फेफड़ों का प्रमुख कार्य वातावरण से ऑक्सीजन लेकर रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य अंगों तक पहुंचाना है। अगर फेफड़ों में इन्फेक्शन हो जाए तो शरीर में अनेक प्रकार की समस्याएं घर कर लेती हैं। ऑक्सीजन जिस अंग के माध्यम से शरीर को प्राप्त होता है उसे फेफड़े कहते हैं। अंग्रेजी में इसे लंग्स भी कहते हैं। फेफड़े श्वसन तंत्र का सबसे प्रमुख अंग हैं। आज के इस लेख में लंग इन्फेक्शन क्या है, फेफड़ों का संक्रमण कितने प्रकार का होता है, लंग में इन्फेक्शन के लक्षण, लंग इन्फेक्शन के कारण, इन्फेक्शन में क्या खाना चाहिए, लंग इन्फेक्शन के घरेलू उपचार और निष्कर्ष पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
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लंग इन्फेक्शन क्या है? (Lungs Infection In Hindi)

बैक्टेरिया, वायरस, फंगस या अन्य किसी भी प्रकार का बाहरी तत्व जब एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में, विशेष रूप से फेफड़े में प्रवेश के पश्चात स्थान ग्रहण कर लेता है और उसके कार्यों को प्रभावित करते हुए संक्रमण का मार्ग प्रशस्त कर देता है तो उस अवस्था को लंग इन्फेक्शन या फेफड़े में इन्फेक्शन कहते हैं। फेफड़ों में छोटी-छोटी थैलियां होती हैं जो हवा को भरने और छानने के काम आती हैं। संक्रमण इन्हीं थैलियों में सबसे पहले होता है। इसके चलते छाती में सूजन आ जाती है जो श्वास रोग को जन्म देती है।
फेफड़ों का संक्रमण के विभिन्न प्रकार
फेफड़ों के संक्रमण के एक नहीं अनेक प्रकार हैं जिसके बारे में सामान्य जानकारी होना जागरूकता और सतर्कता के प्रति सबसे आसान तरीका है। हालांकि ये सभी बीमारियां श्वास रोग की श्रेणी में आते हैं इसलिए सभी के लक्षण में बहुत अधिक अंतर देखने को नहीं मिलता।
आइए जानें फेफड़ों के विभिन्न प्रकार जो कि निम्नलिखित है :
- निमोनिया
- अस्थमा या दमा
- कुप्र
- फ्लू
- कोविड
- सर्दी जुकाम
- टीबी या ट्यूबरक्लोसिस
- ब्रोंकाइटिस
- ब्रोंकियोल्स
- एंटरोवायरस
- पर्टुसिस या काली खांसी
लंग में इन्फेक्शन के लक्षण (Lung Infection Symptoms In Hindi)
फेफड़े में संक्रमण के लक्षण छिपे हुए नहीं होते अर्थात संक्रमित व्यक्ति में लंग में इन्फेक्शन के लक्षण आसानी से दिखाई देते हैं। इन लक्षण की जांच आसानी से हो सकती है क्योंकि उन्हें भ्रामक लक्षण की संज्ञा नहीं दी गयी है। संक्रमण के लक्षण दो प्रकार के हैं :
- बाहरी या दैहिक लक्षण : इन्फेक्शन के वो लक्षण जो संक्रमित व्यक्ति में स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होते हैं तथा संक्रमित व्यक्ति के अतिरिक्त कोई भी उनकी पहचान आसानी से कर सकता है। चूंकि इन लक्षणों को शरीर व्यक्त करता है इसलिए इन्हें शारीरिक या दैहिक लक्षण भी कहते हैं।
- भीतरी/अंदरूनी/आंतरिक लक्षण : इन्फेक्शन के वो लक्षण जो संक्रमित व्यक्ति को भीतर से महसूस तो होते हैं लेकिन उसका शरीर बाहर से प्रदर्शित नहीं करता। इन लक्षणों को केवल संक्रमित व्यक्ति ही पहचान कर सकता है क्योंकि ये उसके भीतर ही रहते हैं।
