संचारी रोग : प्रकार, लक्षण, कारण, रोकथाम और उपचार

किसी बाहरी तत्व के शरीर में प्रवेश करने से होने वाली बीमारी को संचारी रोग कहते हैं। इसका एक अन्य नाम संक्रामक रोग भी है। संक्रामक रोग को विशिष्ट हिंदी में संचारण रोग भी कहते हैं क्योंकि यह संचार के माध्यम से फैलता है। संक्रामक रोग को फैलाने वाले माध्यम एक नहीं अनेक हैं। जिन बाहरी तत्वों के कारण संक्रामक रोग शरीर में स्थापित होता है, वे तीव्र प्रक्रिया के माध्यम से शरीर में व्यापक स्तर पर विस्तार कर विकसित और उन्नत होते हैं। इस लेख में संचारी रोग परिभाषा, संचारी रोगों के नाम, संचारी रोगों के प्रकार, संचारी रोग कैसे फैलता है, संचारी रोग के लक्षण, संचारी रोग के कारण, संचारी रोग की रोकथाम, संचारी रोग नियंत्रण अभियान 2024 और निष्कर्ष पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

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संचारी रोग परिभाषा

संचारी रोग

शरीर में बाहरी तथा अनावश्यक तत्वों के प्रवेश से होने वाले रोग को संचारी रोग कहते हैं। यानी संचारी रोग परिभाषा के अंतर्गत हम कह सकते हैं कि ऐसे रोग जो संक्रमण या संचार के कारण होते हैं। संक्रमण मूल रूप से किसी बाहरी तत्व के शरीर में प्रवेश लेने से तथा तीव्र व्यापक विस्तार प्रक्रिया के माध्यम से विकसित और उन्नत होने से फैलता है। ये बाहरी तत्व बैक्टीरिया, वायरस, फंगस आदि संक्रमण हो सकता है। इसलिए इसका एक अन्य प्रचलित नाम संक्रामक रोग भी है।

संचारी रोगों के नाम

संक्रामक रोग या संचारी रोग के विभिन्न प्रकार हैं। डेंगू, मलेरिया, हैजा, चेचक, सभी प्रकार के हेपेटाइटिस, प्लेग, कोरोना आदि सभी संचारी रोगों के नाम हैं। इसके अलावा स्वाइन फ्लू, टीबी, एड्स, राइनोवायरस आदि संचारी रोगों के नाम हैं।

आइए जानें संचारी रोगों के नाम जो कि निम्नलिखित हैं :

