इस संसार की सबसे घातक, गंभीर और जानलेवा संक्रामक बीमारियों की सूची में टीबी या क्षय रोग शीर्ष स्थान ग्रहण करता है। एक ऐसा घातक रोग जो फेफड़ों को बीमार, बहुत बीमार बना देता है। वैश्विक संकट की पदवी प्राप्त करने के चलते क्षय रोग को महामारी की भी संज्ञा प्रदान की गयी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार संसार की एक तिहाई आबादी टीबी से ग्रसित है। इस रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। वर्ष 2015 से लेकर अब तक टीबी से होने वाली मौतों की संख्या 90 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं। वर्ष 2023 में एक करोड़ लोग टीबी की चपेट में आ गए। इन एक करोड़ लोगों में केवल 60 लाख तो पुरुष ही थे। अन्य प्रभावित लोगों की संख्या में महिलायें 36 लाख और बच्चे 13 लाख हैं।
आज के इस लेख में क्षय रोग का अर्थ, क्षय रोग का संक्रमण कैसे होता है, क्षय रोग किस जीवाणु से फैलता है, क्षय रोग के लक्षण, क्षय रोग किसके कारण होता है, क्षय रोग के इलाज के बारे में जानकारी, क्षय रोग की पहचान, विश्व क्षय रोग दिवस और निष्कर्ष पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।
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क्षय रोग का अर्थ

टीबी या ट्यूबरक्लोसिसएक घातक संक्रामक रोग है। इसका एक अन्य नाम क्षय रोग भी है। यह रोग फेफड़ों को प्रभावित करता है। चूंकि यह रोग श्वसन तंत्र (Respiratory System) को सबसे अधिक प्रभावित करता है इसलिए इसे श्वास रोग की श्रेणी में भी रखा जाता है। इस रोग से संक्रमित रोगी को तीन सप्ताह से अधिक खांसी, खांसी के साथ खून, ठंड, बुखार आदि समस्या का सामना करना पड़ता है।
क्षय रोग का संक्रमण कैसे होता है?
ट्यूबरक्लोसिस से संक्रमित व्यक्ति के द्वारा छींकने, खांसने और थूकने के कारण इसके जीवाणु हवा में छोटे-छोटे कण के रूप में फैल जाते हैं। हवा में मौजूद ये कण स्वस्थ व्यक्ति के भीतर तब प्रवेश कर जाते हैं जब वह इसी हवा में सांस लेता है। तत्पश्चात् स्वस्थ व्यक्ति भी क्षय रोग से संक्रमित हो जाता है। ट्यूबरक्लोसिसजिस जीवाणु के कारण फैलता है उसका नाम माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस है। भले ही हवा के माध्यम से टीबी एक व्यक्ति से दूसरे में प्रवेश कर व्यक्ति के फेफड़ों को प्रभावित करता है लेकिन शरीर में संक्रमण के व्यापक विस्तार के लिए
क्षय रोग किस जीवाणु से फैलता है?
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु के कारण टीबी फैलता है। इसलिए क्षय रोग का मेडिकल टर्मिनोलॉजी के अंतर्गत ट्यूबरक्लोसिस नाम इसके जीवाणु के आधार पर रखा गया है। संक्रमित व्यक्ति को छूने, चूमने या साथ में खाना खाने से टीबी नहीं फैलता।
क्षय रोग के लक्षण
जब लोगों में इस रोग के प्रति सही जानकारी, सरकार और अन्य संस्थाओं द्वारा जागरूकता तथा व्यक्तिगत स्तर पर सतर्कता होने पर ही टीबी से बचाव तभी संभव है। इस बात को ध्यान में रखते हुए क्षय रोग के लक्षण को सरल-सहज भाषा में प्रेषित किया गया है। चूंकि यह श्वास तंत्र से संबंधित संक्रामक रोग है इसलिए श्वास रोग और संक्रामक रोग के लक्षण टीबी के मरीज में प्रमुख रूप से दृष्टिगत होते हैं। हालांकि यह जरूरी नहीं के श्वास रोग के लक्षण दिखने पर उसे क्षय रोग के लक्षण के रूप में चिन्हित किया जाए। यही कारण है कि क्षय रोग के लक्षण को भ्रामक संकेत की संज्ञा प्रदान की गई है।
आइए निम्न बिंदुओं के माध्यम से क्षय रोग के लक्षण को विस्तार से जानें :