आइए सबसे पहले जानें इन्फेक्शन के बाहरी या दैहिक लक्षण :
- बार-बार खांसी आना : संक्रमित व्यक्ति में लगातार खांसी के लक्षण दिखाई देते हैं। संक्रमित व्यक्ति को खांसी सूखी या गीली दोनों प्रकार की खांसी आ सकती है। दोनों प्रकार में केवल इतना अंतर है कि सूखी खांसी में बलगम नहीं होता और गीले में होता है। छाती में द्रव्य रुपी विकार अर्थात कफ या बलगम के चलते कंजेशन जमा हो जाता है। सीने में जमा कंजेशन ठीक वैसे ही है जैसे किसी सड़क पर ट्रैफिक जाम लग जाना। इस कंजेशन के चलते न तो व्यक्ति ठीक से सांस ले पाता है और न ही उसके फेफड़े ठीक तरह से काम कर पाते हैं। इस विकार को बाहर निकालने के लिए खांसी शुरू हो जाती है।
- गले में खराश : लगातार खांसी के चलते गले में खराश होने लगती है। कारणवश संक्रमित व्यक्ति का गला बैठ जाता है और आवाज़ कर्कश हो जाती है। ऐसा लगता है कि गले में कुछ फंसा हुआ है। उसे बाहर निकालने की चेष्टा अमूमन असफल रहती है।
- घरघराहट की शिकायत : संक्रमण के चलते सांस लेते या छोड़ते समय मोटी आवाज़ वाली सीटी की ध्वनि निर्मित होने लगती है। संक्रमण में छाती का कंजेशन सांस लेते समय परेशानी का कारक होता है इसलिए सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया में एक अजीब सी सीटी बजती है।
- कफ या बलगम की शिकायत : संक्रमण में व्यक्ति की छाती के अंदर द्रव्य रुपी विकार बनने लगता है जो खांसी के माध्यम से बाहर निकलता है। कफ या बलगम वाली खांसी को गीली खांसी भी कहते हैं। ये बलगम देखने में पारदर्शी हो सकता है अन्यथा इसका रंग भूरा, हरा, पीला या लोहे के जंग के समान भी हो सकता है।
- गले में दर्द, जलन और खुजली : गले में खराश और खांसी अंततः दर्द और जलन का रूप ले लेती है। इसके पीछे का कारण गले में बनने वाला कफ है। इसके अतिरिक्त संक्रमित व्यक्ति को गले में खुजली भी होने लगती है।
- बार-बार छींक आना : संक्रमित व्यक्ति को बार-बार छींक आती है। लगातार छींक आना संक्रमण के लक्षण के रूप में चिन्हित किया जाता है। एक स्वस्थ मनुष्य को दिन में एक बार छींक आती है। हालांकि छींक आना संक्रमण का लक्षण नहीं है लेकिन बार-बार और अनावश्यक छींक आना संक्रमण का लक्षण हो सकता है।
- नाक भरी रहती है : संक्रमित व्यक्ति के नाक में द्रव्य रुपी विकार जमा हो जाता है। नाक के बाल छन्नी की तरह काम करते हैं। इनका मुख्य कार्य सूक्ष्म किंतु दूषित पदार्थों को श्वास नालियों में जाने से रोकना है। लेकिन संक्रमित व्यक्ति के नाक के बाल ये काम करना बंद कर देते हैं और फलस्वरूप नाक में कचरा जमा होने लगता है।
- बहती नाक : जैसा कि विदित है कि संक्रमण के चलते व्यक्ति की नाक में द्रव्य जमा हो जाता है। पानी के समान प्रवाह और घनत्व रखने वाला ये द्रव्य स्वतः नाक से बाहर आने लगता है। इसलिए यह सबसे आम लक्षण है।
- बंद नाक की समस्या : बंद नाक संक्रमित व्यक्ति में दिखने वाले लक्षणों में से एक है। इस स्थिति में नाक से सांस लेना कठिन कार्य जान पड़ता है।
