अल्जाइमर रोग के लक्षण, कारण और इलाज | Alzheimer’s disease In Hindi

अल्जाइमर क्या है या अल्जाइमर क्या होता है, यदि इस विषय पर चर्चा करें तो अल्जाइमर रोग को, भूलने का रोग भी कहा जाता है। यह एक प्रगतिशील दिमाग की बीमारी है। इस बीमारी में मस्तिष्क की नर्व सेल्स डैमेज हो जाती हैं। इस बीमारी की खोज सबसे पहले 1906 में जर्मनी के एक मनोवैज्ञानिक और न्यूरोलॉजिस्ट एलोइस अल्जाइमर ने की थी, और इन्हीं के नाम पर इस बीमारी का नाम रखा गया है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की यादाश्त कमज़ोर हो जाती है, उसका दिमाग भी ठीक से काम करना बंद कर देता है, उसे निर्णय लेने में और बोलने में दिक्कत का अनुभव हो सकता है। 

अल्जाइमर एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है जो मानव मस्तिष्क को प्रभावित करती है। इस बीमारी में मानव का मस्तिष्क सिकुड़ जाता है, जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएँ मर जाती हैं। कोशिकाओं के मरने के कारण पीड़ित व्यक्ति की यादाश्त कमज़ोर हो जाती है, और वह सब कुछ भूलने लगता है। अल्जाइमर रोग के कारण व्यक्ति को डिमेंशिया भी हो सकता है। मनोभ्रंश रोग (डिमेंशिया) में व्यक्ति के दिमाग की क्षमता लगातार कम होती जाती है। यह दिमाग की बनावट में शारीरिक बदलावों के कारण होता है। यह बदलाव स्मृति, सोच, आचरण तथा मनोभाव को प्रभावित करता है। 

भारत में लगभग 4 मिलियन लोग किसी ना किसी प्रकार के मनोभ्रंश (डिमेंशिया) से पीड़ित हैं। क्योंकि, डिमेंशिया का आम कारण अल्जाइमर रोग है, इसलिए अल्जाइमर के बारे में भारत के लोगों में जागरूकता फैलाना अति आवश्यक है, जिससे वह डिमेंशिया से बच सकें। इस लेख के माध्यम से अल्जाइमर रोग के विभिन्न प्रकारों, लक्षणों, जोखिम कारकों, चरणों, निदान, रोकथाम रणनीतियों, उपचार विकल्पों और सर्वाइवल रेट के बारे में पूर्ण जानकारी प्रदान करने की कोशिश की गई है।

अल्जाइमर रोग के प्रकार

अल्जाइमर

अल्जाइमर रोग को दो मुख्य प्रकारों में बाँटा गया है – अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर डिजीज और लेट-ऑनसेट अल्जाइमर डिजीज। अल्जाइमर रोग के प्रकारों को नीचे समझाने का प्रयास किया गया है:

1. अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर डिजीज: 65 वर्ष से कम की आयु में होनेवाले अल्जाइमर को अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर डिजीज के रूप में जाना जाता है। अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर डिजीज अक्सर 30 से 60 वर्ष के बीच के लोगों को होता है। अल्जाइमर के सभी मामलों में से इसके मामले लगभग 10% से कम पाए जा सकते हैं, लेकिन अल्जाइमर का यह प्रकार बहुत तेज़ी से प्रगति करता है। अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर डिजीज के प्रकारों में पारिवारिक अल्जाइमर रोग (FAD) शामिल है, जो आनुवंशिक उत्परिवर्तन के कारण होता है, और आमतौर पर 40 और 50 वर्ष की आयु के व्यक्तियों को अपना शिकार बनाता है। 

2. लेट-ऑनसेट अल्जाइमर रोग: 65 वर्ष या उससे अधिक की उम्र में होनेवाले अल्जाइमर डिजीज को लेट-ऑनसेट अल्जाइमर रोग के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार का अल्जाइमर धीमी गति से प्रगति करता है, और यह उच्च आनुवंशिक जोखिम से जुड़ा होता है।

