हृदय रोग के लक्षण, कारण, प्रकार, और उपचार

हृदय का रोग जैसे हार्ट अटैक एक ऐसी बीमारी है जो वैश्विक चिंता बन चुकी है। हृदय रोग में मनुष्य को यह चिंता भी बहुत अधिक सताती है कि इसका उपचार है या नहीं? इसके अतिरिक्त एक बार हृदय रोग ठीक हो गया है तो इसके वापिस आने की संभावना बनी रहती है। इन सभी चिंताओं और परेशानियों के इलाज को इस लेख में विस्तार से उल्लेखित किया है ताकि लोगों में हृदय रोग संबंधित जागरूकता और सतर्कता हो। आज के इस लेख में हृदय क्या होता है, हृदय क्या काम करता है, हृदय क्यों धड़कता है, हृदय रोग क्या है, हृदय रोग के नाम, हृदय रोग किसके कारण होता है, हृदय रोग के लक्षण और उपचार, महिलाओं में हृदय रोग के लक्षण, हृदय रोग में क्या खाना चाहिए और निष्कर्ष पर प्रकाश डाला गया है।

हृदय क्या होता है?

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शरीर की छाती के केंद्र में स्थित मांसपेशियों से बना मुलायम अंग है जो हृदय गति के माध्यम से प्राणी को जीवित रखता है। हृदय की गति के क्रियान्वयन से शरीर में रक्त और ऑक्सीजन संचारित होता है। संसार के सभी प्राणियों में, स्तनधारियों में और मनुष्य में हृदय होता है। चूंकि हृदय रक्त और ऑक्सीजन को संचारित करता है इसलिए इसे परिसंचार तंत्र का अभिन्न अंग माना जाता है। परिसंचार तंत्र में हृदय के अतिरिक्त धमनियां, नसों और कोशिकाओं का वृहद, विस्तृत और जटिल जाल-तंत्र होता है।

हृदय क्या काम करता है?

हृदय शरीर को जीवित रखने के लिए धमनियों में रक्त और ऑक्सीजन संचारित करता है। यह ब्लड को पंप करता है ताकि शरीर को सक्रिय और सुरक्षित रखने हेतु पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिल सके। आकार में ये मुठ्ठी के बराबर होता है लेकिन पूरे शरीर की ऊर्जा इसी से निर्मित और संचारित होती है। इसलिए हृदय को शरीर का पावर हाउस भी कहते हैं।

हृदय क्यों धड़कता है?

शरीर में ब्लड पंप करने के लिए हृदय धड़कता है। ब्लड पंप का अर्थ रक्त का संचार होता है। हृदय धड़कने का अर्थ उसकी बाहरी मासंपेशियों के सिकुड़न और खुलने से लिया जाता है। यानी हृदय की बाहरी मांसपेशियों के क्रमशः सिकुड़ने और खुलने से दिल धड़कता है और हृदय के धकड़ने से रक्त संचारित हो जाता है। पूरे दिन हृदय दस हजार बार धड़कता है ताकि शरीर को दो हजार गैलन रक्त संचारित किया जा सके। यानी एक मिनट में लगभग बहत्तर बार धकड़ कर सत्तर मिलीलीटर खून या रक्त संचार करता है।

हृदय रोग क्या है?

हार्ट अटैक या हृदय रोग में हृदय अपना प्रमुख कार्य अर्थात रक्त और ऑक्सीजन ठीक तरह से संचार नहीं कर पाता और परिणामस्वरूप हृदय में तथा उससे संबंधित अनेक प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं। असल में दिल की बीमारीएक व्यापक शब्द है जो हृदय संबंधित अनेक रोगों के समूह के लिए संयुक्त रूप से प्रयोग में लाया जाता है। यानी हृदय से संबंधित सभी बीमारियों को दिल की बीमारी के रूप में जाना जाता है।

हृदय रोग के नाम

भले ही हृदय से संबंधित सभी बीमारियों को एक ही समूह में सूचीबद्ध किया जाता है लेकिन दिल की बीमारी के अनेक प्रकार होते हैं। इन सभी प्रकारों के नाम, परिभाषा और लक्षण अलग-अलग हैं।

आइए जानें हृदय रोग के नाम जो कि निम्नलिखित हैं :

