घातक बीमारी की सौगात दे देता है। हमारे शरीर का कोई भी अंग तभी कार्य करता है जब मस्तिष्क से नाड़ियों द्वारा मांसपेशियों को आदेशित किया जाए। मस्तिष्क से मांसपेशियों को संदेश प्राप्त होने के पश्चात ही अमुख अंग की गतिविधियां प्रतिफलित होती हैं। लेकिन लकवा में मस्तिष्क और मांसपेशियों के बीच संचार बाधित हो जाता है। इस कारण मस्तिष्क का मांसपेशियों पर कंट्रोल न के बराबर रह जाता है। परिणामस्वरुप शरीर का एक विशेष भाग काम करना बंद कर देता है। इस प्रभावित भाग या हिस्से के सुन्न हो जाने से उसमें दर्द की अनुभूति भी नहीं होती है। ऐसा भी कह सकते हैं कि शरीर के पक्षाघात प्रभावित भाग में कुछ भी महसूस नहीं होता।
लकवा होने पर मांसपेशियों में असहनीय पीड़ा तथा कमजोरी की शिकायत रहती है। इसके अतिरिक्त सिर दर्द, सांस लेने में समस्या और मुख से लार टपकने की भी शिकायत होती है। मुख के एक भाग में सूजन आना तथा कमजोर या निष्क्रियता का भाव होना भी पक्षाघात के मरीज में देखा गया है। लकवा के मरीज को नेत्र रोग संबंधी विकार के अंतर्गत देखने में समस्या भी होती है। साथ ही सुनने की क्षमता भी क्षीण हो जाती है। अगर पक्षाघात के मनोवैज्ञानिक प्रभाव का उल्लेख करें तो मूड स्विंग भी हो सकता है।
घातक और गंभीर बीमारी लकवा के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं :
- मोनोप्लेजिया : शरीर के किसी एक अंग की मांसपेशियां मस्तिष्क के कंट्रोल से बाहर होने के कारण निष्क्रिय या कमजोर में से कोई एक स्थिति में परिणत हो जाए तो अवस्था को मोनोप्लेजिया कहते हैं।
- हेमिप्लेजिया : शरीर का एक भाग लकवाग्रस्त हो जाए तब उस अवस्था को हेमिप्लेजिया कहते हैं। कंधे, हाथ, पैर आदि का एक भाग या हिस्सा ही पैरालिसिस का शिकार होता है।
- कार्डियोप्लेजिया : इस प्रकार का पक्षाघात केवल पैरों या हाथों में ही होता है।
- बेल्स पाल्सी : इसे मुख विकलांगता के नाम से भी जाना जाता है। इसमें व्यक्ति के मुंह का एक भाग लकवाग्रस्त हो जाता है।
लकवा क्यों होता है?
मस्तिष्क में रक्त का संचार करने वाली नस में थक्का बन जाने के कारण किसी व्यक्ति को लकवा हो जाता है। इसके अलावा रक्त का संचार करने वाली नस के फट जाने से भी पक्षाघात हो सकता है। हालांकि नस का फट जाना एक दुर्लभ कारण है और ऐसे मामले बहुत कम देखने को मिलते हैं। अधिकांश मामले नस में थक्का बनने के कारण पक्षाघात की बीमारी जन्म लेती है।
आइए क्रमानुसार जानें कि लकवा क्यों होता है :
- रीढ़ की हड्डी में छोट लगने के कारण : मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इसे स्पाइनल इंजरी भी कहते हैं। किसी प्रकार की दुर्घटना के कारण रीढ़ की हड्डी टूट जाए तो वह व्यक्ति लकवाग्रस्त हो सकता है। शरीर के किसी भी अंग की तरह रीढ़ का भी मस्तिष्क के साथ संबंध होता है। रीढ़ और मस्तिष्क के बीच अनेक नसें हैं जो इन दोनों को जोड़े रहती हैं। रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से ये नसे दब जाती हैं या किसी प्रकार से क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। आगे चलकर ये पक्षाघात का कारण बनती हैं।
- ब्रेन स्ट्रोक : रक्त के बाधित संचार से मस्तिष्क में स्ट्रोक हो जाता है। अधिकांश मामलों में ब्रेन स्ट्रोक के कारण व्यक्ति लकवाग्रस्त हो जाता है। ब्रेन स्ट्रोक में अमूमन खून का थक्का बन जाता है। रक्त की नस के फटने की संभावना बहुत कम होती है।
