इस लेख में मिर्गी का मतलब, मिर्गी कैसे आती है, मिर्गी क्यों होता है, दौरा क्या है, दौरे के प्रकार, मिर्गी के प्रकार, मिर्गी के लक्षण, मिर्गी का कारण, मिर्गी का इलाज, बच्चों की मिर्गी या बाल मिर्गी और निष्कर्ष पर विस्तार से प्रकाश डालने वाले हैं।
Table of Contents
मिर्गी का मतलब (Epilepsy Meaning in Hindi)

न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का एक घातक, जानलेवा और चिरकालिक या दीर्घकालिक प्रकार जिसे मिर्गी रोग कहते है। मिर्गी का मतलब व्यक्ति को दौरे पड़ने लगते हैं। न्यूरॉन्स द्वारा गलत संदेश भेजे जाने के कारण अटैक आने लगता है। ये संदेश न्यूरॉन्स द्वारा शारीरिक और मानसिक गतिविधियों को क्रियान्वित करने के लिए भेजे जाते हैं लेकिन गलत या अत्यधिक संकेत अटैक का कारण बनते हैं। शरीर के सभी अंगों तथा मांसपेशियों को केमिकल और इलेक्ट्रिकल संदेश भेजे जाते हैं ताकि अनेक प्रकार की शारीरिक और मानसिक क्रियाओं को मूर्त रूप दिया जा सके।
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मिर्गी कैसे आती है?
जब मस्तिष्क में उपस्थित न्यूरॉन्स एक ही समय में बहुत सारे संदेश मस्तिष्क को भेजने लगते हैं तो मस्तिष्क शरीर के अंगों और मांसपेशियों को जस का तस गलत आदेश पारित कर देता है और परिणामस्वरूप व्यक्ति के व्यवहार में अजीब और असामान्य परिवर्तन होने लगता है। मिर्गी इसी तरह से आती है।
मिर्गी क्यों होता है?
मस्तिष्क में लगे गंभीर छोट, स्ट्रोक और ट्यूमर के कारण मिर्गी होती है। तनाव, अनिद्रा और भोजन कम खाने के कारण भी आ सकती है। हार्मोन के असंतुलन से भी आती है। कुछ मामलों में अनुवांशिक कारणों से भी मृगी आती है। अर्थात पारिवारिक इतिहास में पुरानी पीढ़ी अगर मिर्गी से पीड़ित थी आने वाली पीढ़ी भी इससे अछूती नहीं रहती।
दौरा क्या है?
दिमाग में न्यूरॉन्स के द्वारा अत्यधिक इलेक्ट्रिकल संदेश भेजे जाने के कारण शरीर में शारीरिक, मानसिक और व्यवहारात्मक गतिविधियों का असंतुलन हो जाता है और इसके फल स्वरूप दौरा आ जाता है। दौरा पड़ने के उपरान्त मनुष्य अपनी चेतना खो बैठता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि न्यूरॉन्स द्वारा गलत संदेश एक साथ और एक ही समय में भेजे जाते हैं। हमारे शरीर में न्यूरॉन का जटिल नेटवर्क है जो विद्युतीय अर्थात इलेक्ट्रिकल नेटवर्क के नाम से भी जाना जाता है। इस इलेक्ट्रिकल नेटवर्क के माध्यम से सभी अंग और मांसपेशियां दिमाग से जुड़ी होती हैं। किसी व्यक्ति को दौरा पड़ने पर मस्तिष्क में इलेक्ट्रिकल संदेश का प्रवाह बाधित हो जाता है। मस्तिष्क का इन गलत संदेशों पर कोई नियंत्रण नहीं रहता इसलिए दौरा पड़ता है।
दौरे के प्रकार