  • हृदय की धमनी का रोग : हृदय की धमनी में समस्या तथा उससे जन्म लेने वाली अनेक संबंधित परेशानियों के चलते इस प्रकार के हृदय रोग को हृदय की धमनी का रोग कहते हैं। इसका सूक्ष्म नाम सीएडी है। सीएडी का फुल फॉर्म कोरोनरी आर्टरी डिजीज है। इस प्रकार की बीमारी में धमनियां संकुचित हो जाती हैं। धमनियों के अवरुद्ध होने से रक्त और ऑक्सीजन तथा आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल पाते। कोलेस्ट्रॉल जमा होने के कारण हृदय का रोग हो जाता है। यह हृदय की सबसे आम और प्रचलित बीमारी है।
  • हृदय की धड़कन का रोग : नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि ये धड़कन से संबंधित हृदय रोग है। इस प्रकार के रोग में हृदय की गति या लय प्रभावित होती है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की धड़कन या तो सामान्य से धीरे, तेज या अव्यवस्थित ढंग से धड़कता है। स्वस्थ हृदय की सामान्य लय की तुलना में इस प्रकार के रोग से पीड़ित व्यक्ति बाधित लय और ताल का सामना करना पड़ता है। इसे अर्थेमिया के नाम से भी जाना जाता है। इसका एक अन्य नाम अतालता भी है।
  • हृदय की मांसपेशियों का रोग : अपने नाम से स्वयं को परिभाषित करता हृदय की मांसपेशियों से संबंधित हृदय रोग जिसमें इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को हृदय की बाहरी मांसपेशियों में समस्या का सामना करना पड़ता है। इसे कार्डियोमायोपैथी भी कहते हैं। हृदय के रोग के इस प्रकार में दिल की मांसपेशियां अपना कार्य करने अर्थात ब्लड पंप करने में सक्षम नहीं रहती। इस कारण हृदय की मांसपेशियां बड़ी कठिनाई के साथ ब्लड पंप करती हैं। अमूमन चिंता ही हृदय की मांसपेशियों के रोग का मुख्य कारण मानी जाती है।
  • हृदय की रक्त वाहिकाओं का रोग : रक्त वाहिकाओं में फैट, कोलेस्ट्रॉल या अन्य प्रकार के अनावश्यक पदार्थों के जमा हो जाने से वाहिका या आर्टरी वाल बाधित(ब्लॉक) हो जाती है। फैट और कोलेस्ट्रॉल इसका प्रमुख कारण माना जाता है। रक्त वाहिकाओं में जमा होने वाले अनावश्यक पदार्थों को प्लेक कहते हैं। प्लेक जमा होने के कारण आर्टरी वाल ब्लॉक हो जाती है और परिणामस्वरूप ब्लड क्लॉट हो जाता है।
  • ज्वलनशील ज्वर : इसे रूमेटिक हार्ट डिजीज कहते हैं। यह सबसे घातक और जानलेवा प्रकार है। इस प्रकार के रोग से पीड़ित व्यक्ति के हृदय में स्थित वाल्व किसी ऑटो इम्यून बीमारी के दुष्प्रभाव के चलते बार-बार ज्वलनशील बुखार(आमवाती बुखार) से ग्रसित रहने लगता है और परिणामस्वरूप हार्ट वोल्वेस क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
  • हृदय का संक्रमण : हृदय में वायरल, बैक्टीरियल और फंगल संक्रमण के चलते इन्फेक्शन हो जाता है जिसे हृदय का संक्रमण कहते हैं। इसका एक अन्य नाम हार्ट इन्फेक्शन भी है। ये तीन प्रकार के होते हैं – एंडोकार्डिटिस, मायोकार्डिटिस और पेरिकार्डिटिस। गंभीर और जानलेवा संक्रमण में सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है किन्तु अगर समस्या जानलेवा नहीं हो तो डॉक्टर का परामर्श और उचित दवाइयों की सहायता से इसे ठीक किया जा सकता है।
  • जन्मजात हृदय दोष : इसे केवल हृदय दोष भी कहते हैं। अगर किसी व्यक्ति के जन्म से ही हृदय के संरचना में कोई समस्या हो तो हृदय को अपना कार्य करने में समस्या का सामना करना पड़ता है। वाल्व, आर्टरी वाल या वाहिकाओं में किसी भी प्रकार की समस्या जन्मजात भी हो सकती है। हृदय के कार्यों के अतिरिक्त अन्य शारीरिक गतिविधियों को करने में भी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

हृदय रोग किसके कारण होता है?