- धूम्रपान के कारण : सिगरेट, बीड़ी का धूम्रपान आर्थराइटिस और स्ट्रोक को जन्म देता है। इस कारण पैरालिसिस भी हो सकती है। बोलने में कठिनाई और सोचने समझने में परेशानी की समस्या भी देखने को मिलती है।
- पोलियो के कारण : अगर अतीत में पोलियो या किसी अन्य कारण से व्यक्ति अपंग हुआ है तो आगे चलकर यह पक्षाघात में रूपायित हो जाता है।
- कमजोरी और सुन्नता : शरीर के किसी एक भाग का बार-बार सुन्न हो जाना या कमजोर पड़ जाना भी पक्षाघात का कारण हो सकता है।
- ऑटो इम्यून बीमारी के कारण : गुलेन-बर्रे सिंड्रोम, मल्टीपल स्केलरोसिस, ऐंकीलूज़िंग स्पॉनडिलिटीज़, रहूमटॉइड आर्थराइटिस तथा अन्य ऑटो इम्यून बीमारियां व्यक्ति में पक्षाघात की बीमारी को जन्म दे सकती हैं। ये बीमारियां सीधे-सीधे नसों पर हमला करती हैं जिस कारण व्यक्ति में कमजोरी, थकान और पैरालिसिस हो जाती है।
- पार्किंसन की बीमारी : अगर मरीज को पार्किंसन की बीमारी है तो आगे चलकर ये पक्षाघात का रूप ले सकती है। मस्तिष्क में उपस्थित न्यूरॉन के क्षतिग्रस्त होने से पार्किंसन की बीमारी होती है।
- बेल्स पाल्सी : चेहरे में होने वाली पैरालिसिस या मुख विकलांगता जो पक्षाघात का मुख्य कारक है।
- उच्च रक्तचाप : इसे हाई ब्लड प्रेशर भी कहते हैं। जिन लोगों को हाई ब्लड प्रेशर की समस्या रहती है उन्हें पक्षाघात होने की संभावना बनी रहती है।
लकवा के लक्षण (Paralysis Symptoms In Hindi)
पक्षाघात के लक्षणों की पहचान बहुत आसानी से हो सकती है। दरअसल इस बीमारी के अधिकतर लक्षण आंतरिक नहीं है अर्थात शरीर में स्पष्ट रूप से दिख जाते हैं। ऐसे में इन लक्षणों की पहचान करना और भी अधिक आसान हो जाता है। इसलिए कोई भी साधारण मनुष्य अपने चित परिचित में लकवाग्रस्त मरीज में दिखने वाले लकवा के लक्षण को आसानी से पहचाना जा सकता है।
आइए जानें की लकवा के लक्षण क्या है :
- मांसपेशियों में दर्द : मांसपेशियों में होने वाली असहनीय पीड़ा या दर्द को लकवा के लक्षण के रूप में प्रमुख रूप से चिन्हित किया जाता है। मांसपेशियों में दर्द को मसल क्रैम्प भी कहते हैं। असहनीय पीड़ा के अतिरिक्त मांसपेशियों में ऐंठन अर्थात मांसपेशियों का कठोर हो जाना भी देखा गया है। मांसपेशियों में खिंचाव की अनुभूति होना भी पक्षाघात का संकेत है।
- मांसपेशियों में कमजोरी : इस परिस्थिति में लकवाग्रस्त मरीज की मांसपेशियों की शक्ति क्षीण हो जाती है। अगर विस्तार से समझें तो कमजोरी के कारण मांसपेशियां पहले की तुलना में उतनी तीव्रता से हिलडुल नहीं सकती तथा आवश्यकतानुसार सिकुड़न भी नहीं क्रियान्वित हो पाती।
- सोचने समझने की शक्ति क्षीण होना : किसी के द्वारा बोले गए शब्द या वाक्य समझने में कठिनाई होती है। मरीज को सरल वाक्य या शब्द बोलने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। वाक्यों या कथन के सीधे सरल अर्थ भी पक्षाघात के मरीज को आसानी से भ्रमित कर सकते हैं।
- पढ़ने-लिखने में समस्या : किसी भी प्रकार के लेखन कार्य या पठन में समस्या होती है। मस्तिष्क में रक्त संचार करने वाली नस में थक्का बन जाने के कारण व्यक्ति को पक्षाघात हो जाता है। मस्तिष्क ठीक से काम नहीं करने के लिए ऑक्सीजन युक्त रक्त की आवश्यकता होती है लेकिन खून का थक्का ऑक्सीजन युक्त रक्त को मस्तिष्क में जाने से बाधित करता है। परिणामस्वरूप मस्तिष्क ठीक से काम करना बंद कर देता है।
