इन्फ्लूएंजा के लक्षण, कारण और इलाज | Influenza In Hindi

फ्लू या इन्फ्लूएंजा दुनिया की सबसे घातक और खतरनाक बीमारियों में से एक है। यह तेजी से फैलने वाला एक श्वास संबंधी रोग है। इसे रेस्पिरेटरी वायरस भी कहते क्योंकि यह श्वसन तंत्र अर्थात सांस लेने में सहायक अंगों में होने वाला वायरल इंफेक्शन है। फ्लू की सम्पूर्ण जानकारी इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि अधिकांश लोगों को इन्फ्लूएंजा का मतलब नहीं पता है। ऐसे में सरल-सहज भाषा में वृहत्तर जानकारी पाठकों को प्रदत्त कर उन्हें इन्फ्लूएंजा का मतलब बताया जा सकता है ताकि वे जागरूक और सतर्क दोनों रहे। एच3एन2 वायरस क्या है? लोगों को इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है।

आज इस लेख में इन्फ्लूएंज़ा, इन्फ्लूएंजा का मतलब, फ्लू क्या है, इन्फ्लूएंजा कैसे फैलता है, इन्फ्लूएंजा कैसी बीमारी है, एच3एन2 वायरस क्या है, एच3एन2 वायरस कितने दिन तक रहता है, एच3एन2 वायरस के लक्षण, एच3एन2 वायरस का इलाज, फ्लू से कैसे बचें और निष्कर्ष पर विस्तार से चर्चा करने वाले हैं।

इन्फ्लूएंज़ा (Influenza In Hindi)वायरल संक्रमण या वायरस से होने वाली सांस की बीमारी को इन्फ्लूएंजा कहते हैं। इसका एक अन्य प्रचलित नाम फ्लू भी है। इसे रेस्पिरेटरी वायरस की श्रेणी में रखते हैं। अर्थात यह वायरल संक्रामक श्वसन संबंधी रोग है। सरल भाषा में समझें तो यह सांस की बीमारी का एक ऐसा प्रकार है जो संक्रमण या वायरस से जन्म लेता और फैलता है। मानव शरीर में सांस लेने हेतु सहायक अंग नाक, गला और फेफड़े इससे प्रभावित होते हैं।

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इन्फ्लूएंजा का मतलब (Influenza Meaning In Hindi)

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इंटरनेट पर सबसे अधिक खोजा गया प्रश्न – इन्फ्लूएंजा का मतलब क्या होता है? इन्फ्लूएंजा का मतलब फ्लू होता है। इन्फ्लूएंजा का मतलब वायरल संक्रामक श्वसन रोग है अर्थात ये श्वास से संबंधित एक बीमारी है जो छूने से फैल सकती है। सर्दी, जुकाम, बुखार, सिर दर्द, भरी हुई नाक, बंद नाक, नाक बहना, खांसी, उल्टी, जी मचलना, गले में खराश, अनावश्यक थकान और मांसपेशियों में दर्द आदि फ्लू वायरस या एच3एन2 वायरस के लक्षण हैं।

भले ही ये वायु के माध्यम से फैलता है लेकिन फ्लू के वायरस की संक्रमण शक्ति का दायरा संक्रमित व्यक्ति के तीन फीट की दूरी तक सीमित है। तीन फीट की दूरी के बाहर यह निष्क्रिय हो जाती है अर्थात इसका असर नहीं होता। इसलिए संक्रमित व्यक्ति से तीन फीट की दूरी सबसे अच्छा बचाव है।

इन्फ्लूएंजा के चार प्रकार हैं :