व्यापक स्तर पर दौरे को कई श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है लेकिन अधिकांश श्रेणियां आपस में इतनी मिलती-जुलती हैं कि उन्हें केवल दो ही श्रेणियों में सूचीबद्ध किया जाता है। सभी दौरों की परिभाषा, लक्षण और कारण अलग-अलग होते हैं। इसलिए अध्ययन और मिर्गी का इलाज की सुविधा से इन सभी प्रकारों का श्रेणीगत वर्गीकरण अनिवार्य हो जाता है।
दौरे दो प्रकार के होते हैं :
- फोकल दौरे : दिमाग के एक हिस्से में होने वाले दौरे को फोकल दौरे कहते हैं। इसका नामकरण फोकल दौरा इसलिए रखा गया क्योंकि इलेक्ट्रिकल नेटवर्क का शार्ट सर्किट फोकल पॉइंट से होता है। फोकल दौरे पीड़ित की स्मृति में रह भी सकते हैं लेकिन कुछेक मामलों में देखा गया है कि पीड़ित को याद ही नहीं है कि उसे दौरा कब आया। दौरे की प्रकृति और परिभाषा उनके उद्गम स्थान पर निर्भर करती है। उदाहरण स्वरूप फ्रंटल लोब में होने वाला दौरा फोकल फ्रंटल लोब दौरा कहलाता है। फोकल दौरे के दो प्रकार हैं जिनका उल्लेख नीचे किया गया है :
- फोकल ऑनसेट अवेयर सीजर : व्यक्ति को इस दौरे के उपरान्त तथा दौरे के बाद भी यह याद रहता है कि उसे दौरे पड़े थे। अर्थात फोकल ऑनसेट अवेयर दौरे के दौरान व्यक्ति अपनी चेतना पूरी तरह से नहीं खोता इसलिए उसकी स्मृति में दौरा जस का तस रहता है।
- फोकल ऑनसेट इंपेयर्ड अवेयरनेस : इस प्रकार के दौरे में व्यक्ति को दौरे के प्रति सजगता अर्थात वह दौरे को लेकर भ्रमित रहता है। साथ ही उसकी स्मृति में दौरा चस्पा नहीं हो पाता। इस प्रकार के दौरे में व्यक्ति अपनी चेतना खो देता है।
- सामान्यीकृत दौरे : फोकल दौरे की तुलना सामान्यीकृत दौरे में दिमाग के दोनों हिस्से प्रभावित होते हैं। इस प्रकार के दौरा पड़ने पर मनुष्य अपनी चेतना तो खो ही बैठता है लेकिन वह शारीरिक संतुलन भी खो देता है जिस कारण वह स्थिर खड़ा नहीं रह पाता और गिर जाता है। मांसपेशियों की ऐंठन और जकड़न भी इस दौरे के दौरान देखने को मिलती है। सामान्यीकृत दौरे के कई प्रकार हैं जिनका उल्लेख नहीं किया गया है :
- एब्सेंस : आम जनमानस की भाषा में इसे अनुपस्थित दौरा भी कहते हैं। नाम से ही इसकी परिभाषा और प्रकृति स्पष्ट हो रही है। इस प्रकार का दौरा पड़ने पर व्यक्ति किसी दिशा में न चाकहते हुए भी टकटकी लगाए देखने लगता है।
- एटॉनिक या ड्राप : इस प्रकार के सामान्यीकृत दौरे में व्यक्ति अपने मांसपेशियों से नियंत्रण खो बैठता है। शारीरिक संतुलन खो देने के कारण व्यक्ति स्थिर खड़ा नहीं रह पाटा और गिर पड़ता है। अनैच्छिक रूप से संतुलन खोने पर गिर जाने के अलावा उसका सिर नीचे झुक सकता है।
- क्लोनिक : इस प्रकार के दौरे में शरीर के दोनों हिस्से में एक समान झटके की अनुभूति होती है। क्लोनिक दौरे के दौरान व्यक्ति की मांसपेशियों में अनैच्छिक और अनियंत्रित झटके की अनुभूति होती है। शरीर के दोनों हिस्सों में एक समान झटके की अनुभूति क्लोन इफेक्ट की तरह होती है अर्थात शरीर का एक हिस्सा दूसरे की नकल कर रहा है।
