चिकनगुनिया के लक्षण, कारण, इलाज और बचाव

संसार में अनेक प्रकार की वायरल बीमारियां हैं। कुछेक को छोड़कर अधिकतर संक्रामक रोग आम और प्रचलित हैं। उनमें से एक चिकनगुनिया है। मानसून अर्थात वर्षा ऋतु चिकनगुनिया के लिए अनुकूल मौसम है। पीने के पानी में एडीज प्रजाति के मादा मच्छर प्रजनन पश्चात अंडे देते हैं। इसलिए इंसानों की बस्ती के आस-पास ही चिकनगुनिया के मच्छर पाए जाते हैं। विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में चिकनगुनिया चिंता का विषय बना हुआ है। संक्रमित व्यक्ति को काटने के पश्चात ये मच्छर जब एक स्वस्थ व्यक्ति को काट ले तो स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में वायरस प्रवेश कर जाता है और फलस्वरूप उसे  चिकनगुनिया हो जाता है। चिकनगुनिया गंभीर बीमारी नहीं है लेकिन आज भी लोगों में इस संक्रामक रोग के प्रति जागरूकता और सतर्कता का अभाव देखा गया है। इसलिए चिकनगुनिया पर जागरूकता फैलाना जनहित के लिए एक अच्छा प्रयास है।

आज के इस लेख में चिकनगुनिया क्या होता है, चिकनगुनिया कैसे होता है, क्या चिकनगुनिया एक घातक बीमारी है, चिकनगुनिया के लक्षण, चिकनगुनिया बुखार के लक्षण, चिकनगुनिया का कारण, चिकनगुनिया का इलाज, चिकनगुनिया से बचाव और निष्कर्ष पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

चिकनगुनिया क्या होता है?

Symptoms Of Chikungunya In Hindi

चिकनगुनिया वायरस के कारण होने वाले संक्रामक रोग को चिकनगुनिया कहते हैं। इस बीमारी में रोगी बुखार से पीड़ित रहता है तथा उसके पूरे शरीर में चकत्ते हो जाते हैं। चेचक के चकत्ते का आकार और संरचना काबुली चने के समान होती है इसलिए इसको चिकपीस भी कहते हैं। इस संक्रामक रोग के वायरस का साइंटिफिक नाम वेरिसेला जोस्टर वायरस है। इसे हिंदी में चेचक या माता भी कहते हैं। इसका एक अन्य नाम चिकनपॉक्स भी है। भारत में चिकनगुनिया ‘छोटी माता’ के नाम से प्रचलित है।

चिकनगुनिया कैसे होता है?

वर्षा ऋतु के समय एडीज प्रजाति की संक्रमित मादा के काटने से चिकनगुनिया हो जाता है। संक्रमित व्यक्ति को काट लेने के पश्चात जब ये मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काट लेते हैं तो उस स्वस्थ व्यक्ति को चिकनगुनिया हो जाता है। ये मच्छर अमूमन दिन के समय ही काटते हैं। पीने के पानी में प्रजनन पश्चात ये मच्छर अंडे देते हैं इसलिए एडीज प्रजाति इंसानों की बस्ती के आस-पास ही पाई जाती है।

चिकनगुनिया कैसे फैलता है?

संक्रमित मादा मच्छर के माध्यम से मनुष्यों में चिकनगुनिया फैलता है। ये संक्रमित मादा मच्छर एडीज प्रजाति के होते हैं। इस प्रजाति के अंतर्गत एडीज एजिप्टी और एडीज एल्बोपिक्टस दोनों में से किसी एक के काटने पर हो सकता है। इस प्रजाति के मच्छर इंसानों की बस्ती के आस-पास ही प्रजनन करते हैं इसलिए इंसानों को चिकनगुनिया होने की संभावना बनी रहती है। चिकनगुनिया के संकेत मच्छर काटने के कम से कम एक दिन में दिखाई देते हैं। लक्षण दिखने के पश्चात चेचक का वायरस न्यूनतम तीन दिन और अधिकतम सात दिन मानव शरीर में रहता है।

चिकनगुनिया कितने दिन में ठीक होता है?

चिकनगुनिया अधिकतम 12 दिन में ठीक हो जाता है। चिकनपॉक्स या चेचक का वायरस मानव शरीर में कम से 5 दिन और अधिकतम 7 दिन रहता है। इसके लक्षण दिखने में कम से कम एक दिन लग जाते हैं। इसलिए इसके ठीक होने का समय 12 दिन के आस-पास माना जाता है।

डेंगू और चिकनगुनिया में क्या अंतर है?

