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टॉन्सिल कैंसर:
टॉन्सिल कैंसर ऑरोफेरिंजियल कैंसर या गले के कैंसर का एक प्रकार है। टॉन्सिल कैंसर की समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है। सामान्य भाषा में टॉन्सिल कैंसर को समझा जाए तो वह कैंसर जो टॉन्सिल में कोशिकाओं के असामान्य तरीके से बढ़ने पर होता है। कैंसर टॉन्सिल के मामलों में भारत के साथ दुनिया भर के देशों में बढ़ोतरी हो रही है। अन्य कैंसर के तरह टॉन्सिल कैंसर की पहचान भी यदि शुरूआती अवस्था में हो जाए तो आधुनिक उपचार विधियों की सहायता से बीमारी से बचा जा सकता है। संक्षेप में टॉन्सिल कैंसर के लक्षण क्या है या टॉन्सिल कैंसर की पहचान के लिए आपको इस रोग के बस कुछ लक्षणों को याद रखने की ज़रूरत है, जैसे गले में लगातार खराश रहना, निगलने में दिक्कत होना, अचानक से वजन घटना, आवाज़ में लंबे समय तक बदलाव रहना आदि। इस लेख के माध्यम से हमारा मुख्य उद्देश्य है आपको टॉन्सिल कैंसर की पहचान, लक्षण, कारण और उपचार विधि इत्यादि के संदर्भ में जानकारी प्रदान करना।
टॉन्सिल कैंसर के लक्षण क्या है:
अन्य कैंसर की तरह टॉन्सिल कैंसर के लक्षण भी यदि शुरूआती अवस्था ने पहचान में आ जाएँ तो समय पर चिकित्सक से संपर्क कर इसका निदान और उपचार किया जा सकता है। नीचे दिए हुए बिंदुओं के माध्यम से यहाँ टॉन्सिल कैंसर के लक्षण की किस प्रकार से पहचान की जाए, सरल भाषा में इसे समझाने का प्रयास किया गया है:
१) गले में खराश रहना: यदि आपके गले में लंबे समय से खराश है तो यह टॉन्सिल कैंसर के लक्षण भी हो सकते हैं। संदेह को दूर करने के लिए एक बार चिकित्सक से संपर्क अवश्य करें।
२) निगलने में कठिनाई होना: सामान्यतः हम गले की नली द्वारा भोजन आसानी से निगल लेते हैं लेकिन टॉन्सिल कैंसर में व्यक्ति को निगलने में तकलीफ़ होती है और गले में गाँठ का होना महसूस हो सकता है।
३) आवाज़ में बदलाव होना: यदि अचानक से आपकी आवाज़ में बदलाव हो और लम्बे समय तक रहे तो यह भी टॉन्सिल कैंसर के लक्षण में से एक लक्षण हो सकता है।
४) वजन घटना: यदि अचानक आपका वजन बहुत ही घट जाए और इसकी कोई वजह ना हो तो यह भी गले के कैंसर का लक्षण हो सकता है।
५) कान में गंभीर दर्द होना: कभी-कभी टॉन्सिल कैंसर में कान में भी गंभीर रूप से दर्द हो सकता है।
६ ) साँस से दुर्गन्ध आना: मौखिक स्वच्छता बनाए रखने के बाद भी यदि आपको अपने साँस में लगातार बदबू आती है तो इसे सामान्य रूप से ना लें, क्योंकि यह भी टॉन्सिल कैंसर के लक्षण में शामिल हो सकता है।
७) थूक या कफ़ में खून आना: यदि आपके थूक या कफ़ में लगातार खून आ रहा हो तो तत्काल चिकित्स्क से संपर्क करें।
८) लिम्फ़ नोड्स में सूजन रहना/सूजन लिम्फ नोड्स: गर्दन में बढ़ रहे सूजन या दर्दनाक लिम्फ नोड्स भी टॉन्सिल कैंसर से पीड़ित होने की तरफ़ इशारा है।
उपरोक्त लक्षणों में से यदि कोई भी लक्षण आप अपने शरीर में दो सप्ताह से अधिक तक महसूस करते हैं तो किसी एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें, क्योंकि समय पर टॉन्सिल कैंसर की पहचान से ही बीमारी से बचना संभव हो सकता है।
टॉन्सिल कैंसर के कारण:
टॉन्सिल कैंसर का अभी तक कोई उपयुक्त कारण नहीं पता चल पाया है लेकिन कई शोधों और अध्ययनों के आधार पर यह पता चला है कि टॉन्सिल कैंसर ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) के कारण अधिकतर लोगों में फैलता है। इस बीमारी के कुछ जोखिम कारक नीचे दिए हुए बिंदुओं के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है :
१) तम्बाकू और शराब का सेवन: तम्बाकू और शराब के सेवन से टॉन्सिल कैंसर होने का ख़तरा अत्यधिक बढ़ सकता है। टॉन्सिल कैंसर के यह दोनों ही प्रमुख जोखिम कारक हैं।
२) ह्यूमन पेपिलोमा वायरस: ह्यूमन पेपिलोमा वायरस एक ऐसा यौन संचारित वायरस है, जो इस तरह के कैंसर को फैलाने में विशेष भूमिका निभाता है।
३) बढ़ती उम्र और लिंग: बढ़ती उम्र के साथ टॉन्सिल कैंसर होने का ख़तरा अधिक बढ़ जाता है। महिलाओं की तुलना में यह कैंसर पुरुषों में अधिक पाया जाता है।
४) मौखिक स्वच्छ्ता नहीं रखना: यदि मौखिक स्वच्छ्ता नहीं रखा जाए तो टॉन्सिल कैंसर होने का ख़तरा बढ़ सकता है।
५) कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली: कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग, जैसे एचआईवी वायरस से संक्रमित या जिनका अंग प्रत्यारोपण हुआ है, उन्हें भी यह कैंसर अपनी चपेट में ले सकता है।
क्या टॉन्सिल कैंसर का इलाज संभव है
टॉन्सिल कैंसर का इलाज संभव है या नहीं, तो यह जानना आपके लिए आवश्यक है कि इसका इलाज तो संभव है लेकिन केवल तब, जब इसके लक्षण प्रारंभिक अवस्था में पकड़ में आ जाएँ। सामान्यतः प्रारंभिक चरण (चरण I और चरण II ) का टॉन्सिल कैंसर जो टॉन्सिल के बाहर नहीं फैला हो, उसका इलाज जीवित रहने की दर अधिकतम पाँच साल मानकर सफलतापूर्वक किया जा सकता है लेकिन बाद के चरण (चरण III और चरण IV) में जीवित रहने की दर बहुत ही कम होती है। इस बात का स्मरण रखना आवश्यक है कि, कैंसर के एक भी मरीज़ के लिए इस रोग का सामना करना आसान नहीं है, और जीवित रहने की दर भी केवल संख्याएँ है कोई निश्चित परिणाम नहीं।
टॉन्सिल कैंसर के लिए उपचार:
टॉन्सिल कैंसर के उपचार के विषय में चर्चा की जाए तो यह कैंसर के चरण और ट्यूमर के आकार पर ही निर्धारित किया जा सकता है। टॉन्सिल कैंसर के उपचार के लिए कुछ उपचार विधियों को नीचे दिए गए बिंदुओं के माध्यम से समझाने का प्रयास किया गया है:
१) सर्जरी: टॉन्सिल कैंसर के उपचार के लिए सर्जरी प्रथम सीढ़ी है, विशेष रूप से यह तरीका कैंसर के प्रारंभिक चरणों के लिए अपनाया जाता है। इसकी मदद से ट्यूमर और उसके आसपास के कोशिकाओं के समूह(ऊतक) को हटाया जाता है। इस उपचार विधि में ट्यूमर के आकार और वह किस भाग में उपस्थित है, इसके आधार पर सर्जरी के विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है। इन तकनीकों में मिनिमल इनवेसिव सर्जरी, टॉन्सिल्लेक्टोमी सर्जरी, ऑरोफैरिंजेक्टोमी सर्जरी, नेक डिसेक्शन इत्यादि शामिल हैं।
२) रेडिएशन थेरेपी: रेडिएशन थेरेपी जिसे विकिरण चिकित्सा भी कहा जाता है। इस उपचार विधि में कैंसर सेल्स को नष्ट करने करने के लिए उच्च ऊर्जा विकिरण का उपयोग किया जाता है। इस उपचार विधि का उपयोग टॉन्सिल कैंसर के प्रारंभिक चरण में प्राथमिक उपचार के रूप में या उन्नत (एडवांस्ड) चरणों में सर्जरी के साथ किया जाता है। लेट-स्टेज कैंसर में भी लक्षणों को कम करने के लिए इस विधि का उपयोग किया जा सकता है।