इन प्रकारों की जानकारी होने से रोग के निदान में और प्रभावी उपचार योजना तैयार करने में बहुत हद तक मदद मिल सकती है। अर्ली-ऑनसेट AD तेज़ी से प्रगति करता है, इसलिए इसे तत्काल चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, लेट-ऑनसेट AD धीमी गति से प्रगति करता है, इसके लिए प्रभावी उपचार योजना बनाने की आवश्यकता होती है।

अल्जाइमर के लक्षण / अलजाइमर रोग के लक्षण

अल्जाइमर के लक्षण, प्रारंभिक चरणों में पहचान में नहीं आते हैं, क्योंकि प्रारंभ में इसके लक्षण बहुत ही सूक्ष्म होते हैं। शुरू में, इस बीमारी में मामूली भूलने जैसे लक्षण प्रकट हो सकते हैं, जो अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिए जाते हैं। शोधों के आधार पर पहचान किए गए कुछ अलजाइमर रोग के लक्षण निम्न हैं:

1. स्मरण शक्ति कमज़ोर होने के कारण सामान्य कार्यों को नहीं कर पाना या भूलने लगना, अल्जाइमर के लक्षण या अलजाइमर रोग के लक्षण में शामिल है। 

2. रोजमर्रा के कार्यों या दैनिक कार्यों को करने में दिक्कत का सामना करना, अल्जाइमर के लक्षण या अलजाइमर रोग के लक्षण हैं। 

3. जीवनशैली की सामान्य बातों को धीरे-धीरे भूलने लगना भी, अल्जाइमर के लक्षण या अलजाइमर रोग के लक्षण में से एक है। 

4. किसी व्यक्ति का नाम या घर के आसपास की मशहूर जगहों या रास्तों को भूल जाना, यह सभी अल्जाइमर के लक्षण या अलजाइमर रोग के लक्षण में सम्मिलित हैं। 

5. बोलने में दिक्कत होना, हर बात को कहने में अटकना, अल्जाइमर के लक्षण या अलजाइमर रोग के लक्षण हैं। 

6. किसी भी मसले को हल करने की क्षमता खत्म होना, सोचने-समझने की क्षमता खत्म हो जाना, अल्जाइमर के लक्षण या अलजाइमर रोग के लक्षण हैं। 

7. सामाजिक होने में परेशानी होना, आसानी से लोगों से घुलने-मिलने में दिक्कत होना, अकेले रहना ही पसंद करना, यह सभी भी अलजाइमर रोग के लक्षण या अल्जाइमर के लक्षण हैं।

8. अल्जाइमर से पीड़ित व्यक्ति कंफ्यूज़ रहते हैं, इसलिए उनकी पर्सनैलिटी में बदलाव देखने को मिल सकता है। पर्सनैलिटी में बदलाव होना भी, अलजाइमर रोग के लक्षण में शामिल है।

अल्जाइमर रोग का कारण

अल्जाइमर रोग का सटीक कारण अभी तक ज्ञात नहीं हो पाया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके कारणों में आनुवंशिक, पर्यावरणीय और जीवनशैली कारकों का  संयोजन शामिल हो सकता है। यदि सरल शब्दों में समझें, तो अल्जाइमर रोग मस्तिष्क की संरचना और कार्य में परिवर्तन के कारण होता है। अल्जाइमर रोग के कुछ जोखिम कारक निम्न हैं:

1. अधिक उम्र: 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों में अल्जाइमर विकसित होने की संभावना अधिक होती है। हालाँकि, यह आवश्यक नहीं है कि उम्र बढ़ने पर यह रोग हर किसी को अपनी चपेट में ले, लेकिन वृद्धावस्था, अल्जाइमर रोग के जोखिम कारकों में शामिल है।

2. जेंडर: महिलाओं में, पुरुषों की तुलना में अल्जाइमर रोग अधिक पाया जा सकता है।  

3. पारिवारिक इतिहास: अल्जाइमर रोग का कारण, पारिवारिक इतिहास भी हो सकता है। यदि अल्जाइमर रोग परिवार के किसी सदस्य को पूर्व में हो चुका है, तो यह संभव है कि आगे भी उसी परिवार के अन्य सदस्य को यह बीमारी अपना शिकार बनाए। 

4. आनुवंशिक कारक: कुछ प्रकार के जीन जैसे, एपोलिपोप्रोटीन E-E4 (APOE-E4) एलील, अल्जाइमर के उच्च जोखिम कारकों में शामिल है। 