डेंगू में चकत्ते चेहरे और कुछ अंगों तक सीमित रहते हैं जबकि चिकनगुनिया में चकत्ते चेहरे, हाथ, हथेली, पैर आदि जगह पर हो जाते हैं। चिकनगुनिया में मांसपेशियों और जोड़ों से संबंधित दर्द बहुत गंभीर होता है अपितु डेंगू में सामान्य दर्द हो सकता है। डेंगू कम से कम तीन सप्ताह और अधिकतम सात सप्ताह रहता है। चिकनगुनिया केवल बारह दिन तक रहता है। दरअसल डेंगू और चिकनगुनिया दोनों ही मानसून में होने वाले संक्रामक रोग है। ये दोनों एडीज प्रजाति के मादा मच्छर द्वारा काटने से होते हैं। इसलिए लक्षण में बहुत अधिक समानता होने के कारण, इन दोनों में अंतर कर पाना आसान नहीं होता। हालांकि डेंगू और चिकनगुनिया में समानताएं होने के बावजूद इन दोनों के लक्षण अलग-अलग हैं।

चिकनगुनिया के लक्षण

संक्रमित व्यक्ति को हाथ, हथेली, पैर, चेहरे आदि अंगों में काबुली चने के समान चकत्ते हो जाना चिकनगुनिया के लक्षण हैं। इसके अलावा अचानक से तेज बुखार आ जाता है और जोड़ों में गंभीर दर्द की भी शिकायत रहती है। ये  सामान्य लक्षण हैं जो प्रथम दृष्टया डेंगू के संकेत की तरह ही हैं। इसलिए डेंगू और चिकनगुनिया के लक्षण में अंतर कर पाना आसान नहीं होता। ऐसे में चेचक के लक्षण या संकेत की सही और संपूर्ण जानकारी होना आवश्यक हो जाता है।

आइए चिकनगुनिया के लक्षण को निम्न बिंदुओं के माध्यम से विस्तार पूर्वक समझने का प्रयास करें :

