ट्राइग्लिसराइड्स के लक्षण, कारण, इलाज और बचाव के उपाय

आज के इस लेख में ट्राइग्लिसराइड्स क्या होता है, ट्राइग्लिसराइड्स और कोलेस्ट्रॉल में अंतर, ट्राइग्लिसराइड्स क्यों बढ़ता है, ट्राइग्लिसराइड्स कितना होना चाहिए, ट्राइग्लिसराइड्स का असामान्य स्तर, ट्राइग्लिसराइड्स के लक्षण, ट्राइग्लिसराइड्स के कारण, ट्राइग्लिसराइड्स का इलाज, ट्राइग्लिसराइड्स कैसे कम करें, और निष्कर्ष पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

ट्राइग्लिसराइड्स क्या होता है?

रक्त में पाया जाने वाला लिपिड का एक प्रकार जिसे ट्राइग्लिसराइड्स कहते हैं। जब आप भोजन ग्रहण करते हैं तो कैलोरी को शरीर के द्वारा लिपिड के इस विशेष प्रकार में परिवर्तित कर फैट सेल में भंडारण करता है। कोशिकाओं में संचित वसा या लिपिड के ये प्रकार शरीर की आवश्यकता के अनुसार उपयोग में लाया जाता है। अगर इसकी मात्रा अनावश्यक रूप से बढ़ जाती है तो यह किसी भी व्यक्ति के शरीर के लिए हानिकारक है।

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ट्राइग्लिसराइड्स और कोलेस्ट्रॉल में अंतर

Triglycerides In Hindi

ट्राइग्लिसराइड्स और कोलेस्ट्रॉल दोनों ही रक्त में पाए जाने वाले वसा या लिपिड के प्रकार हैं। हालांकि दोनों एक दूजे से भिन्न है। ट्राइग्लिसराइड्स अतिरिक्त कैलोरी के कोशिकाओं में जमा होने वाला वसा है तो वहीं कोलेस्ट्रॉल वसा का वह प्रकार है जो कोशिकाओं और हार्मोन दोनों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि ट्राइग्लिसराइड्स के चलते व्यक्ति मोटापे का शिकार हो सकता है जो कोलेस्ट्रॉल की शिकायत होने पर भी देखा गया है। अर्थात भले ही दोनों में भिन्नता हो लेकिन इन दोनों के दुष्परिणाम में कुछेक समानता अवश्य है।

ट्राइग्लिसराइड्स क्यों बढ़ता है?

शरीर में ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर व्यक्ति द्वारा ग्रहण किए गए कार्बोहाइड्रेट की मात्रा पर निर्भर करता है। कार्बोहाइड्रेट और कैलोरी का सीधा कनेक्शन है। जितना अधिक व्यक्ति द्वारा कार्बोहाइड्रेट का सेवन होगा, उतना ही अधिक ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा शरीर में बढ़ती चली जायेगी। मात्रा जितनी अधिक, शरीर उतना ही बीमार होगा क्योंकि उच्च मात्रा व्यक्ति के शरीर के लिए बहुत हानिकारक है। यानी ट्राइग्लिसराइड्स के बढ़ने का मुख्य कारण कार्बोहाइड्रेट के अत्यधिक और अनावश्यक सेवन से शरीर में बढ़ी हानिकारक मात्रा है।

ट्राइग्लिसराइड्स कितना होना चाहिए?

जैसा कि विदित है वयस्कों में ट्राइग्लिसराइड्स का सामान्य स्तर 150 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर है। वहीं 10-19 वर्षीय बच्चों में इसका सामान्य स्तर 90 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर है।

बच्चों और वयस्कों में ट्राइग्लिसराइड्स का सामान्य स्तर कितना होना चाहिए नीचे दी गई तालिका में उसे विधिवत बताया गया है :

व्यक्तिट्राइग्लिसराइड्स का सामान्य स्तर(मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर)
वयस्क150
10-19 वर्षीय बच्चे 90

ट्राइग्लिसराइड्स का असामान्य स्तर

ट्राइग्लिसराइड्स के सामान्य स्तर की जानकारी देने वाली तालुका के अलावा एक और टेबल है जो की असामान्य स्तर की चर्चा करती है जो स्वास्थ पर हानिकारक प्रभाव छोड़ती है।

