प्लीहा क्या होता है? जानें इसके लक्षण, कारण, इलाज और बचाव के उपाय

शरीर में पायी जाने वाली कुल ग्रंथियों में तिल्ली सबसे बड़ी वाहिनीहीन ग्रंथि है। पुरानी लाल रक्त कोशिकाओं का नाश और निर्माण, श्वेत रक्त कोशिकाओं का निर्माण और प्लेटलेट्स का भंडारण तिल्ली या प्लीहा के बिना संभव ही नहीं है। ये कीटाणुओं का नाश करता है और ब्लड को फिल्टर करता है। इसलिए प्लीहा के बढ़ जाने से शरीर में अनेक समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इसलिए प्लीहा क्या होता है तथा इसके लक्षण और कारण की जानकारी अवश्य रूप से होनी चाहिए। आज के इस लेख में तिल्ली क्या है, तिल्ली क्या काम करता है, तिल्ली का आकार, तिल्ली के प्रभाव से जुड़ी जानकारी, तिल्ली के लक्षण, तिल्ली के कारण, तिल्ली के टेस्ट, तिल्ली का इलाज और निष्कर्ष पर विस्तार से प्रकाश डालने वाले हैं।

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तिल्ली क्या है?

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वाहिनीहीन ग्रंथि को मेडिकल टर्मिनोलॉजी में डक्टलेस ग्लैंड कहते हैं। तिल्ली का एक अन्य नाम प्लीहा भी है। संरचना के अनुसार यह बहुत नरम और स्पंजी है। अगर शरीर में इसके स्थान की बात करें तो ये पसलियों से घिरा रहता है। स्पष्ट और सटीक स्थान का उल्लेख करें तो यह बाईं पसली के ठीक नीचे स्थित होता है।

प्लीहा का दूसरा नाम क्या है?

चूंकि यह सबसे बड़ी वाहीनिविहीन ग्रंथि है इसलिए इसे ‘लांगेस्ट डकटलेस ग्लैंड’ भी कहते हैं। इसके अलावा इसे तिल्ली के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि मेडिकल टर्मिनोलॉजी में प्लीहा को ‘स्प्लीन’ कहते हैं।

तिल्ली क्या काम करता है?

आइए निम्न बिंदुओं के माध्यम से विस्तारपूर्वक जानें कि प्लीहा या तिल्ली क्या काम करता है :

  • कीटाणुओं का नाश करें : प्लीहा में श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं। इन कोशिकाओं में इतनी शक्ति और क्षमता होती है कि वे शरीर में प्रवेश कर चुके संक्रमण को धराशाई कर देते हैं। इसलिए तिल्ली की ये विशेषता है कि वह आक्रमण करने वाले कीटाणुओं से लड़ती है।
  • रक्त की छन्नी बने : तिल्ली का एक प्रमुख कार्य या उत्तरदायित्व ये है कि वे रक्त या ब्लड को फिल्टर करती है। फिल्टर की प्रक्रिया के माध्यम से पुरानी डैमेज(क्षतिग्रस्त) रेड ब्लड सेल को हटा दिया जाता है। इसलिए रक्त को तिल्ली की छन्नी कहते हैं।
  • सब कुछ कंट्रोल करे : डब्लू-बी-सी(व्हाइट ब्लड सेल) और आर-बी-सी(रेड ब्लड सेल) को नियंत्रित करने का कार्य तिल्ली का ही है। ये प्लेटलेट्स के स्तर को भी कंट्रोल करता है। इन तीनों को नियंत्रित या कंट्रोल करने के चलते तिल्ली को कंट्रोलर भी कहते हैं।