- बुखार और ठंड : संक्रमण के कारण व्यक्ति को ज्वर या बुखार आ जाता है। ऐसी स्थिति में शरीर किसी भट्टी की भांति तपने लगता है। चूंकि बुखार के चलते शरीर में तापमान अचानक से बढ़ जाता है इसलिए व्यक्ति को ठंड लगने लगती है।
- दस्त : संक्रमण के चलते व्यक्ति को पेट से जुड़ी समस्याएं जैसे अपच, जुलाभ या दस्त की भी शिकायत हो सकती है। हालांकि इन्फेक्शन में यह लक्षण सभी मरीजों में दिखे यह आवश्यक नहीं किंतु ये एक आम और प्रचलित लक्षण अवश्य है।
आइए अब जानें इन्फेक्शन के अंदरूनी लक्षण :
- सीने में दर्द की समस्या : छाती में संक्रमण फैलने के चलते सूजन हो जाती है। सूजन के चलते सीने में दर्द होने लगता है। सूजन होने के कारण सांस लेते समय संक्रमित व्यक्ति को असहनीय पीड़ा का भी समाना करना पड़ता है। लेकिन ध्यान रहे कि अगर व्यक्ति को फेफड़ों में संक्रमण के साथ-साथ सीने में दर्द की शिकायत हो तो ही इसे इंफेक्शन का लक्षण माना जाए अन्यथा नहीं।
- सिरदर्द की शिकायत : संक्रमित व्यक्ति को बार-बार सिरदर्द की समस्या से जूझना पड़ता है। हालांकि यह आवश्यक नहीं कि सामान्य परिस्थितियों में होने वाला सिरदर्द इंफेक्शन का लक्षण ही हो इसलिए अगर फेफड़ों में संक्रमण के साथ-साथ सिरदर्द की शिकायत हो तो ही इसे इंफेक्शन का लक्षण माना जाए अन्यथा नहीं।
- अनावश्यक थकान और कमजोरी : संक्रमित व्यक्ति को बिना कोई परिश्रम किए थकावट की अनुभूति होने लगती है। इस कारण शरीर हमेशा निढाल रहता है। प्रतिरोधक क्षमता इन्फेक्शन को हराने का भरपूर प्रयास कर रहा है और इसके चलते शरीर की ऊर्जा कम होने लगती है।
- मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द : संक्रमण मांसपेशियों और हड्डियों पर कुछ ऐसा प्रभाव छोड़ता है कि संक्रमित व्यक्ति को मांसपेशियों में असहनीय पीड़ा होने लगती है। व्यक्ति को बार-बार होने वाला ये दर्द लंबे समय तक रहता है। इसके अलावा संक्रमण के चलते जोड़ों में भी दर्द की शिकायत रहती है।
- भूख नहीं लगना : संक्रमित व्यक्ति को भूख नहीं लगती। सर्दी, जुकाम तथा अन्य लक्षणों की बार-बार पुनरावृत्ति होने के चलते व्यक्ति की सामान्य दिनचर्या प्रभावित हो जाती है। संक्रमित व्यक्ति को भूख कम लगती है और उसका आहार कम हो जाता है। फलस्वरूप उसका वजन भी घटने लगता है।
लेकिन इन लक्षणों के अलावा संक्रमित व्यक्ति में कुछ ऐसे संकेत भी दिखाई दे सकते हैं जो आम न हो। भले ही ये लक्षण आम न हो लेकिन जागरूकता और सतर्कता के अंतर्गत उन्हें भी जान लेना चाहिए।
ये हैं इन्फेक्शन के कुछ ऐसे लक्षण जो बहुत कम व्यक्तियों में दिखाई देते हैं :
- नीले होंठ की समस्या : होंठ का रंग नीला हो जाना। इसके अलावा हाथ और पैर की अँगुलियों का रंग भी नीला पड़ जाता है।
- हाथ-पैर में क्लबिंग : क्लबिंग की शिकायत होना अर्थात हाथ या पैर के नाखून चम्मच की तरह मुड़ जाते हैं। इन नाखूनों को दबाने पर ऐसा लगता है कि वे सामान्य की तुलना में कठोर होने के बजाए मुलायम हो चुके हैं।
