माइकोबैक्टेरियम ‘लैपी’ नामक जीवाणु के कारण होने वाला संक्रामक रोग कुष्ठ रोग कहलाता है। पूरी दुनिया में भारत उन देशों में से एक है जहाँ इस रोग के सर्वाधिक मामले देखने को मिलते हैं। किसी भी आयु वर्ग को अपनी चपेट में लेने वाली ये बीमारी संक्रमण से फैलती है। अभी भी एक बहुत बड़ी जनसंख्या ऐसी है जिसे इस बीमारी की सही और पूरी जानकारी नहीं है यानी लोगों को अधूरी और गलत जानकारी है। इसलिए इस लेख में गंभीर, जानलेवा रोग को बहुत आसान भाषा में समझाया गया है ताकि लोगों में जागरूकता फैले और इससे बचने के लिए वे सतर्क भी रहे। आज के इस लेख में कुष्ठ रोग क्या होता है, कुष्ठ रोग के प्रकार, कुष्ठ रोग के लक्षण, कुष्ठ रोग के कारण, कुष्ठ रोग का उपचार और निष्कर्ष पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
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कुष्ठ रोग क्या होता है? (What Is Leprosy In Hindi?)

जैसा कि विदित है कुष्ठ रोग एक विशेष प्रकार का संक्रामक रोग है। चूंकि ये माइकोबैक्टेरियम ‘लैपी’ नामक जीवाणु के कारण होता है इसलिए मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इसका नामकरण संक्रामक एजेंट लैपी के आधार पर लैप्रसी रखा गया है। चूंकि 1873 में हेनसेन नाम के वैज्ञानिक ने इस रोग पर शोध के पश्चात इसका एक अन्य नाम ‘हैनसेन डिजीज’ भी है। आम जनमानस में इसे ‘कोढ़’ भी कहते हैं। ये बीमारी त्वचा, आँख, परिधीय तंत्रिका, ऊपरी श्वसन पथ की श्लेष्मिका तथा अन्य अंगों में स्थान ग्रहण कर व्यक्ति को रोग ग्रसित करती है।
कुष्ठ रोग के प्रकार
आइए जानें कुष्ठ रोग के प्रकार जो कि निम्नलिखित है:
- ट्यूबरक्लोइड हैनसन डिजीज : कोढ़ का एक प्रकार जिसमें घाव कम होते हैं। यह गंभीर और जानलेवा तो बिलकुल भी नहीं है अपितु बहुत ही हल्का संक्रामक रोग है। इसमें रोगी का इम्यून सिस्टम बिलकुल भी प्रभावित नहीं होता।
- लेप्रोमेटस हैनसन डिजीज : कोढ़ का वह प्रकार जो त्वचा, तंत्रिकाओं, हड्डियों तथा अन्य अंगों को संक्रमण विस्तार के अंतर्गत क्षतिग्रस्त करता है। ट्यूबरक्लोइड की तुलना में लेप्रोमेटस अधिक संक्रामक है।
- बॉर्डर लाइन हैनसन डिजीज : इसका एक अन्य नाम बॉर्डर लाइन लैप्रसी भी है। इसमें होने वाले घाव ट्यूबरक्लोइड के समान ही होते हैं इसलिए इन दोनों प्रकार में अंतर कर पाना बहुत कठिन होता है। हालांकि बॉर्डर लाइन में घाव कम नहीं अपितु बहुत सारे होते हैं और इनका विस्तार पूरे शरीर में होता है।
- इंडिटर्माइन लैप्रसी : इसका एक अन्य नाम अनिश्चित कोढ़ भी है। नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि ये प्राथमिक चरण या प्राइमरी लेवल का कोढ़ है जिसमें घाव अर्थात सफेद चकत्ते बहुत कम होते हैं। ये चकत्ते आकार में बहुत छोटे होते हैं और इसका सफेद रंग भी बहुत हल्का होता है। इसका उपचार बहुत सानै से किया जा सकता है किंतु अगर इलाज नहीं किया जाए तो ये गंभीर बीमारी का रूप ले सकता है।
कुष्ठ रोग के लक्षण (Leprosy Symptoms In Hindi)
अन्य संक्रामक रोग की तरह कोढ़ या कुष्ठ रोग का मानव शरीर में व्यापक विस्तार शीघ्र प्रक्रिया के माध्यम से नहीं होता अपितु यह धीमे-धीमे शरीर में फैलता है। इसलिए संक्रमित व्यक्ति के शरीर द्वारा लक्षण को प्रदर्शित करने में 5 साल का समय लग सकता है।
