रक्त में वह सफेद कोशिकाएं जो किसी भी प्रकार के संक्रमण से मानव शरीर का बचाव करती है, उसे लिम्फोसाइट्स कहते हैं। उसकी संख्या में हुई अनावश्यक वृद्धि से जो बीमारी हो जाती है, मेडिकल टर्मिनोलॉजी में उसे लिम्फोसाइटोसिस कहते हैं। सौ बात की एक बात, जीवन के बढ़ते क्रम में लिम्फोसाइट्स महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आज के इस लेख में लिम्फोसाइट्स क्या है, लिम्फोसाइट्स की नार्मल रेंज, लिम्फोसाइट्स कहाँ होती है, लिम्फोसाइट्स बढ़ने से कौन सी बीमारी होती है, लिम्फोसाइट्स की कमी से कौन सा रोग होता है, लिम्फोसाइट्स के प्रकार, लिम्फोसाइट्स के लक्षण, लिम्फोसाइट्स के कारण, लिम्फोसाइट्स टेस्ट से जुड़ी जानकारी, लिम्फोसाइट्स का इलाज और निष्कर्ष पर विस्तार से चर्चा करने वाले हैं।
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Table of Contents
- लिम्फोसाइट्स क्या है? (Lymphocytosis Meaning In Hindi)
- लिम्फोसाइट्स की नार्मल रेंज
- लिम्फोसाइट्स कहाँ होती है?
- लिम्फोसाइट्स बढ़ने से कौन सी बीमारी होती है?
- लिम्फोसाइट्स की कमी से कौन सा रोग होता है?
- लिम्फोसाइट्स के प्रकार
- लिम्फोसाइटोसिस के लक्षण
- लिम्फोसाइटोसिस के कारण
- लिम्फोसाइट्स टेस्ट से जुड़ी जानकारी (Lymphocytosis Test In Hindi)
- लिम्फोसाइट्स का इलाज
- निष्कर्ष
लिम्फोसाइट्स क्या है? (Lymphocytosis Meaning In Hindi)

इस बारे में आप पूर्व में ही पढ़ चुके हैं कि रक्त की वे सफेद कोशिकाएं जो संक्रमण से लड़ती हैं, उसे लिम्फोसाइट्स कहते हैं। इसका एक अन्य नाम ‘मुख्य प्रतिरोधक कोशिकाएं’ भी है। इसका मुख्य कार्य किसी भी प्रकार के संक्रमण से शरीर का बचाव करना है। अर्थात यह शरीर को वायरस के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करते हुए उसके विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।
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लिम्फोसाइट्स की नार्मल रेंज
एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति के प्रति 1 माइक्रोलीटर रक्त में नार्मल रेंज 1000 से 4800 के बीच होती है। वहीं अगर हम बच्चों के नार्मल रेंज की बात करें तो ये 3000 से 9500 के बीच होती है। इसकी गणना करने के लिए प्रतिशत के स्थान पर संख्या को मापक के रूप में चुना जाता है।
लिम्फोसाइट्स कहाँ होती है?
बोन मैरो अथवा अस्थि मज्जा में विकसित होते हैं। अस्थि मज्जा में बनने वाले लिम्फोसाइट्स को थाइमस ग्रंथि कहते हैं। अर्थात मानव शरीर का बोन मैरो ही इसका निर्माण करता है। निर्माण की ये प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।
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लिम्फोसाइट्स बढ़ने से कौन सी बीमारी होती है?
जब लिम्फोसाइट्स की संख्या में (वयस्क या बच्चों की विभिन्न नार्मल रेंज के अनुसार) बढ़ोत्तरी हो जाती है तो शरीर में ल्यूकेमिया या लिम्फोमा जैसे संक्रामक रोग हो जाते हैं। संख्या में हुई अनावश्यक और असमान्य बढ़ोत्तरी के कारण अनेक प्रकार की स्वास्थ समस्याएं तथा अगणित लक्षण प्रदर्शित होने लगते हैं।
लिम्फोसाइट्स की कमी से कौन सा रोग होता है?