- शोर्टनेस ऑफ ब्रेथ : सांस का उखड़ जाना या उसकी गति धीमी हो जाना। वातावरण में पर्याप्त हवा होने पर भी सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। हवा की कमी जैसा भ्रम होने लगता है और दम घुटने लगता है।
- ब्लडी कफ : खून की खांसी आना हालांकि इसकी संभावना बहुत कम रहती है। मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इसे हेमोटाईसिस कहते हैं। बलगम के साथ खून आने लगता है।
- सांस तेज चलना : साँसों की गति में अचानक से तीव्रता आना अर्थात सांस का तेज चलना। अपनी सामान्य गति की तुलना में संक्रमित व्यक्ति की सांस बहुत तेज चलने लगती है।
लंग इन्फेक्शन के कारण
आइए जानें लंग इंफेक्शन के कारण जो कि निम्नलिखित हैं :
- कमजोर प्रतिरोधक क्षमता के कारण : प्रतिरोधक क्षमता या इम्यून सिस्टम कमजोर होने के कारण लंग इन्फेक्शन या फेफड़े में इन्फेक्शन हो जाता है। लंग इन्फेक्शन कमजोर इम्यून सिस्टम या प्रतिरोधक क्षमता को आधार बना कर स्वस्थ शरीर में प्रवेश करता है। कमजोर इम्यून सिस्टम के चलते शरीर अनेक रोगों का घर बन जाता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति में किसी भी बीमारी से लड़ने की शक्ति बहुत कम होती है।
- धूम्रपान : धूम्रपान आपके नाक, गला और मुंह के साथ-साथ फेफड़े को कमजोर कर देता है। सिगरेट, बीड़ी या अन्य किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ का धूम्रपान इन बीमारियों को जन्म देता है। ऐसे में धूम्रपान करने वाले व्यक्ति को इस प्रकार की गंभीर, घातक और जानलेवा बीमारी होने की संभावना बहुत अधिक होती है।
- गुटखा, तंबाकू, खैनी का सेवन : मुंह में चबाने वाले नशीले पदार्थ भी स्वास संबंधी बीमारियों के प्रमुख कारक होते हैं क्योंकि इनका सेवन केवल आपके मुंह और दांतों को ही नहीं अपितु फेफड़ों को भी कमजोर कर देता है।
- शीतल पेय या पदार्थों के कारण : ठंडा पेय जैसे कोल्ड ड्रिंक, सॉफ्ट ड्रिंक तथा शीतल पदार्थ जैसे आइसक्रीम, बर्फ की चुस्की आदि का सेवन फेफड़ों और गले को तब अधिक नुक्सान पहुंचाता है जब इसका सेवन गर्मी के मौसम के बजाए ठंडी में किया जाए। इनका सेवन अनेक बीमारियों को बुलावा देता है।
- मौसम में अचानक से परिवर्तन : अगर आप के आसपास मौसम में अचानक से बदलाव हो जाए जैसे गर्मी में बारिश हो जाना, ठंड से अचानक गर्मी का मौसम आ जाना, आदि प्रकार के मौसम परिवर्तन के चलते कमजोर इम्यून सिस्टम वाले व्यक्तियों का शरीर झेल नहीं पाता और उन्हें श्वास संबंधी रोग जैसे लंग इन्फेक्शन हो जाता है।
- ठंड के मौसम के कारण : ठंड के मौसम में लंग इन्फेक्शन, श्वास रोग, सर्दी जुकाम, नाक, कान, गला सम्बन्धी बीमारियों के होने के आसार बने रहते हैं। इस मौसम में शीतलहर शरीर के तापमान पर बुरा प्रभाव छोड़ता है इसलिए शीतकालीन ऋतु को लंग इन्फेक्शन के लिए अनुकूल माना जाता है।
- उम्र की अंतिम अवस्था के कारण : बूढ़े लोगों को लंग इन्फेक्शन बहुत आसानी से हो जाता है। रोग निवारण क्षमता कम होने के कारण वृद्धावस्था में शरीर अनेक रोगों का घर बन जाता है। ऐसे में वृद्धजनों को अनेक बीमारियां परेशान करने लगती हैं।
इन्फेक्शन में क्या खाना चाहिए?