- मायोक्लोनिक : कमर के ऊपर के हिस्से में तेज और अनियंत्रित झटके होने लगते हैं। सिर, हाथ में होने वाले तेज झटके मांसपेशियों में ऐंठन और जकड़न का कारण बनते हैं। ये बच्चे और वयस्कों दोनों में हो सकता है।
- टॉनिक : इस प्रकार का दौरा पड़ने पर व्यक्ति के हाथ, पैर और पीठ पर अकड़न हो जाती है। प्रभावित मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं। टॉनिक में ऐंठन और बेहोशी हो यह आवश्यक नही है।
- टॉनिक-क्लोनिक : टॉनिक दौरे की तुलना में टॉनिक-क्लोनिक दौरे के उपरान्त व्यक्ति को अकड़न, जकड़न, ऐंठन आदि की समस्या से सामना करना पड़ता है। इसके अलावा व्यक्ति बेहोश भी हो जाता है।
- सेकंडरी या द्वितीयक सामान्यीकृत : इस प्रकार के दौरे में व्यक्ति को सर्वप्रथम मस्तिष्क के एक भाग में दौरा पड़ता है जो धीरे-धीरे दिमाग के दूसरे भाग में भी फैल जाता है।
मिर्गी के प्रकार
देखने में ऐसा भले प्रतीत होता है कि सभी पीड़ित व्यक्तियों को एक ही तरह की मिर्गी ने अपने शिकंजे में जकड़ रखा है किन्तु ऐसा है नहीं। अध्ययन और मिर्गी का इलाज की सुविधा से मिर्गी को अनेक श्रेणियों में वर्गीकृत या सूचीबद्ध किया जाता है ताकि विभिन्न प्रकार के मिर्गी के लक्षण की पहचान आसानी से हो सके। हालांकि इसके प्रकार की प्रकृति और लक्षण की पहचान शरीर में उद्गम स्थान विशेष के आधार पर होती है। कुछेक मामलों में पारिवारिक इतिहास के कारण पिछली पीढ़ी से नई पीढ़ी में स्थानांतरित हो सकती है।
आइए जाने मिर्गी के प्रकार जो कि निम्नलिखित हैं :
- एब्सेंस एपिलेप्सी : इस प्रकार के दौरे या एपिलेप्सी में व्यक्ति किसी दिशा में अनैच्छिक टकटकी के लक्षण को दिखाता है। हालांकि यह सामान्य स्थिति में घूरने के ठीक उलट है क्योंकि एब्सेंस दौरे के कारण व्यक्ति न चाहते हुए भी किसी दिशा में देखता रहता है। अमूमन वह आसमान की और ताकता रहता है। अनावश्यक टकटकी के अलावा हो सकता है कि व्यक्ति को मांसपेशियों में ऐंठन या जकड़न की भी अनुभूति हो। हालांकि मांसपेशियों के ऐंठन के बिना भी एब्सेंस दौरा पड़ सकता है। अपने नाम से ये दौरा स्वयं की प्रकृति को परिभाषित करता है। व्यक्ति को जब इस प्रकार का दौरा पड़ता है तो वह वर्तमान में अनुपस्थित रहता है।
- फ्रंटल लोब एपिलेप्सी : दिमाग के फ्रंटल लोब में होने वाले दौरे को फ्रंटल लोब एपिलेप्सी कहते हैं। फ्रंटल लोब शरीर की गति और मांसपेशियों की गतिविधि को नियंत्रित करता है। अर्थात फ्रंटल लोब एपिलेप्सी होने के कारण शरीर के मांसपेशियों की गति धीमी या तेज दोनों में से कोई एक हो सकती है। जैसे आँख या आँखों की पुतलियों का एक तरफ घूम जाना, हाथ पैर मुड़ जाना या निरंतर हिलते रहना, मुंह का टेढ़ापन आदि फ्रंटल लोब एपिलेप्सी के लक्षण हैं।
- टेम्पोरल लोब एपिलेप्सी : फोकल दौरे पड़ने वाले व्यक्तियों में सबसे आम और प्रमुख दौरा टेम्पोरल लोब एपिलेप्सी है। इस दौरे के कारण मनुष्य अपनी चेतना खो देता है और आसमान की और न चाहते हुए भी टकटकी लगाए देखता रहता है।