लिम्फोसाइट्स की कमी को मेडिकल टर्मिनोलॉजी में लिम्फोपीनिया भी कहते हैं। अगर किसी व्यक्ति के रक्त में T4 नामक लिम्फोसाइट्स की कमी हो जाए तो उसका टीएसएच(थायराइड का हार्मोन) अनियंत्रित हो सकता है। साथ ही इसके कम होने से एंटीबॉडी की कमी हो जाती है जिस कारण रोग से लड़ने की शक्ति भी धीरे-धीरे कम होने लगती है। इंफेक्शन और बुखार होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
लिम्फोसाइट्स के प्रकार
लिम्फोसाइट्स दो प्रकार के होते हैं जिनकी विस्तारपूर्वक चर्चा निम्न बिंदुओं के माध्यम से की गई है :
- टी-लिम्फोसाइट्स : ये ‘सेल की मध्यस्थता वाली इम्यून’ के लिए जानी जाती हैं। इनमें इतनी क्षमता और शक्ति होती है कि ये कैंसर के सेल को तहस-नहस कर सकती हैं। पैथोजन मिटाने के लिए बी-लिम्फोसाइट्स अकेले कार्य नहीं करता अपितु वह टी-लिम्फोसाइट्स की सहायता से ऐसा कर पाता है। इसका एक अन्य नाम टी-सेल भी है।
- बी-लिम्फोसाइट्स : बोन मैरो में पाई जाने वाली बी-लिम्फोसाइट्स एंटीबॉडी बनाने के लिए जानी जाती हैं। इसका एक अन्य नाम बी-सेल भी है। बी-सेल द्वारा जो प्रोटीन बनाया जाता है उसे ही एंटीबॉडी कहते हैं। टी-सेल की तरह बी-सेल भी इम्यून सिस्टम का महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि ये एडेप्टिव होते हैं अर्थात परिस्थितियों के अनुसार इम्यून पैदा करते हैं।
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लिम्फोसाइटोसिस के लक्षण
वैसे तो लिम्फोसाइटोसिस के लक्षण दिखाई नहीं देते किन्तु लिम्फोसाइट्स का मुख्य कार्य संक्रमण से लड़ना होता है इसलिए लिम्फोसाइटोसिस में संक्रामक रोग के लक्षण संक्रमित व्यक्ति में लक्षित होते हैं।
आइए विस्तार से जानें लिम्फोसाइटोसिस के लक्षण जो कि निम्नलिखित हैं :
- तेज बुखार : चूंकि बी-सेल की कमी से शरीर में एंटीबॉडी नहीं बन पाते इसलिए ऐसी अवस्था में व्यक्ति को तेज बुखार या तीव्र ज्वर आने लगता है। ये बुखार संक्रामक रोग के बुखार जैसा ही होता है तथा शरीर किसी भट्टी की तरह तपने लगता है।
- लगातार बहती नाक : सर्दी और जुकाम की तरह या संक्रमण से होने वाले श्वास रोग की तरह इस बीमारी में भी नाक से पानी के घनत्व वाला विकार रूपी द्रव्य लगातार बहता रहता है। चूंकि नाक में विकार है इसलिए नाक भरी-भरी लगती है।
- खांसी : संक्रमण से होने वाले श्वास रोग में खांसी को भी प्रमुख रूप से लक्षण के रूप में चिन्हित किया जाता है जो लिम्फोसाइटोसिस में भी दिखाई देता है। हालांकि खांसी सूखी होगी या गीली इसको लेकर कोई ठोस कारण नहीं है।
- सांस लेने में समस्या : लिम्फ नोड में सूजन होने के कारण सांस लेने में समस्या का सामना करना पड़ सकता है। किसी भी प्रकार के संक्रामक रोग में लिम्फ नोड में सूजन आ ही जाती है तो ऐसे में श्वसन तंत्र भी प्रभावित हो जाता है। दरअसल फेफड़ों के खुलने और सिकुड़ने की प्रक्रिया से व्यक्ति सांस ले पाता है लेकिन बीमारी में फेफड़े का सिकुड़न और खुलना ठीक से नहीं हो पाता।
- त्वचा पर दाने या चकत्ते : लिम्फोसाइटोसिस में रक्त की श्वेत कोशिकाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी होती है। ऐसे में रक्त से जुड़े लक्षण भी इस बीमारी में देखने को मिलते है जैसे शरीर पर दाने की शिकायत या चकत्ते की समस्या। रक्त या ब्लड में एंटीऑक्सीडेंट की कमी से दाने, छाले या त्वचा की अन्य समस्याएं पैदा होती हैं।
- जलन और दर्द : अगर रक्त से संबंधित शरीर के सभी भागों में दाने हैं तो दर्द होना स्वाभाविक है। ये दाने से उतपन्न असहनीय पीड़ा जोड़ों के दर्द से अलग है। इन दानों के चलते जलन की भी शिकायत रहती है।