आइए जानें ट्राइग्लिसराइड्स का असामान्य स्तर जिसे नीचे दी गई तालिका से समझा जा सकता है :

असामान्य स्तर की मेडिकल टर्मिनोलॉजीट्राइग्लिसराइड्स का असामान्य स्तर(मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर)
नॉर्मल रेंज150 से कम
बॉर्डरलाइन हाई150 से 199 के बीच
हाई200 से 499 के बीच
हाई लेवल डेंजर500 से अधिक

ट्राइग्लिसराइड्स के लक्षण

अधिकांश परिस्थितियों में बढ़े हुए ट्राइग्लिसराइड्स के लक्षण नहीं होते हैं। प्रमुख रूप से त्वचा की कोशिकाओं में फैट जमा होने लगता है और इसके चलते अनेक संकेत देखने को मिलते हैं। इसलिए इन सभी संकेतों की संपूर्ण और सही जानकारी होना अति आवश्यक है ताकि लोगों में जागरूकता आये।

आइए विस्तार से जानें ट्राइग्लिसराइड्स के लक्षण जो कि निम्नलिखित हैं:

  • धमनियों में ब्लॉकेज : ट्राइग्लिसराइड्स के बढ़ने से धमनियां ब्लॉक हो जाती है। दरअसल बढ़े हुए ट्राइग्लिसराइड्स से धमनियां कठोर या सख्त हो जाती हैं। ततपश्चात इसकी बाहरी संरचना सामान्य से अधिक मोटी हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में फैट के हानिकारक कण धमनियों में चिपक जाते हैं। परिणामस्वरूप ब्लॉकेज की समस्या जन्म ले लेती है और रक्त का प्रवाह(ब्लड सर्कुलेशन) प्रभावित हो जाता है।
  • कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है : जैसा की विदित है ट्राइग्लिसराइड्स के बढ़ने से धमनियों में ब्लॉकेज की समस्या हो जाती है जिस कारण वे कठोर रूप धारण कर फैट को खींचने वाली चुंबक बन जाती हैं। फैट से चिपकी हुई धमनियां ठीक से ब्लड सर्कुलेशन नहीं कर पाती और परिणामस्वरूप कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ जाता है।
  • हार्ट अटैक के संकेत : ब्लड सर्कुलेशन से रक्त की बीमारियां तो होती ही हैं और इसके अतिरिक्त हार्ट अटैक के भी संकेत मिलने लगते हैं। दरअसल धमनियों का सीधा संबंध हृदय से होता है इसलिए फैट चिपक जाने के कारण जो ब्लॉकेज आ जाता है वह आगे चलकर हृदय रोग जैसे हार्ट अटैक के भी संकेत देने लगता है।
  • मोटापे की शिकायत : ट्राइग्लिसराइड्स के बढ़ने से धमियों में फैट चिपकने लगता है जो न केवल रक्त और हृदय की बीमारियों को न्योता देता है अपितु वह शरीर में कोलेस्ट्रॉल के लेवल को अनियंत्रित कर अप्रत्याशित रूप से अनावश्यक वजन बढ़ा रहा है। आगे चलकर व्यक्ति मोटापे की चपेट में आ जाता है। मोटापा एक ऐसी आपातकालीन अवस्था है जो कोलेस्ट्रॉल, हार्ट अटैक, स्ट्रोक, हाई बीपी आदि प्रकार की समस्याओं को शरीर में घर कर देता है।
  • पेट के ऊपरी भाग में दर्द : ट्राइग्लिसराइड्स के बढ़ने से पेन्क्रियाज में सूजन आ जाती है। यह सूजन मानव शरीर के पेट के ऊपरी भाग में असहनीय पीड़ा को जन्म देता है। इसके चलते फैट जमा होने लगता है और ये एक गंभीर समस्या का रूप ले लेती है जिसे क्रोनिक पैन्क्रियाटाइटिस कहते हैं।
  • हाथ और पैर में पीले धब्बे : ट्राइग्लिसराइड्स के बढ़ने से त्वचा की कोशिकाओं में फैट जमा होने लगता है। जमा हुआ फैट रक्त के रंग को बदलने का प्रमुख कारक होता है। चूंकि खून का रंग बदल चुका है इसलिए हाथ और पैर में पीले रंग के छोटे-छोटे धब्बे पड़ने लगते हैं। हाथ और पैर के अलावा ये धब्बे कोहनी, घुटने और नितंब में भी हो सकते हैं। पीले रंग के धब्बे हो जाने वाली इस अवस्था को मेडिकल टर्मिनोलॉजी में जैंथोमास कहते हैं।
  • पेट संबंधी रोग की शिकायत : क्रोनिक पैन्क्रियाटाइटिस की समस्या के जन्म लेने से तथा मोटापे की चपेट में आ जाने से ट्राइग्लिसराइड्स के मरीज को पेट से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं। अपच के अतिरिक्त व्यक्ति को पाचन से जुड़ी अन्य समस्याएं जैसे गैस, दर्द आदि की भी शिकायत हो सकती है।