- तीन सप्ताह से अधिक खांसी : टीबी के मरीज को लंबे समय तक खांसी की समस्या रहती है। तीन सप्ताह से अधिक खांसी की शिकायत होने पर उसे क्षय रोग के लक्षण के रूप में चिन्हित किया जाता है। यह टीबी के सबसे प्रमुख लक्षणों में से एक है। अगर किसी व्यक्ति को लंबे समय से लगातार खांसी की समस्या से जूझना पड़ रहा है तो इसे हल्के में न लेवे। लगातार खांसी के लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श करें।
- खून वाली खांसी : फंगल इंफेक्शन के चलते फेफड़ों में ब्लड क्लॉट बन जाता है और ये थक्का खांसी के साथ बाहर निकलने लगता है। टीबी के मरीज को खांसी के साथ खून भी निकलता है जिसे खून वाली खांसी भी कहते हैं। फेफड़ों पर टीबी के संक्रमण का दुषप्रभाव होने के चलते खांसी के साथ-साथ खून भी निकलने लगता है। संक्रमण के कारण होने वाले किसी भी श्वास रोग में खांसी के साथ बलगम या खून निकलना प्रमुख संकेतों में से एक है। इस प्रकार का गंभीर लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श लेवे।
- सीने में दर्द : लगातार खांसी और खून वाली खांसी के अतिरिक्त टीबी के मरीज को सीने में असहनीय पीड़ा भी होती है। अर्थात लगातार खांसी, खून वाली खांसी के साथ-साथ अगर सीने में दर्द हो रहा है तो ये इस संक्रामक रोग का लक्षण हो सकता है। लिंफ नोड में सूजन होने के कारण सीने में दर्द की शिकायत टीबी के मरीज को हो सकती है।
- सांस फूलना : चूंकि टीबी को श्वास रोग की श्रेणी में रखा जाता है इसलिए संक्रमित व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। संक्रमण फेफड़ों तक इस हद तक फैल जाता है कि लिंफ नोद में सोजन आ जाती है। इस सूजन के चलते फेफड़ों के खुलने और सिकुड़ने (सांस लेने की प्रक्रिया) की गति प्रभावित हो जाती है। परिणामस्वरूप सांस लेने में समस्या का सामना करना पड़ता है।
- अनावश्यक थकान और कमजोरी : लिंफ नोड में स्थान ग्रहण करने के पश्चात संक्रमण शरीर के अन्य भागों में अपना विस्तार करने लगता है। इस कारण यह रोग संक्रमित व्यक्ति को कमजोरी प्रदान करता है और फलस्वरूप थकान की अनुभूति होती है। बिना कोई परिश्रम किए अनावश्यक थकान और कमजोरी होने लगती है।
- तेज बुखार : संक्रमण जब शरीर को कमजोर करने लगता है तो उससे ज्वर या तेज बुखार टीबी रोगी के शरीर में प्रतिफलित होता है। वैसे केवल टीबी ही नहीं अन्य किसी भी संक्रामक रोग में और श्वास रोग में तेज बुखार होना सबसे आम और प्रचलित संकेत है। हालांकि मरीजों में हल्के बुखार के लक्षण भी देखने को मिले हैं।
- रात में पसीना आना : टीबी के मरीज को रात में अनावश्यक और अत्यधिक पसीना आने की शिकायत अवश्य रूप से रहती है। सामान्य परिस्थितियों की तुलना में संक्रमित व्यक्ति को बुखार, खांसी के साथ-साथ बहुत पसीना भी आता है जो टीबी का लक्षण हो सकता है।
- पेट तथा जोड़ों में दर्द : हालांकि यह प्राथमिक लक्षण नहीं है लेकिन पेट और जोड़ों में असहनीय पीड़ा हो सकती है। भले ही टीबी या क्षय रोग फेफड़ों से जुडी समस्या है लेकिन इसका संक्रमण शरीर के अन्य भागों में भी अपना व्यापक विस्तार करता है। इसलिए पेट में दर्द, जलन और जोड़ों में दर्द की समस्या होती है।
- भूख नहीं लगना : संक्रमण व्यक्ति को कमजोर, बहुत अधिक कमजोर कर देता है। अन्य लक्षणों के चलते शरीर के दैनिक कार्य जैसे खान पान भी समय पर नहीं हो पाते। तत्पश्चात् टीबी के मरीज को भूख नहीं लगती या खाना खाने की इच्छा नहीं होती है। भूख नहीं लगने के कारण संक्रमित व्यक्ति अलप आहारी हो जाता है और फलस्वरूप उसका वजन भी घटने लगता है।
क्षय रोग किसके कारण होता है?