वैसे तो हृदय रोग के प्रकार के आधार पर उसके कारण का पता चल सकता है। लेकिन प्रकारों के अलावा कुछेक सामान्य लक्षण सभी हृदय रोग में देखने को मिलते हैं।

आइए निम्नलिखित बातों के माध्यम से जानें कि हृदय रोग किसके कारण होता है :

  • आपके लिंग के कारण : पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हृदय की बीमारी होने के आसार या संभावना अधिक होती है। महिलाओं को हृदय की बीमारी के अतिरिक्त स्ट्रोक का खतरा भी बना रहता है। पुरुषों और महिलाओं में हृदय रोग के लक्षण भी अलग-अलग होते हैं।
  • उच्च रक्तचाप के कारण : हृदय को परिसंचार तंत्र का अभिन्न अंग माना जाता है इसलिए इस तंत्र में होने वाली किसी भी प्रकार की समस्या के कारण हृदय संबंधित रोग हो सकता है। उच्च रक्तचाप या हाई ब्लड प्रेशर के चलते हृदय को ब्लड पंप करने में सामान्य की तुलना में अधिक मेहनत लगती है। परिणामस्वरूप हृदय नसें कमजोर हो जाती हैं और आगे चलकर हृदय की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।
  • उच्च कोलेस्ट्रॉल के कारण : अगर किसी व्यक्ति का कोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ है तो ऐसे में आर्टरी वाल के ब्लॉक होने का खतरा बना रहता है। कोलेस्ट्रॉल के जमा होने से प्लाक बनने लगता है और इसके चलते हृदय संबंधित बीमारियां हो सकती हैं। 
  • मधुमेह या डायबिटीज के कारण : अगर किसी व्यक्ति को मधुमेह है तो उसके शरीर का ग्लूकोज लेवल अधिक रहता है। परिसंचार तंत्र में ग्लूकोज लेवल बढ़ जाने से हृदय संबंधित बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है। यानी डायबिटीज और हृदय के रोग में सीधा संबंध है।
  • मोटापे के कारण : हमारे शरीर में पेट एक ऐसा हिस्सा है जहाँ फाइट जमा हो जाता है और आदमी का वजन बढ़ने लगता है। शरीर में बढ़ा हुआ वजन हृदय को ब्लड पंप के लिए और अधिक मेहनत करने पर मजबुर कर देता है। इसके अतिरिक्त मेटाबोलिज्म में भी अचानक से परिवर्तन आ जाता है और हृदय  बीमारी होने के आसार अधिक हो जाते हैं।
  • शराब पीने के कारण : मदिरा या शराब पीने से परिसंचार तंत्र से संबंधित अनेक बीमारियां शरीर में स्थान ग्रहण कर विकसित और समृद्ध होने लगती है। शराब पीने से हाई ब्लड प्रेशर का जन्म होता है तथा हृदय की मांसपेशियां भी कमजोर होने लगती है। आगे चलकर ये अनेक हृदय रोगों का कारण बनती है।
  • धूम्रपान के कारण : तम्बाकू का धूम्रपान चाहे बीड़ी से हो या सिगरेट से, यह हृदय के लिए बहुत ही घातक होता है। परिसंचार तंत्र के महत्वपूर्ण अंग नस और धमनियों पर ऐसा असर होता है कि प्लेक का निर्माण होने लगता है। यही प्लेक हृदय संबंधी बीमारियों को बुलावा देता है।
  • तनाव के कारण : हृदय रोग का उद्गम स्थान मस्तिष्क में बनी चिंता है। चिंता ही सभी दुःख का कारण है। अगर लंबे समय से कोई व्यक्ति तनाव से जूझ रहा है तो तनाव के दुष्प्रभाव शरीर में तथा विशेष रूप से हृदय में देखने को मिलता है। तनाव ब्लड प्रेशर को जन्म देता है जो आगे चलकर हृदय संबंधित रोगों को शरीर में निवास देती है।
  • पारिवारिक इतिहास होने पर : अगर परिवार के किसी सदस्य को अतीत में हृदय से संबंधित कोई बीमारी रही है तो ऐसे में आने वाली पीढ़ी को भी यह समस्या होने के आसार हो सकते हैं। हृदय संबंधित रोग परिवार के सदस्यों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते रहते हैं।
  • हृदय की सर्जरी : अगर व्यक्ति की पूर्व में कोई सर्जरी हुई है तो ऐसे में हृदय संबंधित रोग होने के आसार अधिक होते हैं। हृदय की सर्जरी इसकी संरचना और क्षमता को प्रभावित करती है। इसलिए सर्जरी के कारण हृदय के रोग होने की संभावना बनी रहती है।
  • मांसपेशी कमजोर होने लगती है : हृदय संबंधित रोग होने के चलते शरीर में ग्लूकोज लेवल नियंत्रित नहीं रहता, हीमोग्लोबिन की कमी होने लगती है और इस कारण शरीर की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं।