ट्राइग्लिसराइड्स के कारण

चूंकि ये जीवनशैली से जुड़ी एक गंभीर समस्या है इसलिए इसके अधिकतर कारक दैनिक जीवन से जुड़े वे आदतें हैं जो आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसलिए ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर को सामान्य रखने के लिए उसके जोखिम कारकों की भी जानकारी होनी चाहिए।

आइए विस्तार से जानें ट्राइग्लिसराइड्स के कारण जो कि निम्नलिखित हैं:

  • हाई कैलोरी सेवन के कारण : कैलोरी और कार्बोहाइड्रेट का सीधा कनेक्शन है। यानी जितना अधिक व्यक्ति द्वारा कैलोरी इंटेक होगा, उतना ही अधिक ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा शरीर में बढ़ती चली जायेगी। मात्रा जितनी अधिक, शरीर उतना ही बीमार होगा।
  • मोटापे के कारण : जैसा कि विदित है मोटापा सभी बीमारियों का प्रमुख कारण है। बढ़े हुए ट्राइग्लिसराइड्स के कारण शरीर में अनावश्यक फैट जमा होने लगता है और मोटापा इसके लिए अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करता है।
  • शराब का सेवन : हानिकारक पदार्थों का सेवन जैसे शराब आपकी किडनी और लिवर को बहुत नुकसान पहुंचाता है। शराब को ब्रेक डाउन अर्थात पचा पाना लिवर के अत्यंत कठिन कार्य होता है। इसलिए शराब पीने से ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर सामान्य नहीं रहता और शरीर अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझने लगता है।
  • सिगरेट पीने के कारण : धूम्रपान करने से हाइपरटेंशन, हार्ट अटैक तथा अन्य रक्त और हृदय की बिमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। सिगरेट पीने से अच्छे कोलेस्ट्रॉल का नाश होता है तथा बुरे कोलेस्ट्रॉल की बढ़ोत्तरी होती है। ये सभी बीमारियां ट्राइग्लिसराइड्स के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां तैयार कराती हैं।
  • लिवर और किडनी की बीमारी के कारण : क्रोनिक किडनी डिजीज और लिवर में फैट के जम जाने से ट्राइग्लिसराइड्स स्तर असामान्य हो जाता है। अगर किडनी और लिवर से जुड़ी कोई बीमारी है तो व्यक्ति को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • थायराइड के कारण : अगर कोई व्यक्ति थायराइड की समस्या से जूझ रहा है तो ऐसे में उसके शरीर के अच्छे कोलेस्ट्रॉल कम हो जाते हैं तथा बुरे कोलेस्ट्रॉल की संख्या में वृद्धि हो जाती है।

ट्राइग्लिसराइड्स का इलाज

ट्राइग्लिसराइड्स एक ऐसी बीमारी या अवस्था है जिसे दवा से नहीं अपितु जीवन शैली में परिवर्तन के माध्यम से ठीक किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये बीमारी व्यक्ति के खानपान तथा शारीरिक गतिविधियों पर निर्भर करती है। भोजन ग्रहण करने के पश्चात शरीर में जितना कैलोरी इनटेक(कैलोरी की मात्रा) होगी, उतना ही ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा होगी। भोजन से प्राप्त कार्बोहाइड्रेट को कैलोरी में परिवर्तित कर इसका भंडारण किया जाता है जिसका असमान्य स्तर शरीर के लिए बहुत हानिकारक होता है। इसलिए मेडिकल ट्रीटमेंट के स्थान पर मरीज को लाइफस्टाइल चेंज करने की सलाह दी जाती है। लाइफस्टाइल चेंज के अंतर्गत सबसे पहले उसकी खुराक को नियंत्रित किया जाता है। साथ ही उसकी सेहत को चुस्त और दुरुस्त करने के लिए कसरत आदि का भी सुझाव दिया जाता है।

ट्राइग्लिसराइड्स कैसे कम करें?

