हाइपरथायरायडिज्म: लक्षण, कारण, इलाज और हार्मोन से जुड़ी जानकारी

इक्कीसवीं सदी में जो समस्याएं वैश्विक चिंता बन चुकी है उनमें से एक हाइपरथायरायडिज्म भी है। महिलाओं में ये समस्या आम और प्रचलित है। इसके चलते वजन का घटना या उसमें बढ़ोत्तरी का लक्षण प्रमुख रूप से प्रदर्शित होता है। इसके अलावा थकान, कमजोरी और चक्कर आने की भी शिकायत हो सकती है। आधुनिक युग का स्ट्रेस इस बीमारी का प्रमुख कारण है। इसके अतिरिक्त अन्य कारण भी हो सकते हैं। इसलिए इस विषय पर जागरूकता और सतर्कता दोनों चाहिए। आज के इस लेख में हाइपरथायरायडिज्म क्या होता है, थायराइड हार्मोन से जुड़ी जानकारी, हाइपरथायरायडिज्म के लक्षण, हाइपरथायरायडिज्म होने के कारण, महिलाओं में हाइपरथायरायडिज्म के लक्षण, थायराइड हार्मोन अधिक क्यों बनता है, हाइपरथायरायडिज्म का इलाज और निष्कर्ष पर विस्तार से चर्चा हुई है।

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हाइपरथायरायडिज्म क्या होता है?

Hyperthyroid Ke Lakshan

हाइपरथायरायडिज्म एक अवस्था है जिसमें थायराइड की ‘ग्रंथि’ इसी नाम के हार्मोन का आवश्यकता से अधिक निर्माण करने लगती है। आम जनमानस में इसे थायराइड रोग या थायराइड की बीमारी के नाम से जाना जाता है। तितली के आकार की ये ग्रंथि गर्दन के निचले भाग में स्थित होती है।

थायराइड हार्मोन से जुड़ी जानकारी

गले में स्थित तितली के आकार की ग्लैंड या ग्रंथि दो प्रकार के थायराइड हार्मोन बनाती है जो कि इस प्रकार है:

  • ट्राईआयोडोथायरोनिन : इसे शॉर्ट में T3 के नाम से जाना जाता है। मांसपेशियों को नियंत्रित करना इस हार्मोन का प्रमुख कार्य है। ये हार्मोन मस्तिष्क की गतिविधियों का सही क्रियान्वयन और विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा हृदय तथा पाचन की क्रियाओं को विधिवत सुनिश्चित करता है। इसके अलावा शरीर की हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए भी कार्य करता है। साथ ही मेटाबॉलिक रेट को सामान्य रखने में इस हार्मोन की अहम भूमिका होती है।
  • थायरोक्सिन : इसे शॉर्ट में T4 के नाम से जाना जाता है। थायराइड ग्रंथि इस हार्मोन का उत्पादन हाइपोथैलेमस और पीयूषिका(पिट्यूटरी ग्लैंड) के निर्देशानुसार करता है। रक्त परवाह की सहायता से ये हार्मोन शरीर के अन्य अंग जैसे लिवर, किडनी आदि तक पहुंचता है। इसके कार्य और T3 हार्मोन के कार्यों में कोई अंतर नहीं है।

हाइपरथायरायडिज्म के लक्षण

आइए जानें हाइपरथायरायडिज्म के लक्षण जो कि इस प्रकार है:

  • टैकीकार्डिया : हृदय की गति सामान्य की तुलना में तीव्र या तेज हो जाती है। एक मिनट में सौ बार से अधिक दिल धड़कता है जो व्यक्ति के लिए जानलेवा भी हो सकता है। आवश्यकता से अधिक तथा असामान्य तरीके से हृदय की गति में हुए इस परिवर्तन के चलते ब्लड को पंप आउट करना कठिन हो जाता है।
  • हार्ट पल्पिटेशन : इसका एक अन्य नाम अतालता भी है। हृदय की गति तेज या धीमी हो सकती है। अधिकांश मामलों में हृदय गति में आया हुआ ऐसा परिवर्तन एंग्जायटी के कारण होता है। इस अवस्था में व्यक्ति को ऐसी भी अनुभूति होती है कि उसकी हृदय गति में ताल का लोप हो गया है। इस लक्षण के प्रदर्शित होने का कोई विशेष समय नहीं है अपितु यह लक्षण मूलतः अप्रत्याशित है। यानी सोते या आराम करते समय भी हार्ट पल्पिटेशन सकता है।
  • वजन घटना : अप्रत्याशित रूप से वजन घटने लगता है। भले ही भोजन या आहार सामान्य हो फिर भी वजन बढ़ने से बजाए घटने लगता है। दरअसल थायराइड का हार्मोन उत्पादन संतुलित हो जाए तो पाचन संबंधी समस्या भी शरीर में जन्म ले लेती है।
  • बेचैनी और घबराहट : ग्रंथि के अनियंत्रित हार्मोन उत्पादन से एंग्जायटी अटैक आना सबसे प्रमुख लक्षण है। चूंकि थायराइड की ग्रंथि मस्तिष्क के विकास और उसके कार्यों का क्रियान्वयन करती है इसलिए मानसिक रोग के लक्षण भी व्यक्ति में देखने को मिलते है। घबराने की कोई बात नहीं हो फिर भी घबराहट होने लगती है।
  • चिड़चिड़ापन : एंग्जायटी अटैक में व्यक्ति को बेचैनी, घबराहट के अलावा चिढ़ भी मचने लगती है। ये एंग्जायटी अटैक और हाइपरथायरायडिज्म दोनों का सबसे प्रमुख और आम लक्षण है क्योंकि एंग्जायटी, स्ट्रेस को आधार बना कर ही ये शरीर में प्रवेश करता है।
  • कंपन : शरीर में बहुत तेज कंपन होती है। विशेष रूप से हाथ में कंपन की शिकायत रहती है। एंग्जायटी अटैक के चलते व्यक्ति को हाथ कांपने की समस्या हो सकती है। उंगलियों और हाथ में हल्के झटके की अनुभूति होती है।
  • पसीना आना : व्यक्ति गर्मी के प्रति बहुत संवेदनशील हो जाता है इसलिए उसे अन्य की तुलना में बहुत अधिक गर्मी लगने लगती है और फलस्वरूप बहुत पसीना भी आता है। बिना किसी शारीरिक गतिविधि या बिना कोई मेहनत या अथिक परिश्रम किये व्यक्ति को पसीना आने लगता है।
  • थायराइड नेत्र रोग : यह सुनने में अजीब लगे लेकिन थायराइड के चलते नेत्र रोग हो सकता है। ये एक ऑटोइम्यून अवस्था है जिसमें व्यक्ति की आँखों में सूजन और जलन होने लगती है। साथ ही आँखों के पास की टिश्यू की क्षति या हानि भी होती है। आँखों का लाल होना और दोहरी दृष्टि रोग भी इसके अन्य लक्षण हैं।
  • अपच की समस्या : व्यक्ति को पेट संबंधी समस्याएं जैसे डायरिया की भी शिकायत हो सकती है। हालंकि पेट का पाचन बिगड़ जाना या बार-बार मल त्यागना जैसी शिकायत हो सकती है।
  • गर्दन में सूजन : तितली के आकार वाली ग्रंथि(जो थायराइड हार्मोन बनाती है) व्यक्ति के गले में स्थित होती है इसलिए अत्यधिक, अनियंत्रित और अनावश्यक हार्मोन उत्पादन का दुष्प्रभाव गर्दन में भी पड़ता है। फलस्वरूप गर्दन में सूजन और गोइटर(घेंघा या गण्डमाला) हो जाता है।
  • अनिद्रा : निद्रा चक्र अर्थात सोने का समय इस कदर प्रभावित हो जाता है जिसके चलते नींद नहीं आने की शिकायत व्यक्ति को रहती है।
  • थकान और कमजोरी : हाइपरथायरायडिज्म के चलते व्यक्ति को अनावश्यक थकान और कमजोरी की शिकायत रहती है। मांसपेशियों में कमजोरी और थकान इसका प्रमुख कारण हो सकता है।

हाइपरथायरायडिज्म होने के कारण

आइए विस्तार से जानें हाइपरथायरायडिज्म होने के कारण जो कि निम्नलिखित हैं:

  • ग्रेव्स रोग के कारण : हाइपरथायरायडिज्म होने का सबसे प्रमुख या मुख्य कारण ग्रेव्स रोग ही है।अगर किसी व्यक्ति को ग्रेव्स रोग है तो इस बात की सौ प्रतिशत संभावना है कि उसे हाइपरथायरायडिज्म हो सकता है। ये एक प्रकार की ऑटोइम्यून अवस्था है जिसमें थायराइड अनावश्यक रूप से सक्रिय हो जाता है।
  • अत्यधिक नमक खाने के कारण : जो व्यक्ति नमक का अत्यधिक सेवन करता है उसके शरीर में स्थित ग्रंथि या ग्लैंड अनियंत्रित होकर अनावश्यक और अधिक मात्रा में थायराइड हार्मोन बनाने लगती है। नमक में पाए जाने ‘आयोडीन’ मिनरल की सहायता से ग्रंथि थायराइड हार्मोन का उत्पादन करती है। इसलिए हाइपरथायरायडिज्म में नमक नहीं खाने का सुझाव दिया जाता है।
  • थायरोट्रोपिनोमा के कारण : पीयूषिका ग्रंथि टीएसएच(थायराइड स्टिमुलेटिंग हार्मोन) का उत्पादन थायराइड ग्रंथि पर हमला या धावा करने के के लिए करती है ताकि वो थायराइड हार्मोन बना सके। टीएसएच का अत्यधिक उत्पादन थायराइड हार्मोन के अत्यधिक निर्माण का कारण बनता है और इस परिस्थिति में एक मेडिकल अवस्था जन्म लेती है जिसे थायरोट्रोपिनोमा कहते हैं।
  • थायरोडिटिस के कारण : थायराइड ग्रंथि की जलन को थायरोडिटिस कहते हैं। यह हाइपरथायरायडिज्म का प्रमुख कारक है क्योंकि जलन ही आगे चलकर उस बीमारी में रूपायित हो जाती है। जब ग्रंथि की जलन दूर हो जाती है तो यह स्वतः ठीक हो जाता है।
  • थायराइड नोड्यूल्स के कारण : ये विशेष प्रकार के लम्पस है जो थायराइड ग्रंथि में सेल्स की अचानक से शीघ्र प्रक्रिया के माध्यम से व्यापक वृद्धि होने लगती है। फलस्वरूप ये सभी सेल्स अत्यधिक मात्रा में हार्मोन बनाने लगते हैं। इस अवस्था को मेडिकल टर्मिनोलॉजी में टॉक्सिक मल्टीनोड्यूलर गोइटर कहते हैं।
  • पारिवारिक इतिहास : अनुवांशिक कारण या पारिवारिक इतिहास होने के कारण भी हाइपरथायरायडिज्म हो सकता है। अगर परिवार की पुरानी पीढ़ी को हाइपरथायरायडिज्म हुआ है तो निश्चित ही परिवार की नई पीढ़ी या आने वाली पीढ़ी को यह बीमारी ट्रांसफर हो जाती है।
  • प्रेग्नेंसी के कारण : इसका एक अन्य नाम पोस्टपार्टम थायरोडिटिस भी है। इस प्रकार का थायराइड गर्भावस्था के पश्चात अर्थात शिशु को जन्म देने के बाद माँ को हो जाता है। हालांकि ये बहुत प्रचलित रोग नहीं है और ना ही इसकी चपेट में बहुत लोग आते हैं। बच्चे को जन्म देने के एक वर्ष के भीतर ही थायराइड की समस्या हो सकती है।
  • धूम्रपान के कारण : जो व्यक्ति धूम्रपान करता है या सिगरेट पीता है उसके शरीर में थायराइड हार्मोन की मात्रा अधिक हो जाती है। इसके अतिरिक्त ऐसे लोगों को ग्रेव्स हाइपरथायरायडिज्म होने की संभावना बहुत अधिक रहती है। धुम्रपान हर रोग की मूल जड़ है।

महिलाओं में हाइपरथायरायडिज्म के लक्षण

आइए विस्तार से जानें महिलाओं में हाइपरथायरायडिज्म के लक्षण जो कि निम्नलिखित हैं:

  • मासिक धर्म में बदलाव : जिन महिलाओं को हाइपरथायरायडिज्म की समस्या होती है उनके महामारी के चक्र में परिवर्तन देखने को मिलता है। इस परिवर्तन के अंतर्गत हल्के या हैवी पीरियड्स की समस्या हो सकती है। साथ ही ये पीरियड्स अनियमित भी हो सकते हैं। कुछ मामलों में ऐसे भी लक्षण देखने को मिले है कि माहवारी का चक्र कुछ सप्ताह या महीनों के लिए बंद हो जाता है।
  • गर्भधारण से जुड़ी समस्याएं : हाइपरथायरायडिज्म के चलते मिसकैरेज अर्थात गर्भपात की समस्या हो सकती है। हार्मोन का असंतुलित उत्पादन भ्रूण के विकास को प्रभावित करता है जिसके चलते मिसकैरेज हो सकता है।
  • गर्भावस्था की समस्या : कई महिलाओं को गर्भधारण करने के बाद इसके लक्षण देखने को मिलते हैं। प्रेग्नेंसी में थायरायड हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसा भी हो सकता है कि प्रेग्नेंसी के बाद भी थायराइड की समस्या हो सकती है।
  • भंगुर बाल : नमी की कमी के चलते बाल रूखे, शुष्क और बेजान हो जाते हैं। भंगुर बाल आसानी से टूट जाते हैं। इन बालों को छूने पर ऐसा लगता है कि व्यक्ति भूसे को स्पर्श कर रहा है। व्यक्ति के बालों का सिरा दो मुहा हो जाता है जिसके चलते वे पहले की तरह लचीले नहीं रहते। बालों में उलझन की समस्या भी देखने को मिलती है।

हमारे शरीर में अत्यधिक मात्रा में थायराइड हार्मोन क्यों बनने लगता है?