  • इन्फ्लूएंजा ए : एच3एन2 वायरस से होने वाले फ्लू को इन्फ्लूएंजा-ए के नाम से जाना जाता है। फ्लू का सर्वाधिक प्रचलित और मौसमी वेरिएंट यही है। हालांकि यह महामारी का रूप ले सकता है।
  • इन्फ्लूएंजा बी : ए वेरिएंट की तुलना में यह अधिक तेजी से नहीं फैलता।
  • इन्फ्लूएंजा सी : एक ऐसा वेरिएंट जिससे गंभीर बीमारी नहीं होती। इसमें मरीज को सामान्य बुखार ही होता है।
  • इन्फ्लूएंजा डी : एकमात्र ऐसा वेरिएंट जो इंसानों को प्रभावित नहीं करता अपितु यह केवल मवेशियों में ही होता है।

फ्लू क्या है?फ्लू एक वायरल इंफेक्शन है जो नाक, गला और फेफड़ों को प्रभावित करती है। इन्फ्लूएंजा को ही फ्लू कहते हैं। इन दोनों में कोई अंतर नहीं है। इन्फ्लूएंजा का मतलब फ्लू होता है। इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण इसका प्रचलित नाम इन्फ्लूएंजा है लेकिन ये फ्लू के नाम से भी जाना जाता है। फ्लू के अनेक वेरिएंट हैं लेकिन हर वेरिएंट पशुओं से ही जन्म लेता है। जैसे मुर्गी से होने वाला बर्ड फ्लू और सूअर से होने वाला इन्फ्लूएंजा। फ्लू एक संक्रामक श्वसन रोग जो एक संक्रमित व्यक्ति के द्वारा किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर सकता है। अर्थात संक्रमित व्यक्ति या उसके वस्तु के सम्पर्क में आने के कारण फ्लू आसानी से फैल सकता है।

इन्फ्लूएंजा कैसे फैलता है?

इन्फ्लूएंजा संक्रमित मरीज के खांसने,छींकने या लार टपकने के कारण तीन फ़ीट की दूरी तक ये वायरस फैल सकता है। संक्रमित व्यक्ति के पसीने से भी फ्लू फैलने का खतरा रहता है। अगर कोई स्वस्थ व्यक्ति किसी संक्रमित व्यक्ति से तीन फीट की दूरी नहीं रखता तो तो इस कारण इन्फ्लुएंजा या फ्लू फैल जाता है। संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने के कारण इन्फ्लुएंजा या फ्लू फैल जाता है। फ्लू कैसे फैलता है इसकी जानकारी प्राप्त कर लेने से इन्फ्लूएंजा का मतलब भी पता चल जाएगा।

निम्नलिखित कारणों से इन्फ्लूएंजा या फ्लू संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति(यों) में फैलता है :

  • संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने पर  : संक्रमित व्यक्ति से हाथ मिलाने पर फ्लू का वायरस स्वस्थ शरीर में प्रवेश कर जाता है। हाथ मिलाने के अलावा अगर संक्रमित व्यक्ति किसी स्वस्थ व्यक्ति को स्पर्श करता है तो भी वायरस फैल जाता है। यह स्पर्श गले मिलना, कंधे पर हाथ रखना, स्वस्थ व्यक्ति की वस्तुओं को संक्रमित व्यक्ति द्वारा छू देना आदि कारणों से भी वायरस फैल जाता है।
  • संक्रमित व्यक्ति की वस्तु के कारण : संक्रमित व्यक्ति की रुमाल, तौलिया, कपड़े, बर्तन, फोन आदि को अगर स्वस्थ व्यक्ति स्पर्श कर ले तो वायरस फैलने की संभावना बढ़ जाती है। इसके ठीक विपरीत अगर कोई संक्रमित व्यक्ति किसी स्वस्थ व्यक्ति का सामान छू दे तो इन्फ्लूएंजा संक्रमण के फैलने की संभावना शत प्रतिशत बढ़ जाती है। अर्थात संक्रमित व्यक्ति ही नहीं उसकी वस्तुओं में भी वायरस सक्रिय रहता है जिनके सम्पर्क में आने से वायरस फैलने का डर बना रहता है।
  • संक्रमित स्थान में प्रवेश : संक्रमित व्यक्ति से तीन फ़ीट की दूरी न रखने पर उसके आसपास हवा में घुले वायरस स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। फ्लू के वायरस की संक्रमण शक्ति का दायरा शरीर के बाहर तीन फीट की दूरी तक सीमित रहता है। तीन फीट के दायरे के बाहर ये वायरस निष्क्रिय हो जाते हैं और इसका असर समाप्त हो जाता है।
  • खांसने, छींकने, लार टपकने या पसीने से : संक्रमित व्यक्ति में निवास करने वाला वायरस शरीर के बाहर निकलने का प्रयास करता है ताकि वातावरण की हवा में घुल कर संक्रमण अपना फैलाव व्यापक स्तर पर कर सके। इस हेतु यह वायरस छींक, खांसी, लार या पसीने के माध्यम से संक्रमित व्यक्ति के शरीर से बाहर निकलता है।
  • फेफड़ों की बीमारी के कारण : अगर किसी व्यक्ति को पूर्व में या वर्तमान समय में फेफड़ों से संबंधित कोई बीमारी रही है तो ऐसे में उसे फ्लू होने का खतरा बना रहता है। फ्लू या इन्फ्लूएंजा को रस्पिरेटरी वायरस की श्रेणी में रखा जाता है। अर्थात यह एक ऐसी सांस की बीमारी है जो वायरस के कारण शरीर को संक्रमित करती है। श्वास तंत्र या सांस लेने में सहायक अंग नाक, गला और फेफड़े में ये वायरस निवास स्थान ग्रहण करता है।
  • नाक, कान या गले की बीमारी के कारण : अगर कोई व्यक्ति नाक, कान और गले की समस्या से परेशान है तो उसे फ्लू वायरस का संक्रमण आसानी से हो सकता है। दरअसल फ्लू श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाला वायरल संक्रमण रोग है इसलिए सांस लेने में सहायक अंगों में अगर कोई बीमारी है तो फ्लू होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
  • हृदय रोग के कारण : जिन लोगों को हृदय संबंधी विकार अर्थात हृदय रोग है उन्हें फ्लू होने का खतरा सबसे अधिक होता है। श्वसन तंत्र और हृदय का सीधा-सीधा संबंध होता है इसलिए हृदय रोग के मरीज को फ्लू होने का भी खतरा रहता है।
  • इम्यून सिस्टम कमजोर होने से : जिन लोगों का इम्यून सिस्टम अर्थात प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है उन्हें फ्लू होने की संभावना बनी रहती है बल्कि वे इस वायरस से सबसे पहले संक्रमित होते हैं। इम्यून सितम कमजोर होने के कारण किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है।
  • नवजात शिशुओं और बच्चों में : नवजात शिशुओं और बच्चों को वायरस से संक्रमित होने का खतरा अन्य की तुलना में अधिक होता है। जिन शिशुओं ने अभी-अभी जन्म लिया है या वे जो बालपन में हैं उनमें वायरस से लड़ने की क्षमता इतनी जल्दी पैदा नहीं होती। इसलिए उन्हें अन्य लोगों की तुलना में अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है।
  • बूढ़े लोगों में : बूढ़े लोगों को फ्लू का वायरस बहुत जल्दी या यूं कहें शीघ्र ही अपनी चपेट में ले लेता है। बूढ़े लोगों में बीमारियों से लड़ने की क्षमता बहुत कम या ना के बराबर होती है। ऐसे में उनका शरीर बीमारियों का घर बन जाता है।
  • अगर कोई महिला गर्भवती हो : गर्भवती महिलाओं को फ्लू संक्रमण होने की संभावना अधिक रहती है क्योंकि गर्भवती होने के पश्चात इम्यून सिस्टम, फेफड़े और हृदय में परिवर्तन देखने को मिलता है। उनका शरीर इस नए परिवर्तन के कारण रोग से लड़ने की क्षमता का निर्माण नहीं कर पाता।
  • धूम्रपान : अगर कोई व्यक्ति सिगरेट, बीड़ी का धूम्रपान करता है या किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन करता है तो उसे फ्लू का वायरस जकड़ लेता है। धूम्रपान व्यक्ति के फेफड़ों को कमजोर कर देता है जिस कारण फेफड़ों से संबंधित रोग होने की आशंका उसमें अधिक होती है।