  • चकत्ते या चेचक के दाने : चिकनगुनिया संक्रमित व्यक्ति को चेहरे, हाथ, हथेली, पैर, आदि अंगों में लाल दाने हो जाते हैं। चेचक के दाने या लाल चकत्ते चिकनगुनिया के लक्षण में सबसे आम और प्रमुख लक्षण में से एक है। मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इन दानों को मैकुलोपापुलर रैश कहते हैं। हालांकि इनका प्रचलित नाम चेचक के दाने है। श्वेत लोगों में ये दाने गहरे लाल रंग के दिखाई पड़ते हैं। चकत्ते के साथ चेचक के मरीज को बार-बार खुजली की भी शिकायत रहती है। चेचक के दाने आकार और संरचना में काबुली चने के समान होते हैं। इसलिए चेचक की बीमारी को चिकपीस भी कहते हैं।
  • चकत्ते में सूजन और दर्द : चेचक के कारण संक्रमित व्यक्ति को चकत्ते हो जाते हैं। ये चकत्ते बार-बार खुजली को जन्म देते हैं। संरचना और आकार में ये चकत्ते काबुली चने के समान होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उसमें मवाद भरा होता है। मवाद से भरे ये गहरे लाल रंग के चकत्ते खुजली के अलावा सूजन और दर्द के कारक भी होते हैं।
  • अचानक से तेज बुखार आना : चेचक से संक्रमित व्यक्ति को अचानक से तेज बुखार आना चिकनगुनिया के लक्षण में सबसे आम और प्रमुख लक्षण है। इस बुखार की थर्मामीटर पर रीडिंग 102 डिग्री से लेकर 104 डिग्री फारेनहाइट तक हो सकती है। ये बुखार कई दिनों तक रह सकती है। इस बुखार या ज्वर के कारण संक्रमित व्यक्ति को थकान, उल्टी, मांसपेशियों और जोड़ों में असहनीय पीड़ा की समस्या का भी सामना करना पड़ सकता है।
  • कंपकंपी या ठंड लगना : वायरल बुखार के चलते शरीर का तापमान सामान्य की तुलना में बहुत गर्म हो जाता है। संक्रमित व्यक्ति के शरीर का बहुत अधिक तापमान वातावरण के सामान्य तापमान को झेल नहीं पाता और ठंड की अनुभूति होती है। फलस्वरूप संक्रमित व्यक्ति को कंपकंपी लगती है।
  • जोड़ों में गंभीर दर्द होना : चेचक तथा इसका बुखार जोड़ों में दर्द की समस्या का कारण बन जाता है। जोड़ों के इस दर्द को आर्थ्रेल्जिया भी कहते हैं। जोड़ों में दर्द चिकनगुनिया के लक्षण में सबसे आम और प्रमुख लक्षण है। इसके अलावा कलई, टखनों, हाथ और पैर की अंगुली, घुटने आदि में असहनीय पीड़ा होने लगती है जो संक्रमित व्यक्ति को एक सप्ताह तक परेशान कर सकता है।
  • मांसपेशियों में दर्द की समस्या : चेचक से संक्रमित व्यक्ति को मांसपेशियों में दर्द और जकड़न की भी समस्या का सामना करना पड़ता है। मांसपेशियों में दर्द चिकनगुनिया के लक्षण में सबसे आम और प्रमुख लक्षण है। मांसपेशियों में होने वाला दर्द गंभीर, असहनीय, पीड़ादायक अथवा कष्टदायक होता है। दर्द की शिकायत होने के चलते चेचक का मरीज हिलने-डुलने की स्थिति में नहीं रहता और दिनभर शिथिल पड़ा रहता है।
  • अनावश्यक थकान और कमजोरी : थकान और कमजोरी चिकनगुनिया के लक्षण में सबसे आम और प्रमुख लक्षण है। तेज बुखार, जोड़े और मासंपेशियों में दर्द की समस्या के चलते शरीर बीमारी से लड़ने में जुट जाता है। फलस्वरूप सामान्य स्वस्थ शरीर की तुलना में अधिक ऊर्जा की खपत होने लगती है इसलिए संक्रमित व्यक्ति को थकान और कमजोरी होने लगती है। यह सुस्ती का भी कारण बनती है।
  • बार-बार सिरदर्द की समस्या : चेचक संक्रमित व्यक्ति को सिरदर्द की भी शिकायत रहती है। अनावश्यक थकान, कमजोरी, सुस्ती और बुखार संक्रमित व्यक्ति में सिरदर्द की परेशानी को भी जन्म दे सकता है। हालांकि सिरदर्द होना चेचक का लक्षण नहीं है लेकिन चिकनगुनिया के सभी लक्षणों के साथ-साथ सिरदर्द की समस्या हो तो यह इस संक्रामक रोग का लक्षण माना जाता है।
  • मतली और उल्टी की शिकायत : संक्रामक रोग चेचक और उसके फलस्वरूप हुए वायरल बुखार के कारण मतली और उल्टी भी होने लगती है। उल्टी होना किसी भी रोग और विशेष रूप से संक्रामक रोग का सबसे आम लक्षण है।
  • भूख नहीं लगना : वायरल फीवर से जन्मे अन्य लक्षणों के कारण मरीज को भूख नहीं लगती। कमजोरी, थकान और उल्टी के चलते मरीज अल्प आहारी हो जाता है अर्थात उसकी आहार आवश्यकता से कम हो जाती है।
  • निर्जलीकरण : प्यास लगने पर पानी पीने के बावजूद मुंह सूख जाता है। शरीर में पानी की कमी हो जाती है। पानी की इसी कमी को निर्जलीकरण कहते हैं। चेचक के लक्षणों में निर्जलीकरण सबसे आम और प्रमुख लक्षण है।

इसके अलावा कुछ मरीजों में गुलाबी आँखों की भी समस्या देखने को मिली है। आँखों से बार-बार आंसू निकलना और दृष्टि संबंधित अस्थाई समस्या भी हो सकती है। नाक की नलिकाओं तथा मसूड़ों से रक्त का रिसाव भी हो सकता है। चक्कर आने की भी शिकायत मरीज को हो सकती है। हालांकि ये सभी ऐसे संकेत हैं जो असामान्य लक्षणों की सूची में सम्मिलित होते हैं।