तिल्ली का आकार

प्रथम दृष्टया प्लीहा या तिल्ली अंडाकार लगता है। इसमें ऊपरी और निचली ध्रुव होते हैं। इसकी संरचना में ऊपरी, मध्यवर्ती और निचली सीमाएं शामिल होती हैं। तिल्ली में केवल दो सतह होती है – डायाफ्राम और इंटरनल। तिल्ली के आकार को लचीलापन तथा वृद्धि के अनुरूप ढलने की क्षमता फाइबर-इलास्टिक परत से प्राप्त होती है जिसमें ये लिपटा होता है। इसका आकार पुरुष, महिलाओं और बच्चों में अलग-अलग होता है। किसी वयस्क में इसका औसत आकार तीन इंच चौड़ा, पांच इंच लंबा और डेढ़ इंच मोटा होता है।

तिल्ली के प्रभाव से जुड़ी जानकारी

जब तिल्ली अस्थाई और अनावश्यक बढ़ोत्तरी करती है तो उस अवस्था को स्प्लेनोमेगाली कहते हैं। सरल-सहज भाषा में इसे बढ़े हुए प्लीहा कहते हैं। इस बढ़ोत्तरी के चलते दोनों प्रकार के कोशिकाओं की फ़िल्टर प्रक्रिया अनियंत्रित हो जाती है। फलस्वरूप बहुत अधिक मात्रा में प्लेटलेट्स नष्ट(प्लेटलेट्स ट्रैपिंग) होने लगते हैं। तिल्ली के सहारे शरीर में बार-बार एनीमिया जैसी बीमारी होने की संभावना बनी रहती है। संक्रमण होने का खतरा भी बना रहता है। 

तिल्ली के लक्षण

कई मामलों में देखा गया है कि तिल्ली के रोगी या मरीज में लक्षण दिखाई नहीं देते। यानी ये बीमारी बिना किसी लक्षण के भी व्यक्ति को अपनी चपेट में ले सकती है। लेकिन लक्षण की जांच में आसानी हो सके तथा इलाज का मार्ग प्रशस्त किया जा सके इस हेतु मेडिकल साइंस ने कुछ आम लक्षण की जानकारी खोज निकाली है जिसे हम आप तक आसान भाषा में मुहैया करा रहे हैं :

  • संक्रमण का खतरा बना रहता है : अगर कोई व्यक्ति तिल्ली की चपेट में आ चुका है तो निश्चित ही वह किसी भी संक्रामक रोग की चपेट में आसानी से आ सकता है। इसलिए तिल्ली के लक्षण स्वरूप व्यक्ति को बार-बार संक्रामक रोग होने लगता है। रक्त की सभी प्रकार कोशिकाएं तथा प्लेटलेट्स के अनियंत्रण से संक्रामक रोग को शरीर में जाने का अनुकूल माहौल मिल जाता है।