आइए विस्तार से जानें कुष्ठ रोग के लक्षण जो कि निम्नलिखित हैं:
- सफेद चकत्ते : संक्रमित व्यक्ति के शरीर में सफेद रंग के चकत्ते हो जाते हैं। संक्रामक रोग का ऐसा कोई भी प्रकार जिसमें शरीर पर चकत्ते पड़ते हैं, असहनीय पीड़ा या दर्द की शिकायत रहती है। लेकिन कोढ़ में होने वाले सफेद चकत्ते प्रवृत्ति के अनुसार सुन्न या सेंसलेस होते हैं। यानी इसमें नुकीली वस्तु चुभोने पर भी कोई दर्द नहीं होता। प्रारंभिक अवस्था में ये चकत्ते शरीर के किसी एक अंग तक सीमित रहते हैं और अगर उपचार नहीं किया जाए तो पूरे शरीर में फैल जाते हैं।
- त्वचा मृत हो जाती है : मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इसे डेड टिश्यू कहते हैं। संक्रमित व्यक्ति की त्वचा सुन्न या सेंसलेस हो जाती है जिसका अर्थ यह हुआ कि उसे ठंड, गर्मी या किसी भी प्रकार की पीड़ा अथवा कष्ट की अनुभूति नहीं होती। अगर व्यक्ति को चोट लग जाए या चोटिल हो जाए तो भी उसे दर्द नहीं होता। बल्कि दुर्घटना होने पर भी व्यक्ति को किसी प्रकार के पीड़ा का पता नहीं चलता। दरअसल त्वचा की कोशिका मृत हो जाती है इसलिए सेन्स जो कि उसका प्रमुख कार्य है, उसे कर पाने में पूर्ण रूप से असमर्थ होती है।
- अंगों का टेढ़ापन : संक्रमण फैलने के चलते शरीर के अंग भी प्रभावित होते हैं। संक्रमित व्यक्ति के अंग जिनमें सफेद चकत्ते हो जाते हैं, उनकी संरचना विशेष रूप से प्रभावित हो जाती है। उनका स्वरूप ही पूर्ण रूप से परिवर्तित हो जाता है। हाथ की उंगलियां अपने सामान्य संरचना के विपरीत कोण बनाते हुए टेढ़े हो जाते हैं।
- लचीलेपन का लोप : चूंकि कोढ़ होने पर व्यक्ति के अंग(विशेष रूप से उसकी उंगलियां) अपनी संरचना के विपरीत टेढ़ी हो जाती हैं तो ऐसे में उनके प्रमुख कार्य जैसे हिलना-डुलना, पकड़ बनाना आदि प्रभावित हो जाते हैं। अर्थात वे अपना कार्य करने में असमर्थ रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप अंगों के लचीलेपन का लोप हो जाता है।
- पलकें झपकाने में कठिनाई : जैसा कि विदित है इस संक्रामक रोग का जीवाणु टिश्यू या कोशिकाओं को सुन्न या सेंसलेस बना देता है। मस्तिष्क भले ही अंगों को संकेत या सिग्नल्स भेजता है लेकिन वो सिग्नल्स उस तक पहुंच नहीं पाते और इस कारण पलकें अपनी शक्ति खो देती है। चूंकि सिग्नल्स पलकों को प्राप्त नहीं होते इसलिए मरीज पलके झपकाना भूल जाता है।
- अनेक प्रकार के नेत्र रोग : चूंकि मरीज पलके झपकाने में असमर्थ रहता है इसलिए उसकी आंखें हमेशा खुली रहती हैं। इसके चलते मरीज को अनेक प्रकार के नेत्र रोग होने की संभावना बनी रहती है। प्रमुख रूप से संक्रमित व्यक्ति की आंखें ड्राई रहती है। उसकी दृष्टि भी धीमे-धीमे अपनी शक्ति खो बैठती है अर्थात समय के बढ़ते क्रम में देखने की क्षमता भी कम होने लगती है।
कुष्ठ रोग के कारण (Leprosy Causes In Hindi)
चूंकि ये एक संक्रामक रोग है इसलिए इसके जीवाणु हवा को सहारा बनाकर स्वस्थ शरीर में प्रवेश करते हैं। इसके अलावा संक्रमित व्यक्ति द्वारा छींकने और खांसने के कारण भी इसके जीवाणु अन्य स्वस्थ व्यक्ति में ट्रांसफर हो जाते हैं। कोढ़ मानव सभ्यता की सबसे पुरानी बीमारियों में से एक है लेकिन कुष्ठ रोग के कारण को खोजने में मेडिकल साइंस अभी भी कोई बड़ी सफलता हासिल नहीं कर पाया है। हालांकि कोढ़ के होने के सामान्य कारणों को अवश्य चिन्हित कर लिया गया है जिसकी जानकारी लोगों को अवश्य होनी चाहिए ताकि जागरूकता भी फैले और सतर्कता भी बनी रहे।