  • छोटी माता : चिकन पॉक्स को छोटी माता के नाम से जाना जाता है। छोटी माता या चिकन पॉक्स की बीमारी से ग्रसित रोगी के शरीर में गहरे लाल की चक्तियाँ अर्थात फुंसी बनने लगती हैं। वेरीसेल्ला जोस्टर वायरस से होने वाला रोग ‘चिकन पॉक्स’ भी एक संक्रामक रोग है लेकिन भारत में इस संचारी रोग का नाम छोटी माता है।
  • मलेरिया : बाहरी तत्व प्रोटोज़ोआ से होने वाली बीमारी को मलेरिया कहते हैं। प्रोटोज़ोआ एक पैरासाइट है जो मानव शरीर में संचार के माध्यम से प्रवेश कर संक्रमित शरीर को सर्दी, जुकाम, बुखार आदि रोगों का घर बना देता है। संसार का सबसे प्रचलित और आम संक्रामक रोग मलेरिया आज भी विकाशील देशों में एक संकट के रूप में स्थापित है।
  • हैजा : कालरा को हिंदी में हैजा कहते हैं। गंदा पानी पीने से और दूषित भोजन ग्रहण करने से हैजा की बीमारी हो जाती है। हैजा या कालरा का कारण वाइब्रियो कॉलेरी बैक्टीरिया है। इसके अतिरिक्त जलीय वातावरण भी हैजा का घातक कारक हो सकता है।
  • डेंगू : गंदे पानी के स्रोत में पनप रहे डेंगू वायरस से होने वाली बीमारी को डेंगू कहते हैं। इससे संक्रमित व्यक्ति को प्रमुख रूप से बुखार आने लगता है। इस बुखार के चलते मरीज को हड्डियों में असहनीय पीड़ा का सामना करना पड़ता है। इसलिए डेंगू को हड्डी-तोड़ बुखार भी कहते हैं।
  • स्वाइन फ्लू : सूअरों से मनुष्य में संचारित होने वाले संचारी रोग को स्वाइन फ्लू कहते हैं। मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इसे एच1एन1 कहते हैं। हालांकि जैसे एच1एन2, एच3एन1 आदि इसके प्रकार या भेद भी है। लेकिन सूअर से मनुष्य के शरीर में संचारित होने के पश्चात यह विकसित और उन्नत होता है तथा अन्य दूसरे शरीर में प्रवेश करता है।
  • कोरोना वायरस : कोरोना वायरस के सभी वेरिएंट के समूह को कोरोना वायरस कहा जाता है। हाल ही में कोरोना का नया वेरिएंट कोविड-19 आया जिसने सकल संसार को अपनी चपेट में ले लिया। कोरोना वायरस के चलते संक्रमित व्यक्ति को श्वास तंत्र संक्रमण अर्थात रेस्पिरेटरी सिस्टम वायरस हो जाता है। संक्रमित व्यक्ति को सर्दी जुकाम और सांस लेने में समस्या का सामना करना पड़ता है लेकिन हालत बहुत अधिक गंभीर हो जाने पर रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।
  • इन्फ़्लुएन्ज़ा : ठंड या जाड़े के मौसम में फैलने वाली महामारी को इन्फ़्लुएन्ज़ा के नाम से जाना जाता है। वायरस ए, बी या सी के कारण होने वाले संक्रामक रोग को इन्फ़्लुएन्ज़ा के नाम से जाना जाता है। इस बीमारी के चलते रोगी को बुखार और भूख न लगने के लक्षण दृष्टिगत होते हैं।
  • राइनोवायरस : मामूली सर्दी जुकाम के लक्षण प्रदर्शित करने वाली बीमारी राइनोवायरस असल में एक ऐसा संचारी रोग है जो वायरस के समूह को कहा जाता है। इस रोग का कारक राइनोवायरस ए, बी और सी है। इसका एक अन्य प्रचलित सूक्ष्म नाम आरवी भी है। यह ऊपरी श्वसन तंत्र प्रणाली को सबसे पहले और सबसे अधिक प्रभावित करता है।
  • एचआईवी एड्स : इसका पूरा नाम ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस एक्वायर्ड इम्यूनोडिफिशिएंसी सिंड्रोम है। असुरक्षित शारीरिक संबंध बनाने के कारण एचआईवी एड्स होता है। दरअसल संक्रमित व्यक्ति में मौजूद एचआईवी शारीरिक संबंध बनाने के कारण स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
  • टीबी : घातक और जानलेवा बीमारी टीबी का पूरा नाम ट्यूबर क्लोसिस है। दरअसल टीबी एक ऐसा संचारी रोग है जो माइक्रोबैक्टीरिया टेपेडिम के कारण होता है। श्वसन तंत्र संक्रमण के अंतर्गत आने वाला रोग टीबी प्रमुख रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है लेकिन संक्रमण के विकसित और उन्नत होने से शरीर के अन्य अंगों पर भी इसका दुष्प्रभाव देखने को मिलता है।

उपरोक्त बिंदुओं के माध्यम से आपने जाना कि संचारी रोगों के नाम क्या-क्या है। इनके नाम और परिचय से जागरूकता और सतर्कता की लड़ाई को लड़ना आसान हो जाता है। वैसे तो संचारी रोगों के नाम अनगिनत हैं इसलिए सभी को इस लेख में सम्मिलित कर पाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसलिए कुछ प्रमुख, प्रचलित और आम बीमारियों को इस सूची में शामिल किया है।

संचारी रोग के प्रकार

संक्रामक रोग को व्यापक स्तर पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है लेकिन अध्ययन की सुविधा प्रदान करने हेतु इसके दो ही प्रकार निर्धारित किये गए हैं :

  • संक्रामक रोग : जब बाहरी और अनावश्यक तत्व शरीर में प्रवेश कर व्यक्ति को संक्रमित कर देते हैं तो इस प्रकार के कारणों के चलते जो रोग हो जाता है उसे संक्रामक रोग कहते हैं। इसके अनेक प्रकार होते हैं जैसे वायरल, बैक्टीरियल और फंगल आदि।
  • गैर-संक्रामक रोग : जो रोग बाहरी तत्वों जैसे बैक्टीरिया, फंगस आदि से नहीं होते उसे गैर-संक्रामक रोग कहते हैं। ये शारीरिक परिवर्तन के कारण हो सकते हैं। अनुवांशिक अर्थात पारिवारिक इतिहास के चलते भी गैर-संक्रामक रोग हो सकते हैं।

आइए अब संचारी रोग के प्रकार पर विस्तार से प्रकाश डाले जो कि निम्नलिखित हैं :