नियोकॉर्टिकल एपिलेप्सी : इस प्रकार के दौरे में व्यक्ति को दृष्टि भ्रम और भावनात्मक असंतुलन होने लगता है। इसके अतिरिक्त मांसपेशियों में अकड़न, सिकुड़न, ऐंठन और दर्द की अनुभूति भी होने लगती है। इसके अतिरिक्त कुछ अलग प्रकार के लक्षण भी देखने को मिल सकते हैं जो पीड़ित व्यक्ति विशेष के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं।
मिर्गी के लक्षण
प्रकार के आधार पर इसके लक्षण भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। अटैक के उद्गम स्थान विशेष के कारण सभी प्रकारों के लक्षण एक समान नहीं है। लक्षण की पहचान आसानी से होने पर मिर्गी का इलाज किया जा सकता है। इसलिए मिर्गी के लक्षण के अंतर्गत हम उसके सभी प्रकारों के विभिन्न लक्षण को सूचीबद्ध करने वाले हैं।
- सामान्यीकृत दौरे के लक्षण : इस प्रकार के दौरे का उद्गम स्थान दिमाग के कोर्टेक्स में माना जाता है। सामान्यीकृत दौरे से पीड़ित दौरे के बाद भ्रमित रहता है। साथ ही उसमें अकड़न और ऐंठन भी हो सकती है। आइए सामान्यीकृत दौरे के लक्षण को जानें जो कि निम्नलिखित हैं :
- आँखें खुली रहती है : सामान्य स्थिति में मनुष्य की आँखें खुली तो रहती हैं लेकिन उसकी पलके झपकती रहती हैं। सामान्यीकृत दौरे में व्यक्ति की आँखें बिना पलक झपकाए खुली रहती है जैसे वह व्यक्ति जीवित नहीं अपितु मुर्दा लाश हो। मिर्गी के लक्षण में सबसे आम लक्षण है।
- नीला पड़ जाना : ऐसा प्रतीत होता है कि व्यक्ति सांस नहीं ले रहा है। परिणामस्वरूप शरीर नीला पड़ जाता है। हालांकि कुछ समय पश्चात गहरी सांस भी आने लगती है। ऐसा भी देखा गया है कि सांस उखड़ने लगती है।
- चेतना खो जाती है : व्यक्ति की चेतना दौरे के कारण खो जाती है जो लंबे अंतराल के पश्चात वापस आती है। व्यक्ति घंटों तक भ्रमित रहता है। मिर्गी के लक्षण में सबसे आम लक्षण है।
- दौरे में पेशाब करना : व्यक्ति को दौरे के कारण पेशाब छूट सकती है। यह सबसे आम लक्षण है।
- अप्रत्याशित व्यवहार : व्यक्ति कुछ ऐसी हरकतें कर सकता है जो अप्रत्याशित हो जैसे चीखना, चिल्लाना, अतड़ जाना आदि। मिर्गी के लक्षण में सबसे आम लक्षण है।
- फोकल ऑनसेट अवेयर सीजर के लक्षण : इस प्रकार के दौरे में मस्तिष्क का केवल एक हिस्सा ही प्रभावित होता है। चूंकि मस्तिष्क में इलेक्ट्रिकल संदेश के शार्ट सर्किट के स्थान विशेष के आधार पर मिर्गी के लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। आइए जानने फोकल ऑनसेट अवेयर सीजर के लक्षण जो कि निम्नलिखित हैं :
- हाथ में अनियंत्रित झटका : फ्रंटल लोब शरीर की गति को नियंत्रित करता है इसलिए मांसपेशियों के गति संबंधी कार्य जैसे हाथ और डुलना के स्थान पर झटके की अनुभूति होती है।