फेफड़े के संक्रमण से बचने के लिए आपको अपने खानपान का विशेष ध्यान रखना होगा। दरअसल सही खानपान ही अच्छी सेहत का राज़ है। कुछ ऐसे पदार्थ हैं जिनका सेवन करना आपकी सेहत के लिए वरदान साबित हो सकता है।
आइए निम्न बिंदुओं के माध्यम से जानें की इन्फेक्शन में क्या खाना चाहिए :
- तुलसी का काढ़ा सबसे न्यारा : नाक,कान, गला और श्वास रोग का सबसे अच्छा इलाज तुलसी ही है। घर के आंगन में खिलने वाली तुलसी में अनेक गुण हैं। तुलसी के पत्तों को पीस कर पानी में घोलें और गर्म करें। लीजिये, आपका काढ़ा बन कर तैयार है। इस काढ़े में अदरक और लौंग भी मिला सकते हैं।
- हल्दी दूध करे चुस्त-दुरुस्त : एंटीसेप्टिक गुण होने के नाते बंद नाक, बहती नाक, गले में दर्द और खराश को यह तुरंत ठीक कर देता है। हल्दी प्रकृति का दिया हुआ वह उपहार है जिसका उपयोग मानव जाति के सभी रोगों का पल हर में नाश कर सकता है।
- अदरक को न भूलें : अदरक को मुंह के एक कोने में रख कर उसके तीखे पानी को चूसने से अंदर जमा सारा कफ स्वतः बाहर आ जाता है। श्वास रोग और लंग इन्फेक्शन में सबसे बड़ी समस्या है गीली खांसी जिसमें कफ आसानी से नहीं निकल पाता।
- भुनी हुई लहसुन है बेस्ट : किसी प्रकार के संक्रमण में सबसे अच्छा इलाज है भुनी हुई लहसुन का सेवन। लहसुन में एंटीफंगल गुण होते हैं इसलिए ये वायरस और फंगी को जड़ से समाप्त करने की क्षमता रखता है।
लंग इन्फेक्शन के घरेलू उपचार
लंग इन्फेक्शन के घरेलू उपचार के अंतर्गत निम्नलिखित उपायों को प्रयोग में लाया जा सकता है :
- नमक पानी से गरारा : गले में बन रही खराश को जड़ से समाप्त करने के लिए नमक के पानी से गरारा करना चाहिए। ये घर में आसानी से उपलब्ध होने वाला इलाज है। गुनगुने पानी में नमक घोलने के पश्चात गरारा करें और फिर आपकी बीमारी छूमंतर। यह तुरंत आराम पहुंचाता है और इससे गले में सूजन, दर्द तथा जलन से भी राहत मिलती है।
- गर्म पानी से भाप करें : गर्म पानी का भाप लेने से बंद नाक, बहती नाक, छाती में बने कफ और सूजन से तुरंत राहत मिलती है। दरअसल लंग इन्फेक्शन में शरीर का तापमान बाहर के तापमान से अलग होता है इसलिए गर्म पानी का सेवन आपके तापमान को सामान्य पर ला देता है।
- दूषित पानी न पिएं : अगर आपके पीने के पानी में संक्रमण है तो निश्चित ही आगे चलकर ये संक्रमण का कारण बन सकता है। इसलिए जितना संभव हो सके साफ और स्वच्छ पानी का सेवन करें और आवश्यकता हो तो पानी उबाल कर पिए।