  • वायरल : वायरस से होने वाला संक्रामक रोग जिसे वायरल संक्रमण भी कहते हैं। ये वायरस आकार में इतने छोटे होते हैं कि इन्हें नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता। यानी वायरस को माइक्रोस्कोप की सहायता से ही देखा जा सकता है।
  • बैक्टीरियल : हिंदी में इसे जीवाणु संक्रमण कहते हैं। ऐसे हानिकारक बैक्टीरिया जो शरीर में प्रवेश करने के पश्चात ऐसे पदार्थ छोड़ते हैं जो विष से भरे हो जिस कारण संक्रमित व्यक्ति का शरीर अनेक रोगों का घर बन जाता है।
  • फंगल : वायरस और बैक्टीरिया की तुलना में फंगस कई गुना अधिक हानिकारक और जानलेवा होते हैं। फंगल के कारण होने वाले संक्रामक रोग मुंह और नाक के माध्यम से स्वस्थ शरीर में प्रवेश करते हैं। तत्पश्चात् तीव्र प्रक्रिया के माध्यम से संक्रमित व्यक्ति के शरीर में व्यापक विस्तार करते हैं।
  • पैरासाइट्स : पिछले तीन बाहरी तत्व के ठीक उलट पैरासाइट्स शरीर में प्रवेश करने के पश्चात प्रजनन के माध्यम से संक्रमित व्यक्ति के शरीर में व्यापक विस्तार करते हैं। हेल्मिथ और प्रोटोज़ोआ सबसे प्रचलित और आम पैरासाइट्स हैं। इसका एक अन्य नाम परजीवी भी है।

संचारी रोग कैसे फैलता है?

संक्रामक घटक के चलते संचारी रोग फैलता है। संक्रामक घटक को अंग्रेजी में वायरल एजेंट कहते हैं। यानी वह एजेंट जिनके कारण  संक्रामक रोग होता है। वायरल एजेंट या संक्रामक एजेंट को रोगजनित कारक भी कहते हैं। ये ऐसे कारक हैं जो संक्रमण के संचार हेतु अनुकूल होते हैं।

आइए निम्न बिंदुओं के माध्यम से यह जानें कि संचारी रोग कैसे फैलता है :

  • दूषित सतह के माध्यम से : संक्रमण जब किसी सतह पर स्थान ग्रहण कर ले तो वह दूषित हो जाता है। तत्पश्चात इस स्थान विशेष पर कोई स्वस्थ शरीर का आगमन हो जावे तो उस दूषित स्थान या सतह के माध्यम से शरीर में वायरस या कोई अन्य बाहरी तत्व प्रवेश कर जाता है। अगर दूषित स्थान विशेष में बस्तियां पास-पास हैं तो संक्रमण फैलने के आसार अधिक होते हैं।
  • संक्रमित आहार ग्रहण करने से : अगर आपके द्वारा प्रयोग में लाया जाने वाला पीने का पानी गंदा है तो उस गंदे पानी में उपस्थित अनावश्यक और संक्रमित कण स्वस्थ शरीर में प्रवेश कर जाते हैं जिससे व्यक्ति संक्रमित हो जाता है। दूषित भोजन ग्रहण करने से संक्रामक रोग फैलता है। दूषित भोजन के कारण शरीर में संक्रमण का संचार होता है।
  • हवा के माध्यम से : हवा को सबसे अच्छा संक्रामक एजेंट कहते हैं। संक्रमण का संचार और विकास हवा के माध्यम से सर्वाधिक और सबसे पहले होता है। हवा में संक्रमण बहुत अधिक समय तक जीवित रहते हैं इसलिए हवा के माध्यम से ये किसी भी स्वस्थ शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। हवा में उपस्थित संक्रमण स्वस्थ व्यक्ति के मुँह और नाक से प्रवेश करते हैं तथा कुछ ही समय में अपना व्यापक विस्तार करते हैं।
  • संक्रमित व्यक्ति के द्वारा : अगर कोई व्यक्ति संक्रमित है तथा उसने अपने आप को एकांतवास में नहीं रखा है तो कोई भी स्वस्थ शरीर (जो संक्रमित व्यक्ति के आस-पास हो) संक्रमण का शिकार हो सकता है। संक्रमित व्यक्ति से हाथ मिलाने पर, आलिंगन लेने पर, असुरक्षित यौन संबंध स्थापित करने पर या उसके खांसी और थूक से संक्रमण फैल सकता है।
  • संक्रमित व्यक्ति की वस्तुओं के माध्यम से : अगर संक्रमित व्यक्ति के तौलिये, रुमाल, कपड़े, मोबाइल या अन्य किसी वस्तु के सम्पर्क में कोई स्वस्थ व्यक्ति आ जाता है तो निश्चित ही संक्रमण फैल जाता है। संक्रमित व्यक्ति की वस्तुओं में संक्रमण कुछ समय तक जीवित रहता है।