- मुँह के छाले : विरले ही सही लेकिन कुछ मामलों में ये भी देखा गया है कि रोगियों के मुंह में छाले पड़ जाते हैं। रक्त संबंधी रोगों में छाले, दाने और चकत्ते पड़ना सबसे प्रमुख लक्षणों में से एक है।
- अनावश्यक थकान और कमजोरी : चूंकि संक्रमण में संक्रमित व्यक्ति की ऊर्जा स्वस्थ शरीर की तुलना में बहुत अधिक खपत होती है इसलिए अनावश्यक थकान और कमजोरी बनी रहती है। बिना कोई परिश्रम किए संक्रमित व्यक्ति को ऊर्जा की कमी की निरंतर अनुभूति होती है।
- भूख नहीं लगना : इन लक्षणों के चलते व्यक्ति की दिनचर्या प्रभावित हो जाती है इसलिए वह भूख और प्यास खो बैठता है। तत्पश्चात् सामान्य परिस्थितियों की तुलना में संक्रमित व्यक्ति को भूख कम लगती है। फलस्वरूप व्यक्ति का वजन घटने लगता है।
- उल्टी और मतली : शरीर में संक्रमण का शीघ्र प्रक्रिया के माध्यम से व्यापक विस्तार थकान और कमजोरी के अलावा उल्टी और मतली की भी समस्या को जन्म देता है। जी मचलने की भी शिकायत रहती है। इसके अतिरिक्त घबराहट भी हो सकती है।
- जोड़ों में दर्द और सूजन : केवल बदन दर्द ही नहीं अपितु संक्रमित व्यक्ति के जोड़ों में भी दर्द की समस्या हो जाती है। दरअसल ये दर्द सूजन के कारण होता है।
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लिम्फोसाइटोसिस के कारण
लिम्फोसाइटोसिस के कारण एक नहीं है। असल में मेडिकल हिस्ट्री, व्यक्ति का इम्यून तथा अन्य प्रभावी कारक ही इसे शरीर में पनपे देते हैं। ऐसे में लिम्फोसाइटोसिस के कारण को समझना जागरूकता की और बढ़ता हुआ कदम और मेडिकल साइंस में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
आइए विस्तार से जानें लिम्फोसाइटोसिस के कारण जो कि निम्नलिखित हैं :
- संक्रमण का इतिहास : अगर व्यक्ति को पूर्व में या हाल-फिलहाल में संक्रामक रोग हुआ है तो लिम्फोसाइटोसिस होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। एक बार कोई व्यक्ति संक्रमण का शिकार हो जाए तो उसे ठीक होने में समय लगता है और इसी बीच व्यक्ति के कमजोर इम्यून को सहारा बना कर संक्रमण पुनः शरीर में प्रवेश कर जाता है।
- एडिनोवायरस इंफेक्शन के कारण : एक ऐसा इंफेक्शन जिसमें संक्रमित व्यक्ति को माइल्ड कोल्ड या फ्लू के लक्षण प्रदर्शित होते हैं। कमजोर इम्यून सिस्टम, श्वास रोग और हृदय रोग के मेडिकल इतिहास वाले रोगियों को एडिनोवायरस का इंफेक्शन होता है।
- काली खांसी के कारण : काली खांसी का एक अन्य नाम पर्टुसिस भी है। इस रोग को श्वसन संक्रामक रोग की श्रेणी में रखा जाता है। अपनी प्रवृत्ति के अनुसार ये एक घातक और जानलेवा बीमारी है। ये हवा के माध्यम से होने वाला संक्रामक रोग है जो संक्रमित रोगी के संपर्क में आने से भी हो जाता है।
- हेपेटाइटिस और चिकन पॉक्स के कारण : हेपेटाइटिस और चिकन पॉक्स के चलते लिम्फोसाइटोसिस की समस्या व्यक्ति में जन्म ले सकती है। अधिकांश रक्त संबंधी बीमारियों में लक्षण एक जैसे ही होते हैं इसलिए किसी एक के होने के पश्चात दूसरी रक्त संबंधी बीमारी होना स्वाभाविक बात है।
- कंठमाला बीमारी के कारण : कंठमाला बीमारी को मेडिकल टर्मिनोलॉजी में ‘मम्प्स’ कहते हैं। ये एक ऐसा संक्रामक वायरल बुखार है जिसमें पैरासाइट्स के शरीर में प्रवेश करने के पश्चात लार ग्रंथियों में सूजन आ जाती है। चूंकि ये संक्रामक रोग की श्रेणी में आता है इसलिए लिम्फोसाइटोसिस इस बीमारी की सीढ़ी पर पाँव रख कर शरीर में घर कर लेता है।
- ल्यूकेमिया या लिम्फोमा : ब्लड कैंसर जैसे ल्यूकेमिया या लिम्फोमा के प्रथम संकेत के रूप में लिम्फोसाइटोसिस को चिन्हित किया जाता है। हालांकि जिस व्यक्ति में लिम्फोसाइट्स के संख्या अधिक हो तो यह आवश्यक नहीं है कि वह ब्लड कैंसर को ही जन्म दे। ये सामान्य केस नहीं है।