5. अधिक वजन और मोटापा: अधिक वजन और मोटापा भी, अल्जाइमर रोग का कारण हो सकता है। विशेष रूप से पेट के मोटापा वाले लोगों में मनोभ्रंश विकसित होने की संभावना अधिक होती है।

6. उच्च रक्तचाप: अधिक उम्र के लोग जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है, उन्हें अल्जाइमर रोग आसानी से अपनी चपेट में ले सकता है। इस प्रकार हाई ब्लड प्रेशर भी, अल्जाइमर रोग का कारण बन सकता है। 

7. सिर की चोट: पूर्व में सिर में लगी गंभीर चोट, अल्जाइमर रोग के ख़तरे को बढ़ा सकती है। 

8. नींद की समस्या / सोने में परेशानी: नींद में कमी, नींद का विकार (स्लीप एपनिया), सोने का गलत तरीका, गलत समय पर सोना यह सभी अल्जाइमर रोग का कारण बन सकते हैं।

9. तनाव: अवसाद (Depression) और पुराने तनाव (Chronic Stress) के कारण एमिलॉयड-बीटा प्रोटीन मस्तिष्क में जमा हो सकता है, जो अल्जाइमर रोग का कारण बन सकता है।

अल्जाइमर रोग के चरण

अल्जाइमर रोग को तीन चरणों में वर्गीकृत किया गया है: Mild (अर्ली स्टेज), Moderate (मिडिल स्टेज), और Severe (लेट स्टेज)। इन चरणों के आधार पर, अल्जाइमर रोग की प्रगति का पता लगाया जा सकता है। 

1. Mild (अर्ली स्टेज): इस चरण में, मरीज़ अधिकतर कार्य ठीक से कर सकते हैं लेकिन उनकी यादाश्त कमज़ोर हो सकती है। वह परिचित शब्द या रोजमर्रा की वस्तुओं का स्थान भूल सकते हैं, उन्हें योजना बनाने में परेशानी हो सकती है, नाम या नियुक्तियाँ भूल सकते हैं लेकिन उन्हें बाद में याद भी आ सकते हैं। इस चरण में लक्षण सूक्ष्म होते हैं, इसलिए यह चिकित्सा जाँच के दौरान ही पकड़ में आ सकते हैं।

2. Moderate (मिडिल स्टेज): यह चरण आम तौर पर सबसे लंबा होता है और कई वर्षों तक चल सकता है। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, अल्जाइमर से पीड़ित व्यक्ति को विशेष चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता हो सकती है। पीड़ित व्यक्ति की स्मरण शक्ति अत्यधिक कमज़ोर हो सकती है और वह अधिक कंफ्यूज़ रह सकता है। मरीज़ों को अपने परिवार और दोस्तों को पहचानने में दिक्कत हो सकती है, वह अपना पता या टेलीफ़ोन नंबर या वह हाई स्कूल या कॉलेज भूल सकते हैं जिसमें उन्होंने पढ़ाई की थी, उन्हें कपड़े पहनने में भी कठिनाई हो सकती है, कभी-कभी नहाना भी भूल सकते हैं, उन्हें अपने मूत्राशय और आँतों को नियंत्रित करने में मदद की आवश्यकता पड़ सकती है। व्यक्तित्व और व्यवहार में परिवर्तन, जैसे संदेह और भ्रम जैसे व्यवहार उभर सकते हैं।

3. Severe (लेट स्टेज / लास्ट स्टेज): यह अल्जाइमर रोग का अंतिम चरण है। इस चरण में, रोगी बातचीत करने या संवाद जारी रखने की क्षमता खो देते हैं। वह शब्द और वाक्यांशों को बोलने में सक्षम तो होते हैं, लेकिन उन्हें अपनी स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। उन्हें दैनिक जीवन की सभी गतिविधियों में सहायता की आवश्यकता हो सकती है। अंतिम चरण में रोगी को चलने, बैठने और निगलने की क्षमता में भी बदलाव का अनुभव हो सकता है।