- नेत्र रोग : पक्षाघात के मरीज को मस्तिष्क में खून का थक्का बनने के कारण नेत्र से संबंधित रोग भी हो सकता है। ऐसे में उसे या तो धुंधला दिखाई देता है या फिर उसके आँखों की रोशनी भी जा सकती है।
- सुनाई नहीं देना : मस्तिष्क शरीर के सभी संगों का केंद्र बिंदु है। जिस प्रकार कंप्यूटर में अगर सीपीयू ही काम न करें तो बाकी सब बेकार है ठीक उसी प्रकार मस्तिष्क के काम न करने से बाकी सभी संग काम करना बंद कर देते हैं। इसलिए पक्षाघात में मरीज को सुनाई कम देता है या सुनाई ही नहीं देता।
- शरीर के एक भाग में सुन्नता : पक्षाघात की समस्या में मरीज के मस्तिष्क का मांसपेशियों पर कोई कंट्रोल नहीं रहता। इसलिए मस्तिष्क और मांसपेशियों के बीच संचार बाधित हो जाता है। कारणवश मांसपेशियां सुन्न और कमजोर हो जाती हैं। पक्षाघात या पैरालिसिस से प्रभावित एक भाग अर्थात हाथ, पैर, आँख में सुन्नता और कमजोरी आ जाती है।
- सिर में दर्द : मस्तिष्क में खून का थक्का बन जाने से एक असहनीय पीड़ा होने लगती है जिसे सिर दर्द कहते हैं। यह खून का थक्का रक्त संचार नस में निर्मित होता है जो दर्द का कारण बन जाता है। सिर में होने वाले तेज दर्द घंटों तक हो सकते हैं।
- चक्कर आना : कमजोरी और सुन्नता तथा मस्तिष्क के सोचने समझने की शक्ति का क्षीण होने के कारण चक्कर आना स्वाभाविक बात है। सिर चकराने की अनुभूति भी हो सकती है।
- लार गिरना : मस्तिष्क और मांसपेशियों में संचार बंद होने के कारण मुंह में बन रहे लार को नियंत्रित कर पाना कठिन हो जाता है। इसलिए पक्षाघात के मरीज के मुंह से लार बहती रहती है।
- श्वास की समस्या : पक्षाघात के मरीज को लम्बी सांस लेने में और श्वास जल्दी छोड़ने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
लकवा का इलाज
इस बीमारी में शरीर का एक अंग या एक भाग लकवाग्रस्त हो जाता है। निश्चित रूप से यह एक गंभीर बीमारी है। इस घातक बीमारी के परिणाम बढ़ से बदतर न होने पाए इसलिए मरीज को आवश्यक रूप से उपचार मिलना चाहिए। डॉक्टर से परामर्श और सही उपचार इसकी रोकथाम कर सकता है।
लेकिन मेडिकल उपचार के अलावा भी लकवा का इलाज किया जा सकता है। इस हेतु घरेलू उपचार या उपायों को अपनाकर मरीज पक्षाघात से मुक्ति मिल सकती है। हालांकि यह केवल सलाह है। कोई भी उपचार पद्धति अपनाने से पूर्व अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
पक्षाघात के घरेलू उपचार के अंतर्गत लकवा का इलाज निम्नलिखित हैं :
- मूली का तेल : मूली में फोलेट, आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम और विटामिन बी 6 जैसे पोषक तत्व होते हैं जो रक्त से संबंधित रोगों में रामबाण इलाज है। इसलिए मूली का तेल पैरालिसिस में बहुत लाभकारी होता है।
- लहसुन में है अमृत : ऑटो इम्यून या उससे जुड़ी बीमारियों में लहसुन का प्रयोग लाभकारी होता है क्योंकि लहसुन के सेवन से इम्यून ठीक होता है। साथ ही पक्षाघात का सबसे बढ़िया इलाज भी लहसुन में छिपा है। शहद में पिसी हुई लहसुन मिलाकर इसका सेवन करने से पक्षाघात ठीक हो जाता है।
- करेला पौष्टिक है : ब्लड प्रेशर और पैरालिसिस में पोटेशियम का सेवन बहुत लाभकारी है जो करेले में पाया जाता है। करेले को पोटेशियम का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है। करेले की सब्जी खाने से या करेले का रस पीने से पक्षाघात ठीक हो सकता है।