३) कीमोथेरेपी: कीमोथेरेपी में कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने के लिए दवाइयों का उपयोग किया जाता है। कीमोथेरेपी का उपयोग टॉन्सिल कैंसर के उन्नत(एडवांस्ड) चरणों में रेडिएशन थेरेपी के साथ संयोजन में किया जाता है। इस विधि का उपयोग सर्जरी से पहले (नियोएडजुवेंट कीमोथेरेपी) बड़े ट्यूमर को सिकोड़ने के लिए या सर्जरी के बाद (एडजुवेंट थेरेपी) बचे हुए कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
४) टार्गेटेड थेरेपी: यह एक नए प्रकार की कैंसर उपचार विधि है जिसमें कैंसर कोशिकाओं के विशेष हिस्सों को टार्गेट(लक्षित) कर उन्हें नष्ट करने के लिए उन पर दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के तौर पर एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर (ईजीएफआर) को टार्गेट कर, इन पर दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। एपिडर्मल ग्रोथ फैक्टर रिसेप्टर, टॉन्सिल कैंसर में कैंसर सेल्स के बढ़ने का विशेष कारण होता है।
५) इम्यूनोथेरपी: इम्यूनोथेरपी भी एक नए प्रकार की उपचार विधि है जिसमें कैंसर रोग से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इस विधि में कैंसर कोशिकाओं से प्रभावी ढंग से लड़ने के लिए दवाइयों का उपयोग कर प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत किया जाता है।
६) पुनर्वास(रिहैबिलिटेशन): पुनर्वास या रिहैबिलिटेशन एक ऐसी थेरेपी है जिसमें थेरेपिस्ट द्वारा रोगी को इलाज के बाद पूरी तरह से किसी ट्रॉमा से बाहर निकाला जाता है। इस थेरेपी में रोगी की मानसिक और शरीरिक सभी अवस्थाओं पर साथ में ध्यान दिया जाता है और उसे पुनः अपनी पहले वाली अवस्था में लाया जाता है। कैंसर के इलाज के बाद भी कई बार रोगियों को इस थेरेपी की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष:
टॉन्सिल कैंसर, अन्य कैंसर की तरह सामान्य नहीं है। यह एक गंभीर बीमारी है, जिसकी पहचान शुरूआती अवस्था में हो जाने से तत्काल चिकित्सक से सलाह लेकर इसका उपचार शुरू करना आवश्यक है। स्वस्थ जीवन शैली और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता ही प्रारम्भिक पहचान करने और जीवित रहने की दर में सुधार करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। इस बात का स्मरण रखें कि, तम्बाकू और शराब जैसे उत्पादों का सेवन करने से बचने, मौखिक स्वच्छ्ता रखने और एचपीवी वैक्सीन लगवाने से टॉन्सिल कैंसर को बहुत हद तक रोका जा सकता है। लक्षणों की नियमित और स्व-जाँच और चिकित्सक से तत्काल सलाह, प्रारंभिक पहचान और सफलतापूर्वक उपचार के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।
इस लेख के माध्यम से आपको टॉन्सिल कैंसर से संबंधित सामान्य जानकारियाँ प्रदान करने का प्रयास किया गया है। इसका उपयोग पेशेवर चिकित्स्कीय सलाह, निदान या उपचार के विकल्पों के रूप में ना करें। टॉन्सिल कैंसर के लक्षण महसूस करने पर केवल अपने चिकित्सक या किसी एक्सपर्ट से ही सलाह लें।