अल्जाइमर रोग का निदान

अल्जाइमर रोग का निदान, चिकित्सा इतिहास से शुरू किया जा सकता है। इसके बाद मानसिक स्थिति परीक्षण (Mental Status Test), एक शारीरिक और तंत्रिका संबंधी टेस्ट (A Physical and Neurological Test), रक्त परीक्षण और ब्रेन इमेजिंग टेस्ट किए जा सकते हैं। केवल एक टेस्ट के ज़रिए अल्जाइमर का निदान संभव नहीं है, और निदान प्रक्रिया का उद्देश्य अन्य स्थितियों का पता लगाना भी होता है, जो समान लक्षण पैदा कर सकते हैं।

चिकित्सक सबसे पहले चिकित्सा इतिहास से शुरू कर सकता है। वह मरीज़ से, उसके संपूर्ण स्वास्थ्य स्थिति, पिछली चिकित्सा समस्याओं और दैनिक गतिविधियों को करने की क्षमता के बारे में पूछ सकता है। वह रोगी से उसके व्यवहार और व्यक्तित्व में बदलाव के बारे में भी पूछताछ कर सकता है। इसके अतिरिक्त, वह रोगी को स्मृति, ध्यान, भाषा कौशल (Language Skills) और अनुभूति (Cognition) से संबंधित अन्य क्षमताओं का आकलन करने के लिए कुछ सरल समस्याओं को हल करने के लिए कह सकता है। 

एक फिजिकल टेस्ट के माध्यम से डॉक्टर किसी अन्य स्थिति की जाँच कर सकता है, जो मस्तिष्क के कार्य को प्रभावित कर सकती है, जैसे स्ट्रोक या पार्किंसंस डिजीज। इसी प्रकार, न्यूरोलॉजिकल टेस्ट्स द्वारा सजगता (Reflexes), समन्वय (Coordination), मसल टोन, स्पीच और आइ मूवमेंट्स (Eye Movements) का आकलन किया जा सकता है। 

रूटीन लेबोरेटरी टेस्ट्स, ब्लड और यूरिन टेस्ट द्वारा, स्मृति हानि और भ्रम के अन्य संभावित कारणों जैसे ब्लड काउंट्स, विटामिन का स्तर (Vitamin Levels), यकृत और गुर्दे का कार्य (Liver and Kidney Function), खनिज संतुलन (Mineral Balance) और थायरॉयड ग्रंथि के कार्य (thyroid function) का पता लगाया जा सकता है। अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर डिजीज के मामलों में, विशेष रूप से जेनेटिक टेस्ट भी किया जा सकता है। 

ब्रेन इमेजिंग टेक्निक्स जैसे MRI, PET और CT स्कैन द्वारा, ब्रेन के स्ट्रक्चर की डिटेल्ड इमेजेस प्राप्त करके, ट्यूमर, स्ट्रोक या सिर की चोटों का पता लगाया जा सकता है। यदि इन फोटोज़ से मस्तिष्क के आकार और मस्तिष्क के कुछ क्षेत्रों में सिकुड़न का पता चलता है, तो यह अल्जाइमर डिजीज का संकेत हो सकता है। 

हालाँकि, इन निदान विधियों द्वारा केवल अल्जाइमर रोग का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, निदान का निश्चित परिणाम मृत्यु के बाद मस्तिष्क के ऊतकों की जाँच के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (CSF) टेस्ट्स और अमाइलॉइड और टाऊ प्रोटीन के लिए PET इमेजिंग में हालिया प्रगति अल्जाइमर रोग के अधिक सटीक और पहले निदान का मार्ग प्रशस्त कर रही है।

अल्जाइमर रोग की रोकथाम

अल्जाइमर रोग की रोकथाम पूर्ण रूप से तो संभव नहीं है, लेकिन जीवनशैली में कुछ संशोधन करके अल्जाइमर रोग के जोखिम को बहुत हद तक कम ज़रूर किया जा सकता है। 

अल्जाइमर रोग की रोकथाम पूरी तरह से तो नहीं लेकिन फलों, सब्जियों, लीन प्रोटीन और लो-फैट डेयरी प्रोडक्ट्स से भरपूर स्वस्थ आहार खाने से कुछ हद तक ज़रूर संभव है। मछली, साबुत अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, जैतून और नट्स से भरपूर भूमध्यसागरीय आहार (मेडिटेरेनियन डाइट) खाने से अल्जाइमर जोखिम को बहुत हद तक कम करने में मदद मिल सकती है। 