आइए विस्तार से जानें कुष्ठ रोग के कारण जो कि निम्नलिखित हैं:
- छींकने या खांसने से : जैसा कि विदित है कोढ़ का संक्रमण छूने या स्पर्श करने से नहीं फैलता क्योंकि ये छुआछूत की बीमारी नहीं है। ये एक संक्रामक रोग है जो हवा को माध्यम बनाकर स्वस्थ शरीर में प्रवेश करती है धीमे-धीमे शरीर में विस्तार करती है। कोढ़ का जीवाणु माइकोबैक्टेरियम ‘लैपी’ जीवित रहता है इसलिए इसे श्वसन संक्रामक रोग भी कहते हैं। हवा को माध्यम बनाने के लिए ये जीवाणु संक्रमित व्यक्ति के छींकने या खांसने से हवा में घुल जाता है। दरअसल छींक या खांसी की बूंदों में संक्रमण के जीवाणु घुले होते हैं जो हवा को अपना निज निवास बना लेते हैं। स्वस्थ व्यक्ति जब संक्रमित व्यक्ति के आस-पास रहे और वह छींक दे अथवा खांस दे तो निश्चित ही वह भी संक्रमित हो जाता है।
- संक्रमित स्थान में रहने से : किसी भी प्रकार के संक्रमण के फैलने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि जिस स्थान में कोढ़ के मरीजों की संख्या बहुत अधिक है अर्थात संक्रमण बहुत बड़े क्षेत्र में फैल चुका है तो उस स्थान विशेष या आस-पास में यात्रा करने से अथवा वहां निवास करने से बैक्टीरिया बहुत शक्तिशाली हो जाता है और उसके विस्तार की कोई सीमा नहीं रहती।
- इम्यून सिस्टम कमजोर होने के कारण : संक्रामक रोग भले ही हवा के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता हो लेकिन व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली अर्थात इम्यून सिस्टम कमजोर होने पर ही जीवाणु का विस्तार संभव है। संक्रमण स्वस्थ शरीर में अधिक समय तक टिक नहीं सकता क्योंकि मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली में बीमारी से लड़ने की अद्भुत शक्ति होती है किन्तु कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर में संक्रमण के प्रवेश और विस्तार हेतु अनुकूल वातावरण तैयार करती है।
- बैक्टीरिया प्रोन होने के कारण : अगर कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के संक्रमण से अपना बचाव कर पाने में असमर्थ हो तो उसके संक्रमित होने का सबसे बड़ा और प्रमुख कारण ये भी है। दरअसल जब किसी व्यक्ति का शरीर बैक्टीरिया से लड़ने के बजाए उसके सामने घुटने टेक देता है तो मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इसे ‘बैक्टीरिया प्रोन’ अर्थात ‘आनुवंशिक संवेदनशीलता’ कहते हैं।
कुष्ठ रोग का उपचार
सबसे पहले डॉक्टर कुष्ठ रोगी से परामर्श के अंतर्गत लक्षणों की जांच और पूछताछ करता है ताकि आगे का मार्ग प्रशस्त किया जा सके। इसके पश्चात टेस्ट या परीक्षण का सुझाव दिया जाता है जो कि निम्नलिखित है:
- सूक्ष्मदर्शी जांच : सबसे पहले संक्रमित व्यक्ति के तंत्रिका की ऊतकों का नमूना एक ग्लास स्लैब में लिया जाता है। तत्पश्चात् नमूने को माइक्रोस्कोप के अंदर रख कर सूक्ष्म दृष्टि के माध्यम से बैक्टीरिया को देखा जाता है ताकि उसकी पहचान हो सके।
- पीसीआर जांच : इसका फुलफॉर्म पोलीमरेज़ चैन रिएक्शन है। यह एक ऐसा परीक्षण है जिसके अंतर्गत नमूने की डीएनए जांच की जाती है। सरल भाषा में समझें तो मरीज में संक्रमण है या नहीं इसकी पुष्टि के लिए पीसीआर टेस्ट किया जाता है।