- उचित दूरी है जरूरी : जितना संभव हो सके संक्रमित व्यक्तियों से उचित दूरी बनाए। संक्रमण हवा को माध्यम बना कर स्वस्थ शरीर में प्रवेश करने के पश्चात स्थान ग्रहण कर सकता है और फलस्वरूप स्वस्थ व्यक्ति भी संक्रमित हो जाता है। इसके अलावा जिस व्यक्ति में संक्रमण है उसके वस्तुओं को हाथ न लगाएं क्योंकि वस्तुओं कुछ देर तक संक्रमण के एजेंट(बैक्टीरिया, वायरस, फंगस) जीवित रहते हैं।
- स्वच्छता का पालन करें : अपने आसपास की जगह में गंदगी न जमा होने दे। साफ़-सफाई का अच्छे से पालन करें ताकि वहां इन्फेक्शन के एजेंट स्थान न ग्रहण कर सकें। गंदगी, कचरा, कूड़ा, खुली नाली आदि सभी इन्फेक्शन अनुकूल वातावरण है।
- सुरक्षित रहें : आप स्वयं भी अपने शरीर को संक्रमण से बचाने का भरपूर प्रयास करें। इस बाबत खांसते या छींकते समय मुंह को ढक लें और रुमाल का प्रयोग अवश्य करें। सार्वजनिक स्थलों को छूने से बचें और प्रयास करें कि लोगों से जरूरी न होने पर किसी प्रकार का स्पर्श न करें। ठंड से बचने हेतु गर्म कपड़े और कंबल का प्रयोग करें।
- सिगरेट, शराब है हानिकारक : किसी प्रकार के नशीले पदार्थ जैसे सिगरेट, बीड़ी, गुटका और शराब का सेवन न करें। ये सभी हानिकारक पदार्थ आपके श्वसन तंत्र को प्रभावित कर श्वास रोग और लंग के इन्फेक्शन को स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में जन्म देते हैं।
निष्कर्ष
अगर हमारा शरीर एक गाड़ी है तो इसे आगे धकलने के लिए विशेष प्रकार के ईंधन की आवयश्कता होगी। ऑक्सीजन इस जीव का ईंधन और जीवन का आधार है। इस ईंधन को चलाने वाला शरीर का इंजन फेफड़े या लंग्स कहलाते हैं। फेफड़ों में इन्फेक्शन हो जाने से ये अपना प्रमुख कार्य अर्थात सांस लेने या छोड़ने का कार्य नहीं कर पाते।
इन्फेक्शन तब होता है जब शरीर में बाहरी तत्व जैसे बैक्टीरिया, फंगस आदि प्रवेश कर जाते हैं। टीबी, फ्लू, निमोनिया आदि इसके विभिन्न प्रकार हैं। सीने में दर्द, जलन, बलगम बनना, खांसी आना आदि इसके लक्षण हैं। धूम्रपान, प्रदूषित वातावरण, दूषित खाना और पानी आदि इसके घातक कारक हैं। तुलसी, अदरक और लहसुन का सेवन करने से यह बीमारी तुरंत ठीक हो जाती है।
अगर भविष्य में आपको या आपके चित परिचित को किसी प्रकार का लंग इन्फेक्शन हो जाए और धन की कमी के चलते इलाज नहीं हो पा रहा है तो निराश होने की आवश्यकता नहीं है। क्राउडफंडिंग आपको इस गंभीर, घातक बीमारी से बाहर निकालने में मदद कर सकता है। क्राउडफंडिंग के कैंपेन के माध्यम से आप अपनी आवश्यकता को उन लोगों तक पहुंचाते हैं जो बुरे समय में आपकी मदद कर सकते हैं।