कोल्ड ड्रिंक और आइसक्रीम का सेवन : कोल्ड ड्रिंक पीने पर और आइसक्रीम खाने के कारण वायरल फ्लू होने की संभावना बहुत अधिक होती है। शीतल पेय और पदार्थ आपके फेफड़ों को कमजोर कर देते हैं जिससे वायरल संक्रामक श्वसन रोग होने का खतरा बढ़ जाता है।

इन्फ्लूएंजा कैसी बीमारी है? (Influenza Disease In Hindi)

इन्फ्लूएंजा या फ्लू दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है। संसार की दस सबसे घातक बीमारी में इसे सूचीबद्ध किया जाता है। फ्लू की गंभीर स्थिति में मरीज की मृत्यु होने की आशंका भी बनी रहती है। लेकिन अगर यह बीमारी गंभीर न हो तो एच3एन2 वायरस के लक्षण आम सर्दी जुकाम की तरह प्रतीत होते हैं।

एच3एन2 वायरस क्या है?

इंटरनेट पर सबसे अधिक खोजा गया एक सवाल – एच3एन2 वायरस क्या है? फ्लू के वायरस को ही एच3एन2 वायरस कहते हैं। इसका एक अन्य प्रचलित नाम इन्फ्लूएंजा-वायरस भी है। हालांकि इसका मेडिकल टर्मिनोलॉजी इन्फ्लूएंजा-ए है। मनुष्य के शरीर में प्रवेश करने के पश्चात इसका एक नया प्रकार अर्थात वेरिएंट बनता है जिसे वेरिएंट वायरस के नाम से जाना जाता है। एच3एन2 के लक्षण और आम सर्दी जुकाम के लक्षण में कोई अंतर नहीं है। एच3एन2 वायरस के लक्षण सामान्य सर्दी और जुकाम की तरह ही होते हैं। सर्दी, जुकाम, बुखार, सिर दर्द, भरी हुई नाक, बंद नाक, नाक बहना, खांसी, उल्टी, जी मचलना, गले में खराश, अनावश्यक थकान और मांसपेशियों में दर्द ये सभी एच3एन2 वायरस के लक्षण है।

ऐसे लोग जो पहले से ही फेफड़ों के रोग से पीड़ित हैं उन्हें फ्लू होने का खतरा अधिक रहता है। साथ ही जिनका इम्यून सिस्टम अर्थात प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो वे भी फ्लू से संक्रमित हो जाते हैं। नवजात शिशु, बच्चे, बूढ़े और गर्भवती महिलाओं में फ्लू फैलने का खतरा सबसे अधिक रहता है। इंसानों के अलावा ये बीमारी पक्षियों तथा अन्य जानवरों को भी संक्रमित कर सकती है। हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों को भी फ्लू होने का डर बना रहता है। विकलांग लोगों में भी फ्लू होने की संभावना बहुत अधिक होती है। इन सभी में लक्षण अलग-अलग होते हैं लेकिन अधिकतर लक्षण एक जैसे ही हैं। नवजात शिशु, बच्चें, गर्भवती महिला, बूढ़े, विकलांग और कमजोर इम्यून सिस्टम वालों में एच3एन2 के लक्षण एक जैसे नहीं होते है। नवजात शिशु और बच्चों में एच3एन2 के लक्षण तथा वयस्कों में एच3एन2 के लक्षण अलग-अलग हैं।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि फ्लू के वायरस का जन्म किसी जानवर में होता है। फिर इस संक्रमित जानवर से इंसानों में वायरस फैल जाता है। अगर ये अपने पूर्ण रूप को प्राप्त न करे तो मरीज स्वतः ही ठीक हो जाता है अन्यथा गंभीर समस्या में रूपायित होने के कारण ये बीमारी लंबे समय तक चल सकती है। नवजात शिशुओं, छोटे बच्चों, बूढ़ों और गर्भवती महिलाओं में फ्लू वायरस होने की संभावना सबसे अधिक होती है।