  • खून की कमी हो जाती है : जैसा कि विदित है कि तिल्ली या स्प्लेनोमेगाली के चलते शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं का स्तर कम हो जाता है इसलिए रोगी को खून की कमी वाली बीमारी हो जाती है। मेडिकल टर्मिनोलॉजी में खून की कमी को एनीमिया भी कहते हैं।
  • आसानी से रक्त का रिसाव होना : तिल्ली रोग में व्यक्ति का खून बहुत आसानी से बहने लगता है। श्वेत और लाल रक्त कोशिकाओं के स्तर में कमी तथा प्लेटलेट्स नष्ट के चलते रक्त का रिसाव बहुत आसानी से होने लगता है। हल्की चोट में भी अत्यधिक और अनावश्यक रक्त का रिसाव होता है।
  • पेट में दर्द : व्यक्ति के पेट में असहनीय पीड़ा होने लगती है। सरल-सहज भाषा में कहें तो एक चुभन भरा दर्द होता है। ये दर्द पेट के ऊपरी भाग के बाईं ओर प्रमुख रूप से होता है। पेट में तथा सीने में बेचैनी भी हो सकती है।
  • श्वास के चलते पेट दर्द : व्यक्ति जब भी सांस लेता है तो पेट के ऊपरी भाग या हिस्से में अचानक से दर्द होने लगता है। इसके अलावा गहरी या लंबी सांस लेने से ये दर्द और भी अधिक बढ़ जाता है। इसलिए तिल्ली में व्यक्ति को सांस लेने के कारण पेट में दर्द होता है।
  • भूख कम लगना : व्यक्ति की आहार कम हो जाती है और इसके चलते उसे भूख भी सामान्य की तुलना में बहुत कम लगती है। दरअसल पेट में बढ़े हुए प्लीहा के कारण अगर दो निवाला जाए तो पेट भरा-भरा लगता है तथा खाने की इच्छा भी बहुत कम होती है।
  • वजन घटने लगता है : चूंकि व्यक्ति को भूख कम लगती है तथा उसका आहार कम हो जाता है इसलिए बहुत अधिक संभावना बनी रहती है कि व्यक्ति का वजन अचानक से घटने लगे। बढ़े हुए प्लीहा भूख, आहार और वजन तीनों कम कर देते हैं।
  • अनावश्यक थकान और कमजोरी : शरीर में डब्लू-बी-सी(व्हाइट ब्लड सेल) और आर-बी-सी(रेड ब्लड सेल) दोनों की कमी से शरीर की ऊर्जा भी कम हो जाती है। इसलिए बिना कोई काम किए ही व्यक्ति को थकान की अनुभूति होने लगती है। ब्लड डिजीज(रक्त से संबंधित रोग) में थकान और कमजोरी सबसे आम और प्रमुख लक्षण है। व्यक्ति हमेशा थका हुआ रहता है।