- व्यक्ति का घंटों भ्रमित रहना : आदमी सचेत रहने के स्थान पर चेतना खो देता है और फल स्वरूप वह घंटों भ्रमित रहता है। उसकी चेतना को वापस लौटने में समय लग सकता है।
- एब्सेंस दौरे के लक्षण : आइए जानें कि बचपन और किशोरावस्था में होने वाले सबसे आम और प्रचलित दौरे के लक्षण जो कि निम्नलिखित है :
- टकटकी लगाना : अवचेतन खो देने के कारण व्यक्ति आसमान या किसी दिशा में निरंतर न चाहते हुए भी देखता रहता है। टकटकी लगा कर देखने के उपरान्त व्यक्ति के चेहरे पर शून्य भाव रहता है।
- लगातार पलकें झपकाना : व्यक्ति दौरे के उपरान्त बार-बार और अनावश्यक रूप से पलक झपकाता है। पलकें झपकाने पर व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं रहता। यह अनियंत्रित होने के साथ-साथ अप्रत्याशित घटना भी होती है।
मिर्गी के कारण
एपिलेप्सी या मिर्गी रोग के कारणों में अनेक कारण है जिनमें से अधिकतर कारण आज भी अज्ञात है। मेडिकल साइंस अभी भी मिर्गी के अधिकतर कारणों का पता नहीं लगा पाया है। हालांकि मिर्गी के कारणों के अज्ञात रहने से मिर्गी का इलाज तब भी किया जा सकता है। अर्थात मिर्गी के कारण हले न पता च सके लेकिन मिर्गी का इलाज फिर भी किया जा सकता है। लेकिन समय के बढ़ते क्रम में विज्ञान और तकनीक के विकास ने कुछेक कारणों का पता लगा लिया है जिनका उल्लेख नीचे दिया गया है :
- गर्भावस्था में लगी चोट : अगर एक गर्भवती महिला को गर्भ धारण के समय चोट लग गई हो तो हो सकता है कि गर्भ में पल रहे शिशु को जन्म के पश्चात मिर्गी रोग हो सकता है। इसलिए गर्भ में पल रहे शिशु को बहुत अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है।
- बचपन में लगी चोट : अगर अतीत में बालपन या बचपन में कोई गंभीर चोट सिर पर लगी हो जिसमें बहुत रक्त का रिसाव हुआ हो तो आगे चलकर यह मिर्गी रोग को बुलावा देता है।
- ट्यूमर के कारण : अगर मस्तिष्क में कभी ट्यूमर बने जो कि वयस्क अवस्था में अधिक देखने को मिलता है तो यह निश्चित ही मिर्गी रोग का कारण बन जाता है। मस्तिष्क में बना ट्यूमर उसके इलेक्ट्रिकल संदेश को बहुत हद तक प्रभावित करता है।
- बढ़ती उम्र के कारण : आदमी को वृद्धावस्था में मस्तिष्क से संबंधित अनेक बीमारियां हो जाती हैं जैसे अल्ज़ाइमर, धमनियों में संक्रमण आदि जिसके चलते दौरे आने का खतरा बढ़ जाता है।
इन्फेक्शन के कारण : वायरस, बैक्टीरिया या फंगल इन्फेक्शन के कारण मस्तिष्क भी संक्रमित और परिणामस्वरूप दौरे के लिए अनुकूल परिस्थितयों का निर्माण करता है इसलिए इन्फेक्शन के चलते दौरे होने की संभावना बढ़ जाती है। अगर कोई व्यक्ति एड्स से संक्रमित है तो उसे दौरे आ सकते हैं।
मिर्गी का इलाज