पशुओं के समूह में विशेष रूप से सूअर के झुंड में फ्लू या इन्फ्लूएंजा पनपता है। इन पशुओं की आबादी में पनपने के बाद ही फ्लू का वायरस अपने आप को इंसानी शरीर में प्रवेश करने के लिए सक्षम बनाता है। जैसे ही कोई व्यक्ति संक्रमित पशुओं के सम्पर्क में आता है, ये वायरस मानव शरीर में स्थान ग्रहण कर लेता है। फिर धीरे-धीरे यह शरीर के भीतर फैलने लगता है और खांसी, छींक, लार या पसीने के माध्यम से शरीर से बाहर निकलने का प्रयास करता है ताकि वातावरण की हवा में घुलने के पश्चात यह अन्य लोगों को भी संक्रमित कर सके।

एच3एन2 वायरस कितने दिन तक रहता है?

एच3एन2 वायरस कम से कम दो सप्ताह तक रहता है और अधिकतम छह सप्ताह रहता है। अगर समस्या गंभीर है तो मरीज छह सप्ताह तक इससे ग्रसित रहता है अन्यथा मामूली परेशानी होने पर केवल दो सप्ताह तक ही परेशानी रहती है। बीमारी की गंभीरता के अनुसार मरीज के शरीर में टिके रहने की समय सीमा तय होती है। मानव शरीर के अलावा यह वायरस टेबल या दरवाजे के हैंडल पर 24 घंटे तक जीवित रह सकता है।

एच3एन2 वायरस के लक्षण (Influenza Virus Symptoms in Hindi)

फ्लू के लक्षण अर्थात एच3एन2 वायरस के लक्षण को आसानी से पहचाना जा सकता है। एच3एन2 के लक्षण आम सर्दी और जुकाम के लक्षण की तरह ही होते हैं। इसलिए मामूली सर्दी जुकाम और एच3एन2 वायरस के लक्षण में अंतर कर पाना कठिन होता है। सही और सम्पूर्ण जानकारी की सहायता से एच3एन2 के लक्षण की पहचान हो सकती है। साथ ही एच3एन2 के लक्षण की पहचान से इलाज का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। 

फ्लू वायरस या एच3एन2 वायरस के लक्षण निम्नलिखित हैं : 

  • सिर दर्द : अगर हम एच3एन2 वायरस के लक्षण की बात कर रहे हैं तो सिर में दर्द अर्थात एक असहनीय पीड़ा होना सबसे आम लक्षण है।
  • बंद नाक : जुकाम होने के कारण नाक में स्थित श्वास की कोई एक नली बंद हो जाती है जिस कारण सांस लेने में कठिनाई होती है।
  • भरी हुई नाक : जुकाम होने के कारण नाक में द्रव्य रुपी विकार जमा हो जाता है। इस कारण नाक भरी हुई लगती है।
  • नाक बहना : फ्लू संक्रमित व्यक्ति को जुकाम जैसे लक्षण होने के कारण उसकी नाक भी बहाने लगती है।
  • छींक आना : किसी स्वस्थ आदमी की तुलना में फ्लू संक्रमित व्यक्ति को लगातार छींक आती है। सर्दी और जुकाम होने के कारण ऐसा होता है।
  • खांसी आना : गले में खराश होने के कारण लगातार खांसी आती है। फेफड़े में कंजेशन भी हो जाता है और इसी विकार को निकालने के लिए खांसी शुरू हो जाती है।
  • गले में खराश : फ्लू के मरीज को गले में खराश हो जाती है जिस कारण उसका गला बैठ जाता है और आवाज़ कर्कश हो जाती है।
  • गले में दर्द, जलन और खुजली : फ्लू वायरस के लक्षण में गले में दर्द, जलन और खुजली को भी शामिल किया जाता है।
  • उलटी :
  • अनावश्यक थकान : मांसपेशियों में दर्द होने के कारण शरीर में अनावश्यक थकान बनी रहती है।