नियमित शारीरिक गतिविधि, जैसे पैदल चलना, तैराकी या बाइक चलाना जैसे एरोबिक व्यायाम के माध्यम से भी अल्जाइमर रोग की रोकथाम बहुत हद तक संभव है। व्यायाम से हृदय स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है, नींद अच्छी आ सकती है और दिमाग सही रूप से कार्य कर सकता है। 

अल्जाइमर रोग की रोकथाम के लिए, दिमाग को सक्रिय रखना भी आवश्यक है। ऐसी गतिविधियाँ जो मस्तिष्क को चुनौती दें जैसे पढ़ना, पहेलियाँ, खेल, संगीत वाद्ययंत्र, मस्तिष्क के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद कर सकते हैं। सामाजिक रूप से जुड़े रहने से अकेलापन और अवसाद दूर हो सकता है। 

हृदय और मस्तिष्क स्वास्थ्य का गहरा संबंध है, इसलिए हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखना भी आवश्यक है। उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह और उच्च कोलेस्ट्रॉल सहित हृदय या रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुँचाने वाली स्थितियाँ अल्जाइमर रोग के ख़तरे को बढ़ा सकती हैं। नियमित जाँच से, निर्धारित उपचार योजना का पालन करने से और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से, हृदय और मस्तिष्क दोनों के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है। इसके अतिरिक्त, अल्जाइमर के ख़तरे को कम करने के लिए पर्याप्त और अच्छी नींद लेना भी आवश्यक है।

क्या अल्जाइमर रोग का इलाज संभव है?

वर्तमान में, अल्जाइमर रोग का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। हालाँकि, विभिन्न उपचार लक्षणों को प्रबंधित करने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकते हैं, यदि इसका निदान शुरुआत के चरणों में हो जाए। 

हालाँकि, संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वास्थ्य एवं मानव सेवा विभाग की एक एजेंसी, फ़ूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) द्वारा, अल्जाइमर रोग के प्रबंधन के लिए दो वर्गों के दवाइयों को अप्रूव किया गया है, जिनमें कोलिनेस्टरेज़ इनहिबिटर और एनएमडीए (एन-मिथाइल-डी-एस्पार्टेट) रिसेप्टर एन्टागोनिस्ट शामिल हैं। 

हल्के से मध्यम (Mild to Moderate) अल्जाइमर रोग के लिए कोलिनेस्टरेज़ इनहिबिटर (डेडपेज़िल, रिवास्टिग्माइन और गैलेंटामाइन) का उपयोग किया जाता है। यह दवाइयाँ रोग प्रक्रिया को धीमा करके काम करती हैं और स्मृति हानि, भ्रम और सोचने और तर्क करने में समस्याओं जैसे संज्ञानात्मक लक्षणों के इलाज के लिए विशेष रूप से प्रभावी होती हैं।

दूसरे प्रकार की दवाई NMDA रिसेप्टर एंटागोनिस्ट (मेमेंटाइन) का उपयोग मध्यम से गंभीर (Moderate to Severe) अल्जाइमर के लिए किया जाता है, ताकि लक्षणों की प्रगति धीमी गति से हो सके और रोगी दवाई के बिना कुछ दैनिक कार्यों को थोड़ी देर कर सके। कुछ मामलों में, इन दोनों प्रकार की दवाइयों का एक साथ उपयोग किया जा सकता है, क्योंकि कॉम्बिनेशन से अच्छे रिजल्ट्स प्राप्त किए जा सकते हैं। 

हालाँकि, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यह दवाइयाँ केवल लक्षणों को प्रबंधित करने में मदद कर सकती हैं, इनकी मदद से अल्जाइमर रोग का इलाज नहीं किया जा सकता है या इसकी प्रगति को नहीं रोका जा सकता है। वर्तमान में नए उपचारों पर शोध किया जा रहा है, जिनमें ऐसी दवाइयाँ शामिल हैं जो बीमारी की प्रगति को धीमा कर सकती हैं या पूरी तरह से रोक सकती हैं।

क्या अल्जाइमर रोग जीवन के लिए ख़तरा है?