संचारी रोग के लक्षण

जैसा कि विदित है संचारी रोग के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि संक्रामक रोग का प्रकार क्या है। हालांकि सभी बीमारियां संक्रामक रोग की श्रेणी के अंतर्गत आते हैं इसलिए संचारी रोग के लक्षण सभी बीमारियों में सामान्य भी हैं।

आइए सामान्य रूप से संचारी रोग के लक्षण को जानें जो कि निम्नलिखित हैं :

  • बुखार : स्वस्थ शरीर में संक्रमण के फैल जाने से शरीर की रोग से लड़ने वाली शक्ति अपना काम शुरू कर देती है। इसके परिणामस्वरूप शरीर में ज्वर या बुखार होने लगता है। इसलिए सभी प्रकार के संक्रामक रोग में बुखार के लक्षण सबसे पहले दृष्टिगत होते हैं।
  • सर्दी, जुकाम और नाक बहना : संक्रमण फैलने के कारण सर्दी और जुकाम होना आम बात है क्योंकि नाक के भीतर मौजूद बाल में छोटे-छोटे कण जमा हो जाते हैं तथा द्रव्य रूपी विकार भी जमा हो जाता है। बार-बार छींक आना और नाक बहना इसका प्रमुख लक्षण है। इसके अतिरिक्त नाक का हमेशा भरा-भरा लगना भी इसके लक्षण में सम्मिलित है।
  • खांसी आना : संक्रामक रोग अमूमन श्वसन तंत्र संक्रमण होते हैं इसलिए नाक, कान, गला और फेफड़े को प्रभावित करते हैं। फेफड़ों का संक्रमित होना सबसे आम लक्षण है क्योंकि संक्रमण के चलते फेफड़ों में कफ जमा हो जाता है। इसलिए संक्रमित व्यक्ति को सूखी या गीली खांसी आती है।
  • दस्त लगना : स्वस्थ शरीर में संक्रमण के फैल जाने से पाचन की समस्या का सामना करना पड़ता है। दूषित और अनावश्यक तत्व जिन्हें विकार समझ कर शरीर से बाहर कर देना चाहिए वह निकल नहीं पाते और अपच की समस्या हो जाती है। इस कारण दस्त लगने लगते हैं।
  • अनावश्यक थकान : स्वस्थ शरीर में संक्रमण के आ जाने से प्रतिरोधक क्षमता सक्रिय हो जाती है और अपना काम करने लगती है। इसके चलते शरीर की ऊर्जा कम हो जाती है और थकान की अनुभूति होने लगती है।
  • उल्टी और उबकाई आना : संक्रमण के कारण अपच की समस्या पैदा होना आम बात है जिसके चलते जठरांत्र के नियमित क्रियाकलाप में अड़चन आने लगती है। बार-बार उल्टी होने लगती है। इसके अतिरिक्त उबकाई भी आने लगती है।
  • ठंड और कंपकंपी लगना : संक्रमण के कारण बुखार आने लगता है और फलस्वरूप शरीर का तापमान बढ़ जाता है। ऐसे में ठंड लगना स्वाभाविक सी बात है। इसलिए संक्रमित व्यक्ति को ठंड और कंपकंपी लगने लगती है।
  • मांसपेशियों और हड्डी में दर्द : स्वस्थ शरीर में संक्रमण को विकसित होने से रोकने के लिए रोग से लड़ने वाली शक्ति या क्षमता अपना काम करने लगती है और ततपश्चात शरीर की ऊर्जा समाप्त होने लगती है। इसके चलते मांसपेशियों में तथा हड्डियों में दर्द होने लगता है।

संचारी रोग के कारण

संक्रामक रोग के संचार में कारक और माध्यम का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए संक्रामक रोग के कारणों में उसके प्रकार को प्रमुख रूप से सम्मिलित किया जाता है। वायरल, फंगल, बैक्टीरियल और पैरासाइट्स ही संचारी रोग के कारण हैं। वायरस, फंगी, बैक्टीरिया और परजीवी शरीर में प्रवेश कर तीव्र प्रक्रिया के माध्यम से अपना व्यापक विस्तार कर लेते हैं।