बदन दर्द : मांसपेशियों में दर्द अर्थात असहनीय पीड़ा होने के कारण बदन दर्द होने लगता है।

एच3एन2 वायरस का इलाज (H3N2 Treatment In Hindi)

अगर एच3एन2 वायरस की चपेट में आया मरीज गंभीर हालत में नहीं है तो एच3एन2 वायरस का इलाज के अंतर्गत कुछ घरेलू इलाज की सहायता से उपचार किया जा सकता है क्योंकि इस वायरस बीमारी के लक्षण और एक आम सर्दी जुकाम के लक्षण में कोई अंतर नहीं है।

एच3एन2 वायरस का इलाज के अंतर्गत घरेलू इलाज इस प्रकार है : 

  • लोगों के सम्पर्क में आने से बचें
  • तुलसी और अदरक वाली चाय का सेवन करें
  • अदरक को चूसने से आराम मिलता है
  • आराम करें
  • शरीर को गर्म रखें

इन घरेलू इलाज की सहायता से आप वायरस को जड़ से समाप्त कर सकते हैं। अगर मरीज की हालत गंभीर है तो डॉक्टर से सलाह लेकर उचित दवाइयों का सेवन कर सकते हैं।

फ्लू से कैसे बचें?

डॉक्टर से उचित सलाह लेने के पश्चात फ्लू से बचने के लिए प्रतिवर्ष इन्फ्लूएंजा की वैक्सीन अवश्य लगाएं। इसके अतिरिक्त आप इस प्रकार फ्लू से अपना बचाव कर सकते हैं : 

  • लोगों के सम्पर्क में आने से बचें और मास्क पहन कर रखें।
  • रुमाल का प्रयोग छींकते और खांसते समय अवश्य करें।
  • हाथ समय-समय पर धोते रहना आवश्यक है।
  • साबुन न होने पर सैनिटाइजर भी प्रयोग में ला सकते हैं।

इन्फ्लूएंजा से ठीक होने में कितना समय लग सकता है?

इन्फ्लूएंजा से पीड़ित लोग आमतौर पर एक या दो हफ़्ते में ठीक हो सकते हैं। हालाँकि, इन्फ्लूएंजा के लक्षण आमतौर पर तीन से पाँच दिनों के भीतर कम हो जाते हैं। यदि लक्षण बढ़ जाते हैं या एक सप्ताह के बाद भी बने रहते हैं, तो तत्काल डॉक्टर से संपर्क करना आवश्यक है। इन्फ्लूएंजा से हर साल काफ़ी लोग मरते हैं, इसलिए इस संक्रमण का इलाज करना और इससे उत्पन्न होनेवाली जटिलताओं को विकसित होने से रोकना आवश्यक है। यदि गंभीर जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं, तो उनका इलाज चिकित्सा देखभाल द्वारा किया जा सकता है।

इन्फ्लूएंजा के लिए सर्वाइवल रेट

इन्फ्लूएंजा के लिए सर्वाइवल रेट आमतौर पर उच्च होती है, लेकिन यह बात भी सत्य है कि इसके कारण सालाना दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत होती है। इन्फ्लूएंजा का प्रमुख कारण इन्फ्लूएंजा वायरस है। 

इन्फ्लुएंजा से संक्रमित व्यक्तियों को आमतौर पर ठीक होने में एक से दो सप्ताह का समय लग सकता है, लेकिन यह समय व्यक्ति के आयु, स्वास्थ्य स्थिति और संक्रमण के प्रकार पर भी निर्भर करता है।

इन्फ्लूएंजा से बचाव के उपायों का पालन करने से, संक्रमित होने से बचा जा सकता है और सर्वाइवल रेट में भी सुधार संभव है। यदि कोई व्यक्ति इन्फ्लूएंजा से संक्रमित होता है, तो उसके लिए तुरंत डॉक्टर से सलाह लेना आवश्यक है।