अल्जाइमर रोग वास्तव में जीवन के लिए ख़तरा है। अल्जाइमर के अंतिम चरण की बात करें, तो इसके अंतिम चरण में मरीज़ पूरी तरह से बिस्तर पर ही पड़ा रह सकता है, उन्हें चौबीसों घंटे देखभाल की आवश्यकता होती है, जिससे उन्हें कई तरह की स्वास्थ्य जटिलताओं का ख़तरा हो सकता है। इनमें निमोनिया (अक्सर भोजन या तरल पदार्थ खाने के कारण), संक्रमण (मूत्र असंयम या बेडसोर से) और चोटें (गिरने से) शामिल हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त अल्जाइमर शरीर के कार्यों को प्रबंधित करने की मस्तिष्क की क्षमता को प्रभावित करता है, जिससे पोषण, जलयोजन (Hydration) और शारीरिक प्रणालियों (Bodily Systems) में समस्याएँ पैदा हो सकती हैं जो जीवन के लिए ख़तरा बन सकती हैं।

अल्जाइमर रोग के लिए सर्वाइवल रेट

कुछ शोधों से यह पता चला है कि अल्जाइमर से पीड़ित व्यक्ति निदान के बाद चार से आठ साल तक जीवित रह सकता है, लेकिन अन्य कारकों के आधार पर वह 20 साल तक भी जीवित रह सकता है। इन कारकों में रोग का चरण और अन्य मौजूदा स्वास्थ्य स्थितियाँ शामिल हो सकती हैं। यह याद रखना आवश्यक है कि अल्जाइमर रोग हर व्यक्ति में अलग तरह से विकसित हो सकता है। कुछ लोगों में तेज़ी से प्रगति कर सकता है, तो कुछ लोग निदान के बाद कई वर्षों तक अपेक्षाकृत स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।

अल्जाइमर रोग के इलाज में लगनेवाला समय

अल्जाइमर रोग एक पुरानी और प्रगतिशील बीमारी है, इसलिए इसका उपचार आम तौर पर लंबे समय तक और लगातार चल सकता है। अल्जाइमर रोग से पीड़ित हर व्यक्ति के लिए, उपचार में लगनेवाला समय अलग-अलग हो सकता है। कुछ मरीज़ों में दवाई शुरू करने के कुछ हफ़्तों के भीतर, लक्षणों में सुधार देखा जा सकता है, तो कुछ में अधिक समय तक कोई महत्त्वपूर्ण बदलाव नहीं देखा जा सकता है। 

उपचार योजना की प्रभावशीलता का आकलन करने और आवश्यक समायोजन करने के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के साथ नियमित अनुवर्ती कार्रवाई करना आवश्यक है।

निष्कर्ष

अल्जाइमर एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है जो मानव मस्तिष्क को प्रभावित करती है। इस बीमारी में मानव का मस्तिष्क सिकुड़ जाता है, जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएँ मर जाती हैं, और पीड़ित व्यक्ति की यादाश्त कमज़ोर हो जाती है। इस रोग को भूलने का रोग भी कहा जाता है। अल्जाइमर रोग का सटीक कारण अभी तक ज्ञात नहीं हो पाया है, लेकिन कुछ शोधों से पता चला है कि इसके विकास में आनुवंशिक, पर्यावरणीय और जीवनशैली जैसे कारक योगदान कर सकते हैं।  

अल्जाइमर के नैदानिक प्रक्रिया में, रोगी के चिकित्सा इतिहास के बारे में पूछताछ के बाद, मानसिक स्थिति परीक्षण (Mental Status Test), एक शारीरिक और तंत्रिका संबंधी टेस्ट (A Physical and Neurological Test), रक्त परीक्षण और ब्रेन इमेजिंग टेस्ट शामिल किए जा सकते हैं।

अल्जाइमर रोग की रोकथाम पूर्ण रूप से तो संभव नहीं है, लेकिन भूमध्यसागरीय आहार (मेडिटेरेनियन डाइट) खाने से, नियमित व्यायाम करने से, नियमित चिकित्सा जाँच से, स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से इसे बहुत हद तक रोका जा सकता है।

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