- रक्त परीक्षण : संक्रमित व्यक्ति में एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए जिस परीक्षण को किया जाता है उसे रक्त परीक्षण या ब्लड टेस्ट कहते हैं। संक्रमित व्यक्ति के रक्त का नमूना लेकर उसका गहन प्रायोगिक अध्ययन किया जाता है और फिर निष्कर्ष को रिपोर्ट में प्रेषित किया जाता है।
परीक्षण के बाद मरीज के रोग की गंभीरता के आधार पर विभिन्न पद्धतियों में किसी एक अथवा सभी का चुनाव करते हुए इलाज का मार्ग प्रशस्त किया जाता है जो कि इस प्रकार है:
- लेप्रोस्टेटिक एजेंट : जैसे जहर को जहर और लोहे को लोहा काटता है; ठीक उसी प्रकार माइकोबैक्टीरियम ‘लैपी’ को जड़ से समाप्त करने की शक्ति केवल एक में है और वो है स्वयं ‘लेप्रोस्टेटिक एजेंट’ जिसका उपयोग इस पद्धति के अंतर्गत किया जाता है। इन्हें संक्रमित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कराया जाता है ताकि वे जीवाणु को समाप्त कर सके।
- एम-डी-टी : इसका फुल फॉर्म मल्टी ड्रग थेरेपी है। कोढ़ की बीमारी को ठीक करने के लिए एक विशेष प्रकार की उपचार पद्धति जिसमें कई एंटीबायोटिक दवाइयों के मिलाकर एक मिश्रण तैयार होता है जिसे एमडीटी कहते हैं। इसका एक अन्य नाम पॉलीकीमोथेरेपी भी है। यह संक्रमित व्यक्ति के शरीर में रोग को बढ़ने से रोकता है और एक दिन अंततः संक्रमण पूरी तरह समाप्त हो जाता है।
निष्कर्ष
कोढ़ एक संक्रामक रोग है किन्तु ये छूने से नहीं फैलती यानी ये छुआछूत की बीमारी नहीं है। दरअसल इसके फैलाने वाले एजेंट ‘जीवाणु’ हवा को माध्यम बनाकर स्वस्थ शरीर में प्रवेश करते हैं। जबकि छुआछूत वाली बीमारी स्पर्श करने से फैलती है अर्थात स्वस्थ व्यक्ति द्वारा बीमार व्यक्ति को छूने से या उसके सामान को प्रयोग में लाने से फैलती है। सरल भाषा में समझें तो संक्रामक रोग के जीवाणु हवा में जीवित रहते हैं और छुआछूत के जीवाणु या एजेंट व्यक्ति और वस्तु में जीवित रहते हैं।
कोढ़ के चार प्रकार हैं – ट्यूबरक्लोइड हैनसन डिजीज, लेप्रोमेटस हैनसन डिजीज, बॉर्डर लाइन हैनसन डिजीज और इंडिटर्माइन लैप्रसी। ये सभी प्रकार हल्के घाव से लेकर गंभीर, जानलेवा रोग की श्रेणी में रखे जाते हैं। हालांकि कोढ़ के लक्षण अन्य संक्रामक रोगों की तरह शीघ्र दिखाई नहीं देते क्योंकि इस रोग के संक्रमण व्यक्ति के शरीर में धीमे-धीमे विस्तार करते हैं। हालांकि सफेद चकत्ते, डेड टिश्यू, अँगुलियों का टेढ़ापन, लचीलेपन का लोप, पलक का झपकना प्रभावित होना आदि इसके कुछ सामान्य लक्षण हैं। इसके अलावा जुकाम और नाक से खून आने के भी लक्षण संक्रमित व्यक्ति में दिखाई देते हैं। छींकने या खांसने से, संक्रमित स्थान में रहने से, कमजोर इम्यून सिस्टम और बैक्टीरिया प्रोन बॉडी इसके प्रमुख कारण हैं। कोढ़ का पता लगाने के लिए सूक्ष्मदर्शी जांच, पीसीआर जांच और ब्लड टेस्ट ये तीनों परीक्षण कराए जाते हैं।
भगवान न करे आपके किसी चित-परिचित को कुष्ठ रोग या कोढ़ हो जाए क्योंकि इसका इलाज धन की कमी के चलते कष्टदायक प्रक्रिया हो सकता है। इस परिस्थिति में इलाज के लिए पैसे जुटा पाना आपके लिए आसान नहीं होगा। ऐसे में क्राउडफंडिंग एक अच्छा विकल्प हो सकता है। ये आपको ऐसे लोगों से जोड़ता है जो कठिन समय में आपकी मदद कर सकते हैं।