जैसा की इस ब्लॉग के शुरूआती भाग में आप पढ़ चुके हैं कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु के कारण टीबी होता है। इसलिए क्षय रोग का मेडिकल टर्मिनोलॉजी के अंतर्गत ट्यूबरक्लोसिस नाम इसके जीवाणु के आधार पर रखा गया है। खांसने, छींकने और थूकने के कारण टीबी होता है। हालांकि इन कारणों के अलावा भी टीबी रोग के अन्य कई घातक कारक हैं जिनकी चर्चा नीचे विस्तार से हुई है।
आइए निम्न बिंदुओं के माध्यम से क्षय रोग के कारण को विस्तार से जानें :
- खांसने, छींकने और थूकने से : टीबी संक्रमित व्यक्ति द्वारा खांसने, छींकने और थूकने से संक्रमण हवा में सूक्ष्म कण के रूप में मिल जाते हैं तथा किसी स्वस्थ व्यक्ति द्वारा उसी हवा में सांस लेने से उसके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। दरअसल संक्रमण हवा में बहुत देर तक जीवित अवस्था में रह सकते हैं तथा हवा को माध्यम बना कर किसी स्वस्थ व्यक्ति के फेफड़ों में प्रवेश कर सकते हैं।
- कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली : अगर किसी व्यक्ति का इम्यून सिस्टम या प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है तो ये टीबी का कारण बन सकता है। दरअसल टीबी या ट्यूबरक्लोसिस कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली को माध्यम बना कर ही शरीर में प्रवेश कर सकता है। रोग से लड़ने की शक्ति अगर व्यक्ति में कम होना संक्रमण होने की अनिवार्य शर्त है।
- संक्रमित क्षेत्र में रहने या निवास करने से : ऐसा क्षेत्र जिसमें टीबी संक्रमित मरीजों की संख्या अत्यधिक मात्रा में हो उस स्थान विशेष में बार-बार यात्रा करने से या लंबे समय तक निवास करने से स्वस्थ व्यक्ति में संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है। दरअसल संक्रमित व्यक्ति के शरीर से संक्रमण छोटे पदार्थ या कण स्वरूप बाहर निकलता है तो वह हवा में रह कर कुछ समय तक जीवित रहता है। संक्रमण व्यक्ति के दो फ़ीट की दूरी तक अपना व्यापक विस्तार करता है।
- संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से : लगातार या बार-बार संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से भी संक्रमण फैलने की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि कई लोगों में संक्रमण से लड़ने की शक्ति अपार होती है इसलिए ऐसे लोगों को संक्रमण होने का खतरा कम होता है। संभावना उन लोगों में अधिक होती है जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है।
- धूम्रपान के कारण : सिगरेट, बीड़ी या अन्य किसी भी प्रकार का नशीला पदार्थ जिसे धुंए के रूप में पीया जा सकता है, वह फेफड़ों में प्रवेश करते ही टीबी की संभावना को सौ गुना बढ़ा देता है। अगर टीबी के इलाज के समय संक्रमित व्यक्ति धूम्रपान की लत पकड़ ले तो उसके टीबी ठीक होने की संभावना न के बराबर रहती है।
- वायु प्रदूषण : मोटरगाड़ी, फैक्टी आदि से निकलने वाली विषैली वायु एक ऐसा जहर है जो हवा में घुल कर प्रतीक्षा कराती है कि मनुष्य जब इस ज़हरीली हवा में सांस ले तो वे उनके फेफड़ों में प्रवेश कर टीबी के खतरे को बढ़ा दे। इसलिए हवा में घुला विष ट्यूबरक्लोसिस के प्रमुख कारणों में से एक है।
- मधुमेह और किडनी की समस्या के कारण : डायबिटीज या मधुमेह तथा किडनी संबंधी समस्याओं को क्रोनिक बीमारियों की संज्ञा प्रदान की गयी है। टीबी का इंफेक्शन इसलिए अपना मार्ग मधुमेह के रोगी में प्रशस्त कर सकता है क्योंकि इन रोगियों की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है।
क्षय रोग के इलाज के बारे में जानकारी