  • वजन को करे कंट्रोल : जैसा कि विदित है ट्राइग्लिसराइड्स के चलते व्यक्ति मोटापे का शिकार हो जाता है। यानी मोटापे और ट्राइग्लिसराइड्स के बीच को नकारा नहीं जा सकता। अतः इसके इलाज हेतु वजन घटाने का प्रयास करना होगा ताकि ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर सामान्य पर लाया जा सके।
  • कार्बोहाइड्रेट में कटौती : जैसा कि विदित है जितना अधिक व्यक्ति द्वारा कार्बोहाइड्रेट का सेवन होगा, उतना ही अधिक ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा शरीर में बढ़ती चली जायेगी। अर्थात कार्बोहाइड्रेट शरीर  लाभकारी नहीं अपितु बहुत ही हानिकारक है। इसलिए अपने खानपान से कार्बोहाइड्रेट की कटौती करें और स्वस्थ रहें।
  • कैलोरी में कटौती : जो परिणाम कार्बोहाइड्रेट के हैं वही परिणाम कैलोरी इनटेक के भी हैं। मात्रा जितनी अधिक, शरीर उतना ही बीमार होगा क्योंकि उच्च मात्रा व्यक्ति के शरीर के लिए बहुत हानिकारक है। इसलिए कार्बोहाइड्रेट के साथ-साथ कैलोरी के सेवन से परहेज करें और अगर ऐसा संभव नहीं है तो इसकी मात्रा में कटौती अवश्य करें ताकि आपका सुंदर शरीर जीवन भर सुंदर रहे।
  • धूम्रपान और मदिरापान : सिगरेट और शराब के अनेक हानिकारक जिसमें रक्त संबंधी रोग, किडनी फेलियर, हाई बीपी या उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल तथा मोटापे की समस्या प्रमुख है। इसलिए ट्राइग्लिसराइड्स के इलाज के अंतर्गत  के सेवन से परहेज करना चाहिए।
  • मिठास में है ज़हर : कोई भी खाद्य पदार्थ जिसमें चीनी की मात्रा बहुत है या जिसमें मिठास बहुत है उनका सेवन आपके शरीर के लिए बिलकुल भी लाभकारी नहीं है। अत्यधिक और अनावश्यक चीनी का सेवन कोलेस्ट्रॉल, मोटापा, हाई बीपी और ट्राइग्लिसराइड्स का घातक कारक है। इसलिए जितना हो सके चीनी के सेवन से बचें ताकि आपके जीवन में मिठास ज़हर न बन जाए।
  • फास्ट फूड से बचें : बाजारू खाद्य पदार्थ जैसे फास्ट फूड में पोषक तत्वों के अलावा सब कुछ समाहित होता है। इसमें वो सभी विषाक्त तत्व हैं जो शरीर के लिए लाभकारी तो बिलकुल भी नहीं हैं। इनका सेवन बीपी, कोलेस्ट्रॉल और मोटापे को न्योता देता है। इसलिए फास्ट फूड से परहेज करें।
  • चाय और कॉफी : आज के समय में कैफीन युक्त पदार्थों और चाय के बिना रहा नहीं जा सकता लेकिन इस बात को भी झुठलाया सकता कि चाय और कॉफी का सेवन शरीर को बीमार, बहुत बीमार कर सकता है।

निष्कर्ष

ट्राइग्लिसराइड्स रक्त में पाया जाने वाला एक प्रकार का लिपिड है। अगर इसकी मात्रा अत्यधिक हो जाती है तो शरीर में इसके अनेक दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं। ये हानिकारक प्रभाव अनेक बीमारियों को जन्म देते हैं। बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल और मोटापा इसके प्रमुख लक्षण हैं। यही दोनों इसके प्रमुख कारण भी हैं।

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