संचारी रोग की रोकथाम

बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन की एक रिपोर्ट के अनुसार संसार में बीमारियों से होने वाली मौत की शीर्ष दस की सूची में संक्रामक रोग या संचारी रोग को भी शामिल किया गया है। अर्थात संक्रामक रोग से होने वाली मौत को मृत्यु के शीर्ष दस प्रमुख कारणों में गिना जाता है। मेडिकल शिक्षा प्रदान करने वाली ये संस्था संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के हॉस्टन में स्थित है। ये आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। यानी संचारी रोग एक वैश्विक समस्या बन चुकी है। इसलिए संचारी रोग की रोकथाम पर सकल संसार में अनेक प्रयास चलाये जा रहे हैं।

आइए जानें संचारी रोग की रोकथाम जो कि निम्नलिखित है :

  • स्वच्छता अपनाये : अपने वातावरण को स्वच्छ रखें ताकि सतह दूषित न होने पाए। दूषित सतह पर संक्रमण आसानी से फैलता है। दरअसल एक सतह पर संक्रमण कुछ समय तक जीवित रह सकता है और अगर अपने आस-पास की जगह को साफ रखने से संक्रमण का संचार नहीं हो पाता। गंदा पानी न जमा होने दे, कचरा घर से बाहर रखें, झाड़ू और पोंछा समय-समय पर लगाने से संक्रमण मर जाता है।
  • संक्रमित व्यक्ति से दूरी : अगर आपके आस-पास कोई संक्रमित व्यक्ति है तो उससे दू फ़ीट की दूरी रखें। संक्रमण जब संक्रमित व्यक्ति के शरीर से हवा के द्वारा बाहर निकलता है तो केवल दो फ़ीट तक ही स्थापित होता है। उचित दूरी बना लेने से संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है।
  • संक्रमित व्यक्ति की वस्तुओं से बचें : जितना हो सके संक्रमित व्यक्ति के मोबाईल, तौलिये, रुमाल, कपड़े आदि का प्रयोग न करें क्योंकि उसके सामान में संक्रमण बहुत अधिक समय तक जीवित रह सकता है।
  • मुंह और हाथ धोते रहे : संक्रमण इस प्रतीक्षा में रहता है कि मुंह, नाक और हाथ के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर अपना विस्तार करे इसलिए समय-समय पर मुंह और हाथ धोते रहे ताकि संक्रमण न जमा होने पाए।
  • दूषित आहार न ग्रहण करें : गंदा पानी पीने से और दूषित भोजन खाने से संक्रमण बहुत जल्दी शरीर में स्थान ग्रहण करता है। इसलिए पीने के पानी को छन्नी से छान कर ही पियें तथा खाने की सामग्री को उपयोग लेने से पहले अच्छे से धो लें।
  • रुमाल लगाएं या मास्क पहने : मुंह पर मास्क लगाए या रुमाल से ढकें ताकि हवा में मौजूद संक्रमण नाक और मुंह के माध्यम से शरीर में प्रवेश न करे। सार्वजनिक स्थलों को छूने से बचें क्योंकि ऐसी अनजान सतहों पर संक्रमण हो सकता है जिसको छूने से वह आपके शरीर में प्रवेश कर सकता है।

आइए लेख के अगले भाग में जानें एक ऐसा अभियान जिसे भारत सरकार ने संचारी रोग की रोकथाम के अंतर्गत चलाया ताकि लोगों में संक्रामक रोग के प्रति जागरूकता और सतर्कता दोनों हो।

संचारी रोग नियंत्रण अभियान 2024

भारत सरकार के प्रयासों के चलते दिनांक 1 से 31 अक्टूबर तक देश के कोने-कोने में संचारी रोग नियंत्रण अभियान 2024 चलाया गया था। इस अभियान के अंतर्गत लोगों का ध्यान स्वच्छता की ओर आकृष्ट किया गया ताकि स्वच्छ भारत के स्वप्न से संक्रामक रोग को भी समाप्त किया जाए। 

निष्कर्ष

संक्रामक रोग एक वैश्विक समस्या बन चुकी है। बैक्टीरिया, फंगस, वायरस और पैरासाइट्स जैसे बाहरी तत्वों के कारण संक्रामक रोग होते हैं। अनुकूल माध्यम के कारण संक्रामक रोगों का संचार बहुत तेजी से होता है। लक्षण की आसानी से पहचान कर इस घातक बीमारी से लड़ा जा सकता है। लेकिन संक्रामक रोग इतना जानलेवा और घातक है कि इसके इलाज के लिए केवल लक्षण और जानकारी नहीं अपितु धन की भी आवश्यकता होती है। जिन लोगों के पास धन की कमी है उनके लिए इस बीमारी से लड़ना कठिन हो जाता है। ऐसे में क्राउडफंडिंग एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

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