निष्कर्ष

इन्फ्लूएंजा एक ख़तरनाक वायरल संक्रमण है जो श्वसन मार्ग के माध्यम से फैलता है। यह आमतौर पर सर्दियों में फैलने वाला वायरस होता है और इसके कारण बुखार, खाँसी, ठंड, शरीर में दर्द आदि लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।

इन्फ्लूएंजा का निदान डॉक्टर की सलाह और शारीरिक परीक्षण के माध्यम से किया जा सकता है, और रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट के माध्यम से यह जाँचा जाता है कि व्यक्ति इन्फ्ल्यूएंजा वायरस से संक्रमित है या नहीं।

इसके उपचार में आराम, पर्याप्त पानी पीना, और दवाइओं का सेवन शामिल हो सकता है। इन्फ्लूएंजा से बचाव के लिए हाथ धोना, मास्क पहनना, स्वच्छता बनाए रखना और इम्यूनाइजेशन (टीकाकरण) का पालन करना आवश्यक है।

इन्फ्लूएंजा के लक्षणों को महसूस करने पर, तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना आवश्यक है। रोगी के लिए आवश्यक है कि वह डॉक्टर द्वारा दिए गए सलाह का पालन करे, ताकि समय रहते उपचार किया जा सके और रोगी जल्दी स्वस्थ हो सके।

कुछ महत्त्वपूर्ण बातें

इनफ़्लुएंज़ा का खुद इलाज करने के तरीके

इनफ़्लुएंज़ा का खुद इलाज करने के तरीके निम्न हो सकते हैं:

1. पर्याप्त आराम: इन्फ्लुएंजा से संक्रमित होने पर, अपने शरीर को पूरी तरह से आराम देना आवश्यक है।

2. पूरी नींद: पूरी नींद लेने से शरीर की ताकत को बढ़ाया जा सकता है और लक्षणों को कम करने में भी मदद मिल सकती है।

3. हाइड्रेशन: पर्याप्त पानी पीने से शरीर में हाइड्रेशन बना रहता है और तापमान को कम करने में मदद मिल सकती है।

4. गरम द्रव्यों का सेवन: गरम चाय, सूप, और गरम पानी पीने से, लक्षणों को कम किया जा सकता है, साथ ही खाँसी और ठंड लगने जैसे लक्षण कम हो सकते हैं।

5. ड्राई फ्रूट्स का सेवन: ड्राई फ्रूट्स का सेवन करना शरीर के लिए अधिक पौष्टिक हो सकता है, जिससे शरीर की ताकत भी बढ़ सकती है।

6. खाँसी और ठंड के लिए घरेलू उपाय: गर्म दूध में हल्दी मिलाकर पीना, गरारे करना और गर्म पानी में नमक और हल्दी मिलाकर गरारे करना, खाँसी और सर्दी को कम करने में मदद कर सकता है।

7. दवाइयाँ: डॉक्टर द्वारा निर्धारित किए गए दवाइओं का सेवन करना, लक्षणों को कम कर सकता है।

8. संक्रमित व्यक्तियों से बचाव: संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क से बचना और उनसे दूरी बनाए रखना, संक्रमण से बचने में मदद कर सकता है।

9. मास्क पहनना: इन्फ्लूएंजा के लक्षण होने पर, मास्क पहनने से दूसरों को संक्रमित  होने से बचाया जा सकता है।

10. ख़ुद की देखभाल: ख़ुद की देखभाल करना, स्वस्थ रहना और डॉक्टर की सलाह का पालन करना आत्म-उपचार को सफल बना सकता है।

यदि लक्षण गंभीर होते हैं या यदि स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना लाभदायक सिद्ध हो सकता है।

यह सत्य है कि आज भी बहुत से लोगों के लिए कैंसर के इलाज का खर्च जुटा पाना नामुमकिन है, लेकिन ऐसे में फंडरेज़िंग विकल्प का सहारा लिया जा सकता है।

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