हृदय रोग के लक्षण और उपचार

सीने में असहनीय पीड़ा, बेचैनी, धड़कन में अनियमितता आदि लक्षण हृदय संबंधित बीमारियों में देखने को मिलते हैं। हृदय रोगों का इलाज किया जा सकता है। लेकिन इलाज से पूर्व हमें इसके लक्षण को पहचानने का तरीका पता होना चाहिए। हृदय रोग के लक्षण और उपचार के माध्यम से हम किसी के जीवन को फिर से सुंदर बना सकते हैं।

आइए हृदय रोग के लक्षण और उपचार में इसके लक्षण को जानें :

  • सीने में दर्द होने लगता है : हृदय के किसी भी रोग में सबसे आम लक्षण सीने में दर्द होता है। एक असहनीय पीड़ा सीने में उस स्थान पर होने लगती है जहाँ हृदय स्थित है। मेडिकल टर्मिनोलॉजी में हृदय के रोग के लक्षण में होने वाले सीने में दर्द को एनजाइना के नाम से जाना जाता है। बीमारी के चलते हृदय असामान्य रूप से ब्लड पंप करने लगता है और इस कारण सीने के केंद्र में जहाँ हृदय स्थित है, वहां एक असहनीय पीड़ा होने लगती है।
  • धड़कन में अनियमितता : हृदय संबंधित रोग होने पर बाहरी मांसपेशियों के खुलने और सिकुड़ने की प्रक्रिया जिसे धड़कना कहते हैं वह असामान्य हो जाती है। हृदय की धड़कन तेज या धीमी दोनों में से कोई एक हो सकती है।
  • सीने में जकड़न या ऐंठन होने लगती है : हृदय सीने के केंद्र में होता है इसलिए हृदय संबंधित बीमारी में सीने में असहनीय पीड़ा होने लगती है। पीड़ा के चलते सीने में जकड़न या ऐंठन होने लगती है।
  • हाथ और पैरों में सूजन : प्लेक जो की फैट, कोलेस्ट्रॉल या अन्य अनावश्यक पदार्थों का संचयन है उसके जमा होने से शरीर में सूजन भी बनने लगती है।
  • बढ़ती उम्र के पायदान पर : वैसे तो हृदय का रोग किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन उम्र के बढ़ते पायदान पर रोग से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है और परिणामस्वरूप मनुष्य को वयस्क के रूप में तथा वृद्धावस्था में हृदय से संबंधित बीमारी होने की संभावना अधिक होती है।

आइए हृदय रोग के लक्षण और उपचार के अंतर्गत इलाज पर चर्चा करें :

  • जितना हो सके व्यायाम, योग करें जो आपके शरीर में रोग से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है।
  • चिंता और तनाव से दूर रहने पर आप सभी रोगों से मुक्त हो सकते हैं।
  • सही समय पर भरपूर नींद ले क्योंकि शरीर को आराम करने की आवश्यकता होती है जो पर्याप्त नींद से ही प्राप्त हो सकती है।
  • पोषक तत्वों से भरपूर भोजन करें ताकि शरीर रहें चुस्त और दुरुस्त।

महिलाओं में हृदय रोग के लक्षण

महिलाओं के शरीर की संरचना पुरुषों के शरीर की संरचना से बहुत अलग होती है। महिलाओं में लाल रक्त कोशिकाएं कम होती हैं। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन जैसे हार्मोन होते हैं जो हृदय संबंधी स्वास्थ्य को प्रभावित करने के सबसे बड़े कारक होते हैं। इसलिए महिलाओं में दिखने वाले लक्षण पुरुषों की तुलना में अलग होते हैं।

आइए जानें महिलाओं में हृदय रोग के लक्षण जो कि निम्नलिखित हैं :