तिल्ली के कारण

नीचे बताए गए कारणों को तिल्ली के घातक कारक भी कहते हैं। संक्रामक रोग और रक्त संबंधी रोग को सबसे प्रमुख कारण माना जाता है। हालांकि तिल्ली के एक नहीं बहुत सारे कारक हैं जिनका अध्ययन विस्तार से करने की आवश्यकता है।

आइए निम्न बिंदुओं के माध्यम से विस्तारपूर्वक जानें कि तिल्ली के कारण क्या है :

  • लीवर सिरोसिस के कारण : लीवर सिरोसिस को सहारा बना कर तिल्ली मानव शरीर में जन्म लेती है।  लीवर में किसी भी प्रकार की खराबी या रोग के चलते रक्त संबंधी बीमारियां भी आसानी से हो जाती हैं। इसके साथ ही लीवर सिरोसिस और तिल्ली के लक्षण भी समान है। शोध से यह पता चला है कि लिवर सिरोसिस होने पर व्यक्ति को तिल्ली भी हो जाती है।
  • रक्त का थक्का बनने के कारण : चूंकि तिल्ली रोग श्वेत और लाल रक्त कोशिकाओं के चलते होता है इसलिए अगर किसी व्यक्ति को रक्त के थक्के की शिकायत रहती है तो निश्चित ही ये तिल्ली का कारण बन सकता है।
  • रक्त संबंधी रोग के कारण : इस बात का विशेष ध्यान रखें कि अगर आपको खून से संबंधित कोई बीमारी है तो उसका इलाज तुरंत करें और उससे बचाव की राह भी आसान करें। बार-बार रक्त संबंधी रोग होना से टल्ली टूटने का डर रहता है।
  • संक्रामक रोग के कारण : अगर व्यक्ति को किसी प्रकार का संक्रामक रोग है उदाहरण स्वरूप मलेरिया जिसमें व्यक्ति के शरीर में परजीवी प्रवेश कर जाते हैं तो वह भी तिल्ली का कारण हो सकता है। संक्रामक रोग का सहारा लेकर भी तिल्ली किसी व्यक्ति के शरीर में अपना स्थान ग्रहण कर लेता है।
  • मेटाबॉलिक डिसऑर्डर के कारण : चयापचय रोग या मेटाबॉलिक डिसऑर्डर में व्यक्ति का कैलोरी, विटामिन और एंजाइम असंतुलित हो जाता है जिससे शरीर की आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पाती। कभी-कभी चयापचय रोग हार्मोन के असंतुलन के कारण भी होता है।
  • ल्यूकेमिया के कारण : इस बीमारी में श्वेत रक्त कोशिकाओं का कैंसर होता है। ऐसे में संभव है कि इन कोशिकाओं से संबंधित तिल्ली भी व्यक्ति को हो जाए। हालांकि ल्यूकेमिया के प्रारंभिक चरणों में ही तिल्ली होती है लेकिन हम कह सकते हैं कि ल्यूकेमिया के कारण तिल्ली होती है। लिम्फोमा में भी व्यक्ति को तिल्ली होने की संभावना बहुत अधिक रहती है।
  • एनीमिया के कारण : तिल्ली और एनीमिया दोनों के लक्षण एक समान हैं। दोनों में ही खून की कमी होती है इसलिए ये बहुत स्वाभाविक बात है कि खून की कमी वाले रोग अर्थात एनीमिया के कारण तिल्ली हो जाता है।
  • सड़क दुर्घटना के कारण : किसी भी वाहन को चलाने के उपरान्त अगर कोई व्यक्ति चोटिल या दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो इस बात की बहुत अधिक संव्हावना है कि तिल्ली टूट जाती है। शरीर पर लगी चोट या घाव तिल्ली को तोड़ने के सबसे बड़े कारणों में गिनी जाती है। संसार में लोगों की सबसे अधिक मौत सड़क दुर्घटना में ही होती है। इसलिए वाहन चलाते समय सुरक्षा का पूरा ख्याल रखें।
  • रग्बी, फ़ुटबाल या अन्य खेलों के कारण : तीव्र, फुर्ती युक्त खुरदुरे मैदानों में अत्यधिक दौड़-भाग वाले तथा बहुत अधिक शारीरिक ऊर्जा की खपत करने वाले खेल जैसे रग्बी, फुटबॉल, वॉलीबॉल खेलने पर लगी चोट से भी तिल्ली टूट जाती है। इसलिए खेल के समय भी अपनी सुर्खा का विशेष ध्यान रखें।

तिल्ली के टेस्ट

इलाज से पूर्व कुछ परीक्षण या टेस्ट कराने की आवश्यकता होती है जो डॉक्टर द्वारा सुझाया जाता है। आइए जानें वे सभी टेस्ट जो इलाज का मार्ग प्रशस्त करते हैं : 