आइए जानें कि हमारे शरीर में अत्यधिक मात्रा में थायराइड हार्मोन क्यों बनने लगता है:

  • ग्रेव्स रोग, थायरोट्रोपिनोमा और थायरोडिटिस बीमारी के कारण शरीर में थायराइड हार्मोन बहुत अधिक मात्रा में बनने लगता है।
  • जो व्यक्ति अपने आहार के अंतर्गत नमक का सेवन बहुत अधिक करता है उसके शरीर में भी इस हार्मोन की मात्रा अधिक हो जाती है।
  • सिगरेट पीने की बुरी आदत वाले व्यक्ति के शरीर में भी थायराइड हार्मोन बहुत अधिक मात्रा में बनने लगता है।
  • बहुत कम मामलों में ऐसा देखा गया है कि बच्चे को जन्म देने के एक वर्ष भीतर ही माँ को पोस्टमार्टम थायराइड हो जाता है जिसके चलते उसके शरीर में बहुत अधिक मात्रा में थायराइड हार्मोन बनने लगता है।
  • पारिवारिक इतिहास या अनुवांशिक कारणों के चलते अगर परिवार के किसी सदस्य को थायराइड की समस्या रही है तो आने वाली पीढ़ी के शरीर में भी अत्यधिक मात्रा में हारमोन बनने लगता है।

हाइपरथायरायडिज्म का इलाज

हाइपरथायरायडिज्म के इलाज से पूर्व मरीज के कुछ परीक्षण करना अनिवार्य है। इसके अंतर्गत डॉक्टर परामर्श के उपरान्त व्यक्ति को कुछ टेस्ट करने की सलाह देते हैं जो कि निम्नलिखित है:

  • शारीरिक जांच : डॉक्टर द्वारा मरीज में हाइपरथायरायडिज्म के शारीरिक लक्षण अर्थात जो शरीर में बिना किसी टेस्ट की सहायता से देखे जा सकते हैं उनकी जांच की जाती है जैसे गर्दन में सूजन, हृदय गति, गर्म और नमी भरी त्वचा। इसके अलावा पसीना आना और गर्मी के प्रति संवेदनशीलता की भी जांच की जाती है।
  • थायराइड ब्लड टेस्ट : रक्त की जांच करने के पश्चात थायराइड हार्मोन के सामान्य अथवा असामान्य लेवल की जांच कर पाना बहुत आसान हो जाता है। मरीज में हार्मोन की रेंज नॉर्मल लेवल से अधिक होती है। इस परीक्षण में टीएसएच की भी जांच होती है क्योंकि हाइपरथायरायडिज्म के मरीज का टीएसएच नॉर्मल लेवल से कम होता है।
  • थायराइड एंटीबॉडी ब्लड टेस्ट : चूंकि ग्रेव्स रोग के कारण भी हाइपरथायरायडिज्म होता है इसलिए एंटीबॉडी टेस्ट की सहायता से व्यक्ति में ग्रेव्स रोग है या नहीं इसकी जांच की जाती है।
  • इमेजिंग टेस्ट : हाइपरथायरायडिज्म की जांच के लिए मरीज को डॉक्टर द्वारा कुछ विशेष प्रकार के इमेजिंग टेस्ट की सलाह दी जाती है जैसे रेडियोएक्टिव आयोडीन इनटेक टेस्ट। इसके अलावा थायराइड को सकिएन करने के लिए अल्ट्रासाउंड भी सबसे अच्छा और उपयुक्त होता है।

निष्कर्ष

जैसा कि विदित है हाइपरथायरायडिज्म एक ऐसी अवस्था है जिसमें हमारे कंठ में स्थित तितली के आकार की थायराइड नामक ग्रंथि से थायराइड हार्मोन का उत्पादन अनावश्यक और बहुत अधिक मात्रा में बनने लगती है। हृदय गति बहुत अधिक बढ़ना, हृदय गति कम होना, बहुत पसीना आना, गर्मी के प्रति संवेदनशीलता आदि इसके लक्षण हैं। महिलाओं को ही ये विशेष प्रकार का थायराइड हो सकता है।

हाइपरथायरायडिज्म का इलाज भले ही संभव हो लेकिन क्या हो अगर आपको एक ऐसी बीमारी हो जाए जिसके इलाज में ढेर सारे धन की आवश्यकता हो लेकिन आपके पास पर्याप्त धन नहीं है? एक ऐसी गंभीर, घातक बीमारी आपको या आपके चित-परिचित को भविष्य में हो सकती है। उसके टेस्ट और इलाज में होने वाला खर्च आपके लिए वहन कर पाना कठिन हो सकता है। ऐसे में क्राउडफंडिंग एक अच्छा विकल्प हो सकता है। ये आपको ऐसे लोगों से जोड़ता है जो कठिन समय में आपकी मदद कर सकते हैं।

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