  • अनावश्यक थकान और कमजोरी होने लगती है : हृदय द्वारा असामान्य रूप से ब्लड पंप करने के कारण ऊर्जा अधिक लगती है और इस कारण बिना मेहनत किए शरीर में थकावट की अनुभूति होती है। इसके अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल जमा होने के कारण शरीर में प्लेक बनने लगता है। इसके चलते हृदय शरीर को रक्त और ऑक्सीजन नहीं दे पाता और शरीर में ऊर्जा की कमी हो जाती है।
  • चक्कर आने लगते हैं या बेहोशी होने लगती है : हृदय संबंधित रोग के कारण शरीर में पर्याप्त मात्रा में रक्त और ऑक्सीजन नहीं संचारित हो पाता। साथ ही ग्लूकोज का लेवल भी सामान्य नहीं रहता। ऐसे में कमजोरी के चलते शरीर चक्कर खाकर गिर जाता है या बेहोश जाता है।
  • अनावश्यक पसीना आने लगता है : शरीर में ऊर्जा की कमी के चलते, हीमोग्लोबिन कम होने के चलते, हृदय के धड़कन की अनियमितता के चलते तथा पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण महिलाओं को लक्षण में बिना कोई मेहनत करे बहुत अधिक पसीना आने लगता है।
  • सांस लेने में कठिनाई : हृदय संबंधित रोग में लक्षण के अंतर्गत महिलाओं को श्वास लेने में समस्या का सामना करना पड़ता है। हृदय से ही ऑक्सीजन और पोषक तत्वों युक्त रक्त का संचार होता है। ऐसे में शरीर में पोषक तत्वों की कमी, रक्त की कमी होने लगती है जो श्वास की समस्या बढ़ावा देती है।
  • स्तन में, सीने में दर्द और बेचैनी : पुरुषों की तुलना में महिलाओं को हृदय संबंधी रोगों के लक्षण के अंतर्गत सीने में दर्द और बेचैनी होने लगती है जो पुरुषों को होने वाले दर्द से बिलकुल अलग होता है। महिलाओं को सीने में दबाव या भारीपन की अनुभूति होती है।
  • उलटी, उबकाई और जी मिचलाना : शरीर में पोषक तत्वों और रक्त की कमी के चलते कमजोरी होने लगती है और परिणामस्वरूप उल्टी होने लगती है। उबकाई और जी मिचलाना के लक्षण भी देखने को मिले हैं।
  • अत्यधिक और अनावश्यक चिंता : महिलाओं को हृदय संबंधी रोग के लक्षण के अंतर्गत चिंता भी सताने लगती है। चिंता और तनाव सभी दुखों के कारक हैं और इसलिए चिंता से हृदय संबंधी रोगों के होने की संभावना और अधिक बढ़ जाती है।

हृदय रोग में क्या खाना चाहिए?

आइए जानें कि हृदय रोग में क्या खाना चाहिए जो कि निम्नलिखित हैं :

  • हरी सब्जी खाना चाहिए : कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, फोलेट, विटामिन के आदि से भरपूर हरी सब्जी आपको हृदय संबंधी रोगों में स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती है। हरी सब्जी में वे सभी विटामिन और आवश्यक पोषक तत्व होते हैं जो हृदय के रोग और अन्य बीमारियों को भी छू मंतर कर देते हैं।
  • साबुत अनाज खाना चाहिए : जौ, ब्राउन राइस और बाजरा आदि जैसे साबुत अनाज को खाने से प्रोटीन और फाइबर मिलता है जो हृदय संबंधी रोगों को जड़ से मिटाने के लिए काम करता है।
  • अनार खाना चाहिए : अनार में आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम और विटामिन के होता है जो रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी नहीं होने देता इसलिए हृदय के मरीज को अनार खाना चाहिए।

निष्कर्ष

हृदय संबंधी रोग ऐसी बीमारियों की श्रेणी में आते हैं जिनका उपचार जीवंत पर्यन्त चलता रहता है। हृदय के रोगों का इलाज भी महंगा होता है। ऐसे में उन लोगों के लिए इसका इलाज कराना मुश्किल हो जाता है जो निर्धन हैं तथा धन की कमी के चलते उनका इलाज नहीं हो पाया। इस विषम परिस्थिति में क्राउडफंडिंग एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

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