जैसा की हमने मिर्गी का मतलब के अंतर्गत जाना कि ये एक चिरकालिक असंक्रामक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। मस्तिष्क के तंत्रिका कोशिकाओं अर्थात न्यूरॉन्स द्वारा गलत इलेक्ट्रिकल संदेश भेजने के कारण मस्तिष्क का अंगों और मांसपेशियों से नियंत्रण समाप्त हो जाता है। ठीक वैसे ही जैसे किसी ट्रांसफॉर्मर में लोड बढ़ने से शार्ट सर्किट हो जाता है। एक ही समय में एक साथ कई संदेश भेजे जाने के कारण शरीर के किसी एक या सभी हिस्सों में दौरा पड़ने लगता है।
लेकिन मिर्गी का इलाज करने से पूर्व कुछ मेडिकल टेस्ट करना अनिवार्य है जिससे एपिलेप्सी की जांच और निगरानी करने के पश्चात इसके उपचार का मार्ग प्रशस्त किया जा सके। इसलिए मेडिकल टेस्ट को निम्न बिंदुओं के माध्यम से सूचीबद्ध किया गया है :
- ईईजी : इसे इलेक्ट्रोऐंसेफ़ेलोग्राम कहते हैं। इस परीक्षण के माध्यम से मस्तिष्क की इलेक्ट्रिकल गतिविधियों को मापा जाता है ताकि इलेक्ट्रिकल संतुलन या असंतुलन की जांच आसानी से हो सके। दिमाग में तरंगों की असामान्यताओं से दौरे या एपिलेप्सी की प्रवृत्ति का पता चलता है।
- इसईईजी : इसे स्टीरियोइलेक्ट्रोऐंसेफ़ेलोग्राम कहते हैं। इस जांच की सहायता से सर्जरी कराने की आवश्यकता का बोध होता है। इस जांच से दौरे का उद्गम स्थान भी पता चलता है।
- एमआरआई : मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग को एमआरआई कहने का प्रचलन बहुत अधिक है। मानसिक रोग की जांच या परीक्षण हेतु एमआरआई जांच की अनिवार्यता सर्वाधिक है। इससे ट्यूमर का पता लगाया जाता जिसके कारण दौरा पड़ता है।
- सीटी स्कैन : इसका पूरा नाम कंप्यूटराइज्ड स्कैन है जिसके माध्यम से मस्तिष्क के ट्यूमर की जांच की जाती है। सीटी स्कैन एमआरआई के साथ में कराया जाता है।
- पीईटी : इसे पोजिटोन एमिशन टोमोग्राफी कहते हैं। यह मस्तिष्क का छाया चित्र खींच कर केमिकल इंबैलेंस वाले हिस्से को सूक्ष्म किन्तु स्पष्ट दृष्टि प्रदान करता है।
- फोटॉन एमिशन कम्प्यूटेड टोमोग्राफी : इसका सूक्ष्म नाम स्पेक्ट या SPECT है। दिमाग में फोकल दौरे का पता लगाने के लिए स्पेक्ट तकनीक का प्रयोग किया जाता है। यह दौरे के पुर्व तथा दौरे के समय रक्त प्रवाह की छवि प्रदर्शित करता है ताकि तुलनात्मक अध्ययन के माध्यम से उपचार का मार्ग प्रशस्त किया जा सके।
- रक्त परीक्षण : ब्लड टेस्ट या खून की जांच से अनुवांशिक कारणों का पता चलता है। अर्थात परिवार की पुरानी पीढ़ी में मिर्गी को पता लगाने के लिए यह कारगर होता है।
आइए अब जानें कि मेडिकल जांच के पश्चात बिना सर्जरी किए मिर्गी का इलाज कैसे किया जाता है जिसका उल्लेख नीचे दिया गया है :
- अनुकूल आहार : प्रोटीन युक्त आहार का सेवन करना चाहिए ताकि मिर्गी के अप्रत्याशित दौरे पर नियंत्रण पाया जा सके। कार्बोहाइड्रेट कम खाना है क्योंकि वह नुकसानदायक हो सकता है। खाने में शर्करा की मात्रा का भी भरपूर ध्यान रखना है।
- अच्छी नींद : पर्याप्त नींद लेने से हरेक बीमारी का इलाज हो जाता है इसलिए मिर्गी के मरीजों को भी भरपूर नींद लेने की आवश्यकता होती है ताकि उनके मस्तिष्क में इलेक्ट्रिकल और केमिकल बैलेंस ठीक रहे।