  • सी-बी-सी टेस्ट : कंप्लीट ब्लड काउंट टेस्ट को सी-बी-सी टेस्ट कहते हैं। सीबीसी की सहायता से श्वेत और लाल रक्त कोशिकाओं(व्हाइट ब्लड सेल और रेड ब्लड सेल) की संख्या तथा स्थिति का पता चलता है। ये कोशिकाएं ही तो तिल्ली के रोग होने या ना होने में जिम्मेदार होती हैं। इसके अलावा प्लेटलेट्स की संख्या की गणना भी सीबीसी टेस्ट में होती है जो तिल्ली की जानकारी प्राप्त करने में मदद करती है।
  • अल्ट्रासोनोग्राफी : सॉफ्ट टिश्यू अर्थात मुलायम कोशिकाओं की संपूर्ण जांच और उससे जुडी वृहद जानकारी को प्राप्त करने के लिए जिस परीक्षण की सलाह डॉक्टर द्वारा दी जाती है उसे अल्ट्रासोनोग्राफी कहते हैं। शरीर के भीतर की मुलायम कोशिकाएं जैसे ग्रंथि और रक्त कोशिकाएं आदि की जांच इस परीक्षण से सफल होती है।
  • सीटी स्कैन : एक्स रे तकनीक के माध्यम से शरीर के भीतरी संरचना का स्पष्ट छायाचित्र वृहद और विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। बोन, मांसपेशियां, रक्त कोशिकाएं आदि की जांच इस टेस्ट के माध्यम से सफल होती है।
  • एम-आर-आई टेस्ट : मैग्नेटिक इमेजिंग रेडिएशन टेस्ट में मैग्नेटिक(चुंबकीय) क्षेत्र और रेडियो तरंगों के माध्यम से शरीर के उन अंगों का चित्र खींचा जाता है जिनका छायाचित्र एक्स रे में नहीं देखा जा सकता है।
  • लीवर फंक्शन टेस्ट : रक्त के पोषक तत्वों और एंजाइम की जांच तथा अन्य जानकारी प्राप्त करने के लिए इस परीक्षण या जांच की आवश्यकता होती है। टेस्ट करने के तरीके तथा परिणाम अवलोकन पर ही टेस्ट की उपयोगिता हो पाती है अन्यथा नहीं।
  • बोन मैरो बायोप्सी : नाम से ही स्पष्ट है कि बोन मैरो या अस्थि मज्जा की जांच के लिए जिस परीक्षण को डॉक्टर द्वारा सुझाया जाता है उसे बोन मैरो बायोप्सी कहते हैं। इस परीक्षण या टेस्ट की सहायता से अस्थि मज्जा के सेहत का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा बोन मैरो द्वारा ब्लड सेल का निर्माण हो रहा है या नहीं इसका भी पता इस टेस्ट के माध्यम से लगाया जा सकता है।

तिल्ली का इलाज

जैसा कि विदित है तिल्ली अपने एकल अस्तित्व में रहने वाली, उत्पन्न होने वाली या विकसित होने वाली बीमारी नहीं है। किसी अन्य बीमारी या कारक को सहारा बना कर वह मनुष्य के शरीर में प्रवेश करती है। इसलिए तिल्ली के इलाज और बचाव में उसके घातक कारकों या वह बीमारी जिसके सहारे वह जन्म लेती है, उसका इलाज करना आवश्यक है। अर्थात तिल्ली के विभिन्न कारणों का संज्ञान कर उचित इलाज कर लेने से तिल्ली का भी उपचार हो जाता है। गंभीर परिस्थिति में प्लीहा जानलेवा संक्रमण का रूप ले सकता है। इसलिए ऐसी अवस्था में डॉक्टरों द्वारा सर्जरी की सलाह दी जाती है। घातक और जानलेवा होने के चलते सर्जरी अंतिम विकल्प माना जाता है।

निष्कर्ष

प्लीहा में संक्रमण से लड़ने की शक्ति होती है इसलिए वह कीटाणुओं से लड़ता है और ब्लड को फिल्टर करता है। साथ ही वह पुरानी आरबीसी को नष्ट कर उसका पुनः निर्माण करता है तथा डब्ल्यूबीसी का भी निर्माण कार्य करता है। प्लेटलेट्स का भंडारण कराने वाला प्लीहा अगर बढ़ जाए तो शरीर में अनेक प्रकार की समस्याएं पैदा होने लगती हैं। हालांकि प्लीहा या तिल्ली तभी व्यक्ति के शरीर में स्थान ग्रहण करता है जब कोई अन्य रोग को सहारा बना लेवे।

क्या आपके किसी चित-परिचित को प्लीहा जैसी गंभीर, घातक और जानलेवा बीमारी है? क्या धन की कमी के चलते उनका टेस्ट और इलाज नहीं हो पा रहा है? तो निराश होने की आवश्यकता नहीं है! आपकी तिल्ली का ताबड़तोड़ समाधान क्राउडफंडिंग में है। क्राउडफंडिंग के कैंपेन के माध्यम से आप अपनी आवश्यकता को उन लोगों तक पहुंचाते हैं जो बुरे समय में आपकी मदद कर सकते हैं।

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