- खसरा बीमारी के कारण : लाल चकत्ते वाली संक्रामक बीमारी खसरा और लिम्फोसाइटोसिस के लक्षण में अंतर कर पाना बहुत कठिन है इसलिए खसरा से संक्रमित व्यक्ति को लिम्फोसाइटोसिस होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है। खसरा से संक्रमित व्यक्ति को लाल चकत्ते के अलावा सूखी खांसी, नाक बहना और लाल आँखों की भी शिकायत रहती है।
- साइटोमेगालोवायरस के कारण : थूक, रक्त, पेशाब, वीर्य और स्तन के दुग्ध से फैलने वाले संक्रामक रोग को साइटोमेगालोवायरस कहते हैं। ये सीधे संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से या किसी शिशु के द्वारा भी हो सकता है।
- एचआईवी के कारण : ह्यूमन इम्यूनो वायरस एक ऐसा रोग है जो भले छूने या साथ में खाना खाने से नहीं फैलता लेकिन ये एक ऐसी बीमारी है जिसमें व्यक्ति का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। अर्थात शरीर की प्रतिरोधक क्षमता या रोग से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है इसलिए इस बीमारी का सहारा लेकर लिम्फोसाइटोसिस शरीर में प्रवेश कर जाती है।
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लिम्फोसाइट्स टेस्ट से जुड़ी जानकारी (Lymphocytosis Test In Hindi)
लिम्फोसाइटोसिस की जांच के लिए जिस टेस्ट या परीक्षण की आवश्यकता होती है उसे सी-बी-सी कहते हैं। सीबीसी अर्थात कंप्लीट ब्लड काउंट। सीबीसी की सहायता से मनुष्य के भीतर रक्त से जुड़ी या उससे संबंधित सभी रोगों तथा उसके स्वास्थ की सटीक जांच हो सकती है। ये रेड ब्लड सेल और व्हाइट ब्लड सेल की संख्या की गणना करने का सबसे अच्छा टेस्ट है। यानी सीबीसी की सहायता से लिम्फोसाइट्स की कुल संख्या पता चल जाती है।
इसके अतिरिक्त बोन मैरो बायोप्सी भी डॉक्टरों द्वारा सुझाया जाता है। नाम से ही स्पष्ट है कि ये बीमारी बोन मैरो की जांच को समर्पित परीक्षण है। बोन मैरो के भीतर मौजूद मुलायम कोशिकाओं की जांच से इम्यून सिस्टम से जुड़ी जानकारियां इकट्ठी होती है। ब्लड सेल्स का निर्माण सामान्य है या असामान्य इसका भी पता इस परीक्षण से चल जाता है।
इस जांच से न केवल लिम्फोसाइटोसिस की जानकारी प्राप्त होती है अपितु इसके चलते जो अन्य बीमारियां हुई हैं उनका भी संज्ञान लिया जा सकता है जैसे ‘ब्लड कैंसर’ का पता लगाना।
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लिम्फोसाइट्स का इलाज
लिम्फोसाइटोसिस एक ऐसी बीमारी है जो किसी अन्य बीमारी को सहारा बना कर शरीर में प्रवेश करती है इसलिए लिम्फोसाइटोसिस का इलाज तभी संभव है जब उससे जुड़ी बीमारी का इलाज किए जाने पर लिम्फोसाइटोसिस का भी इलाज किया जा सकता है। आइए इसे कुछ उदाहरण से समझें।
जैसे अगर किसी व्यक्ति को हेपेटाइटिस, चिकन पॉक्स के कारण लिम्फोसाइटोसिस हुआ है तो हेपेटाइटिस और चिकन पॉक्स का इलाज करना आवश्यक है क्योंकि हेपेटाइटिस और चिकन पॉक्स को सहारा बना कर ही लिम्फोसाइटोसिस शरीर में प्रवेश करता है।
यह भी ध्यान रहे कि लिम्फोसाइटोसिस एक ऐसा संक्रामक रोग है जो कमजोर इम्यून सिस्टम वाले शरीर को अपना शिकार बनाता है। इसलिए जिस व्यक्ति का इम्यून सिस्टम अर्थात प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है तो डॉक्टर द्वारा इम्यूनोथेरेपी की सलाह दी जाती है। हालांकि इम्यूनोथेरेपी एक ऐसी जटिल प्रक्रिया है जिसमें उपचार के माध्यम से मनवांछित परिणाम प्राप्त करना कठिन कार्य है।
निष्कर्ष
जैसा कि विदित है कि रक्त में लिम्फोसाइट्स की संख्या व्यक्ति के आयु पर निर्भर करती है। इसकी बढ़ोत्तरी से हुई बीमारू अवस्था को लिम्फोसाइटोसिस कहते हैं। ये कमजोर इम्यून सिस्टम और संक्रामक या रक्त संबंधी रोगों का सहारा लेकर शरीर में प्रवेश करती है। इसलिए अगर अन्य बीमारियों का इलाज हो जाए तो इसका भी इलाज किया जा सकता है।
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