काली मिर्च : कोलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर, हृदय संबंधी रोगों और पक्षाघात के लिए काली मिर्च बहुत लाभकारी है। इसके पाउडर का शहद के साथ सेवन करने से या काली मिर्च का घी में निर्मित लेप प्रभावित अंग पर लगाने से भी पक्षाघात से मुक्ति मिल जाती है।
लकवा की रोकथाम / पक्षाघात की रोकथाम
पक्षाघात की रोकथाम के लिए मुख्य रूप से स्ट्रोक और दर्दनाक चोट जैसे सामान्य कारणों के जोखिम कारकों को प्रबंधित करना आवश्यक है। पक्षाघात का कारण बनने वाली स्थितियों के जोखिम को कम करने के लिए, संपूर्ण स्वास्थ्य को स्वस्थ को बनाए रखना और एक स्वस्थ जीवन शैली अपनाना आवश्यक है।
लकवा की रोकथाम के लिए रोकथाम रणनीति में शामिल हैं:
स्वस्थ आहार लेना
नियमित शारीरिक व्यायाम करना
नियमित चिकित्सा जाँच
तंबाकू और शराब का सेवन छोड़ना
सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करना और चोटों को रोकने के लिए सावधानी बरतना
पक्षाघात का कारण बनने वाली बीमारियों, जैसे पोलियो, के खिलाफ टीकाकरण करवाना
कुछ विशिष्ट स्थितियों से बचने के लिए, विशिष्ट उपाय भी करने ज़रूरी होते हैं जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह और एट्रियल फिब्रिलेशन के प्रबंधन से स्ट्रोक के जोखिम को कम किया जा सकता है। सुरक्षित ड्राइविंग करने से और सीट बेल्ट लगाने से कार दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है, जिससे रीढ़ की हड्डी की चोटों से बचना संभव है।
लकवा के लिए सर्वाइवल रेट और जीवन की गुणवत्ता
लकवा के लिए जीवित रहने की दर(सर्वाइवल रेट) और जीवन की गुणवत्ता, अंतर्निहित कारण, लकवा की सीमा और व्यक्ति के संपूर्ण स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। यदि हल्के स्ट्रोक के कारण होनेवाले पैरालायसिस की बात करें, तो उचित उपचार और पुनर्वास के बाद इसके लिए सर्वाइवल रेट में काफ़ी हद तक सुधार संभव है और जिससे अपेक्षाकृत सामान्य जीवन व्यतीत किया जा सकता है।
इसके विपरीत यदि व्यापक पक्षाघात, जैसे क्वाड्रिप्लेजिया की बात करें तो इसमें मुख्य रूप से श्वसन समस्याओं जैसी जटिलताओं के कारण अक्सर जीवित रहने की दर कम होती है। हालाँकि, हाल के दशकों में चिकित्सा देखभाल में सुधार होने से लकवा वाले लोगों के जीवित रहने की दर(सर्वाइवल रेट) और जीवन की गुणवत्ता में काफ़ी हद तक सुधार होते हुए देखा जा सकता है।
निष्कर्ष
पैरालायसिस या लखवा के कई प्रकार हो सकते हैं, और प्रत्येक की अपनी अलग विशेषता भी होती हैं, इसके अतिरिक्त इसके कारण भी विभिन्न हो सकते हैं। हालाँकि लकवा का सामना करना किसी चुनौती से कम नहीं है, लेकिन लकवा के लक्षणों की जानकारी होने से इसकी शुरूआती पहचान करने और समय पर उपचार प्राप्त करने में मदद मिल सकती है, जिससे सर्वाइवल रेट में भी सुधार संभव है। न्यूरोलॉजी और रिहैबिलिटेशन चिकित्सा के क्षेत्र में चल रहे रिसर्च और डेवलपमेंट के कारण, पैरालायसिस को प्रबंधित करना और इससे प्रभावित लोगों के जीवन में सुधार लाना, कई विकल्पों के उपयोग से संभव हो पा रहा है।
यदि आप में से किसी को भी लकवा या पैरालायसिस के लक्षणों का अनुभव होता है, तो तुरंत चिकित्सा सहायता लेना आवश्यक है, क्योंकि समय पर उपचार से प्रभावी परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
कई बार ख़ुद की सेविंग्स से इलाज के लिए पैसे जुटाना मुश्किल हो जाता है।
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