ट्यूबरक्लोसिस या टीबी पूरी तरह से ठीक हो सकता है। केवल छह महीने के उपचार से सक्रिय टीबी ठीक हो सकता है। यानी दवाई और सही उपचार से क्षय रोग को जड़ से समाप्त किया जा सकता है। जीवाणु या बैक्टीरिया के कारण टीबी होता है इसलिए डॉक्टर मरीज को सुनियोजित रणनीति के अंतर्गत एक विशेष अवधि तक चलने वाली दवाई की खुराक प्रदान करते हैं जो बैक्टेरिया से लड़ने में सक्षम होती है। सरकारी अस्पतालों में टीबी का इलाज निःशुल्क है। इस मुफ्त दवाई को डॉट्स के नाम से भी जाना है। डॉट्स का फूल फॉर्म डायरेक्टली ओब्ज़र्व्ड थेरेपी शार्ट कोर्स है। इसके नामकरण की एक विशेष वजह है। दरअसल दवाइयों की खुराक संक्रमित व्यक्ति अकेले में या एकांत वास में नहीं खा सकता। खुराक लेने के लिए उसे एक मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है जो खुराक कब लेनी है और कितनी लेनी है इसकी निगरानी कर सके। मार्गदर्शक की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि टीबी का उपचार केवल मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं है अपितु यह एक सामुदायिक उत्तरदायित्व है। यानी समुदाय की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को सही उपचार और देखभाल प्रदान करे तथा टीबी को समाज और संसार से उखाड़ फेंके।
क्षय रोग की पहचान
प्रारंभिक चरण या अवस्था में टीबी या क्षय रोग की पहचान उन संकेतों के माध्यम से हो सकती है जिसे शुरुआती स्तर की चेतावनी के रूप में चिन्हित किया जाता है। भले ही ट्यूबरक्लोसिस को विकसित होने में समय लगे लेकिन किसी भी मरीज में कुछ विशेष प्रकार के शुरुआती लक्षण देखने को मिलते हैं।
आइए निम्न बिंदुओं के माध्यम से जानें कि क्षय रोग की पहचान कैसे करते हैं :
- तीन सप्ताह से अधिक लगातार खांसी
- खून वाली खांसी अर्थात खांसी के साथ खून आना
- सांस फूलना
- सीने में दर्द
- हल्का या तेज बुखार
- रात में अत्यधिक और अनावश्यक पसीना आना
- अकारण वजन घटना
- भूख कम लगना
- अनावश्यक थकान और कमजोरी
- पेट और जोड़ों में दर्द
हालांकि अधिकांश श्वास रोग और संक्रामक रोगों में ये लक्षण देखने को मिलते हैं इसलिए इन्हें भ्रामक संकेत की संज्ञा प्रदान की गयी है। अगर क्षय रोग की पहचान समय से पूर्व हो जाए तो मरीज को घातक बीमारी से बचाया जा सकता है।
विश्व क्षय रोग दिवस
प्रत्येक वर्ष 24 मार्च को ‘विश्व क्षय रोग दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। संसार की सबसे घातक संक्रामक बीमारी टीबी या ट्यूबरक्लोसिस के बारे में जागरूकता लाने और सही जानकारी देने के उद्देश्य से यह दिवस मनाया जाता है।
निष्कर्ष
महामारी की संज्ञा प्राप्त करने के पश्चात टीबी एक वैश्विक संकट बन चुका है। इसलिए इसे जड़ से समाप्त करने की जिम्मेदारी हर मनुष्य की बनती है। टीबी से जुड़े आंकड़े हैरान करने वाले हैं। प्रतिवर्ष टीबी के मामलो में 19 फीसदी की बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। टीबी से जुड़े अधिकतर मामले विकासशील, पिछड़े और निर्धन देशों में अधिक देखने को मिले हैं। ऐसी जगहों में मेडिकल सुविधाओं की कमी के चलते एक बहुत बड़ी जनसंख्या इलाज से वंचित हो जाती है। स्वास्थ्य संगठन की यह जिम्मेदारी बनती है कि ऐसे जरूरतमंद लोगों तक वह सबसे पहले पहुंचे।
अगर भविष्य में आपको कोई ऐसा रोग हो जाए जिसका इलाज आपकी आर्थिक क्षमता के अनुरूप नहीं है तो ऐसी परिस्थिति में आप जीवन और मृत्यु की पतली रेखा के बीच में खड़े हैं। क्राउडफंडिंग आपको उस परिस्थिति से बाहर निकालने में मदद कर सकता है। क्राउडफंडिंग के कैंपेन के माध्यम से आप अपनी आवश्यकता को उन लोगों तक पहुंचाते हैं जो बुरे समय में आपकी मदद कर सकते हैं।