- व्यायाम करें : अच्छी कसरत से न केवल शरीर चुस्त और दुरुस्त रहता है अपितु दिमाग भी सक्रिय रहता है।
अगर इन उपायों से राहत नहीं मिलते तो जांच के माध्यम से यह पता लगाया जाता है कि मरीज की सर्जरी होनी चाहिए या नहीं। मिर्गी में सर्जरी अंतिम विकल्प होता है। सर्जरी दौरे को कम करने में बहुत मदद कर देती है।
बच्चों की मिर्गी या बाल मिर्गी
बालपन या बचपन में होने वाले दौरे को बाल मिर्गी या बच्चों की मिर्गी के नाम से जाना जाता है। अधिकतर मामलों में यह देखा गया है कि बच्चों की मिर्गी का विकास बचपन में होता है और किशोरावस्था में यह अपने अंतिम रूप को प्राप्त कर लेता है। अर्थात बच्चों की मिर्गी किशोर अवस्था में समाप्त हो जाती है। हालांकि कुछेक मामलों में बच्चों की मिर्गी या बाल मिर्गी किशोरावस्था में और प्रौढ़ होते देखि गयी है।
बच्चों की मिर्गी के अनेक प्रकार हैं जिनका उल्लेख निम्नलिखित है :
- चाइल्ड एब्सेंस : बच्चों को एक ऐसा दौरा होता है जिसमें वो न चाहते हुए भी आसमान में टकटकी लगाए देखता रहता है।
- लेनोक्स गैस्ट्रोट सिंड्रोम : चार वर्ष की आयु में होने वाला दौरा जिसके अंतर्गत शिशु अपना संतुलन खो देता है और धड़ाम से गिर जाता है।
- ड्रिवेट सिंड्रोम : एक वर्ष की आयु में होने वाली घातक और जानलेवा बाल मिर्गी।
- हाइपोथैलमिक हेमाटोमा : मानसिक प्रभाव या भावनात्मक परिवर्तन करने वाला चाइल्ड एपिलेप्सी जिसमें बच्चों के भाव में परिवर्तन देखने को मिलता है जैसे अचानक से हंसना या रोना।
आइए अब जाने बच्चों की मिर्गी के लक्षण :
- आसमान की ओर शून्य भाव से अनैच्छिक टकटकी लगाना
- संतुलन खोने के पश्चात अचानक से गिर पड़ना
- मांसपेशियों में अकड़न, जकड़न, ऐंठन और असहनीय पीड़ा
- भाव में परिवर्तन अर्थात अचानक से हंसना या रोना
- श्वास लेने में समस्या का सामना करना
आइए अब जाने बच्चों की मिर्गी के कारण :
- गर्भाशय के समय माँ को गर्भ में लगी चोट के कारण
- जन्म के बाद सिर पर गंभीर और गहरी चोट लगने के कारण
- कुछ मामलों में मस्तिष्क का ट्यूमर भी एपिलेप्सी का कारण होता है
- ऑटिज़्म, डिस्लेक्सिया आदि मानसिक रोग होने के कारण
- स्ट्रोक, इन्फेक्शन के कारण
- अनुवांशिक अर्थात पारिवारिक इतिहास के कारण
निष्कर्ष
हमने जाना कि मिर्गी का मतलब एक ऐसा न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जिसमें मरीज को दौरे आते हैं। हमने लेख के बढ़ते क्रम में यह जाना कि मिर्गी कैसे आती है और मिर्गी क्यों होता है। मिर्गी एक चिरकालिक असंक्रमण रोग है जिसका उपचार जीवंत पर्यन्त चलता रहेगा। ऐसे में वे सभी लोग जो निर्धन हैं, मिर्गी के उपचार से वंचित हो जाते हैं। ऐसे में धन की कमी से इलाज नहीं हो पाता। इस परिस्थिति में क्राउडफंडिंग एक अच्छा विकल्प हो सकता है।