चिकनगुनिया बुखार के लक्षण

वायरस के शरीर में प्रवेश करते ही संक्रमित व्यक्ति को वायरल फीवर हो जाता है। यह तेज बुखार अचानक से होता है। थर्मामीटर पर इस बुखार की रीडिंग 102 फारेनहाइट से लेकर 104 फारेनहाइट तक होती है। अचानक से होने वाले तेज बुखार के कारण ठंड और कंपकंपी लगती है। इसके अलावा जोड़ों और मांसपेशियों में गंभीर, दीर्घकालिक और असहनीय पीड़ा होने लगती है। ये चकत्ते इस वायरल बुखार का ही परिणाम है। श्वेत लोगों में चकत्ते गहरे लाल रंग के दिखाई पड़ते हैं। चेचक के मरीज को उल्टी की भी शिकायत हो सकती है। चिकनगुनिया बुखार के लक्षण मच्छर काटने के तीन दिन के भीतर ही दिखने लगते हैं। हालांकि चिकनगुनिया अधिकतम 12 दिन तक ही रहता है।

चिकनगुनिया का कारण

मच्छरों की एडीज प्रजाति के काटने के कारण चिकनगुनिया हो जाता है। एजिप्टी और एडीज एल्बोपिक्टस दोनों में से किसी एक के काटने पर चिकनगुनिया हो जाता है। चेचक के कारण या कारण को एजेंट्स के रूप में भी जाना जाता है। इन एजेंट्स के माध्यम से चिकनगुनिया वायरस का संचार होता है। संक्रमित व्यक्ति को काट लेने के पश्चात जब यह मच्छर स्वस्थ व्यक्ति को काट लेता है तो स्वस्थ शरीर में स्वतः चिकनगुनिया वायरस प्रवेश कर जाता है। इस प्रकार चिकनगुनिया फैलता है। एडीज प्रजाति के संक्रमित मादा मच्छर के लार के माध्यम से स्वस्थ शरीर में चिकनगुनिया वायरस प्रवेश करता है। लार से शरीर में घुसा यह वायरस रक्त प्रवाह की सहायता से शरीर की अन्य कोशिकाओं तक पहुँच कर उन्हें भी संक्रमित करता है। इसके अलावा संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क आने से भी संक्रमण फैल सकता है। चूंकि एडीज प्रजाति के मादा मच्छर जो इंसानों की बस्ती के आस-पास स्वच्छ पानी में पनपते हैं, इसलिए पानी से घिरे क्षेत्र भी चिकनगुनिया के प्रमुख कारणों में से एक हैं। पानी में पनपने के कारण वर्षा ऋतु वायरस के संचार हेतु अनुकूल मौसम है। इसलिए चेचक को मानसून की बीमारी भी कहते हैं।

चिकनगुनिया का इलाज

चिकनगुनिया एक ऐसा वायरल संक्रमण है जो शरीर में बारह दिन ही रहता है इसलिए चेचक बारह दिन में ठीक हो जाता है। इसके इलाज के लिए कोई विशेष उपचार की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि चेचक को हल्के में न लें और लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श करें। मरीज की त्वचा को ढंकने से वायरस फैल नहीं पाता। लोगों के सम्पर्क में आने से बचें और आराम करने के पश्चात चेचक स्वयं ठीक हो जाता है। नीम की पत्ती के बिछौने पर विश्राम करने से चिकनगुनिया ठीक हो जाता है।

चिकनगुनिया से बचाव

चेचक या चिकनगुनिया से बचाव आसानी से किया जा सकता है। अगर सही और पूर्ण जानकारी हो तो चेचक से बचाव किया जा सकता है। चेचक उन मच्छरों के कारण होता है जो पीने के पानी में पनपते हैं। इसलिए वर्षा ऋतु और पानी वाले स्थान चेचक के फलने-फूलने के लिए अनुकूल माने जाते हैं। इसलिए किसी भी स्थान में पानी न जमा होने दे। मौसम जैसे मानसून में विशेष ध्यान रखने से चिकनगुनिया से बचाव किया जा सकता है।

आइए चिकनगुनिया से बचाव को विधिवत जानें जो कि निम्नलिखित हैं :

  • स्वच्छता का पालन करें : अपने निवास स्थान में पानी न जमा होने दें क्योंकि एडीज प्रजाति के मादा मच्छर जिनके कारण चिकनगुनिया वायरस फैलता है, वे पीने के पानी तथा पानी से भरे क्षेत्र में प्रजनन पश्चात अंडे देते हैं। इसलिए अपने आस-पास पानी न जमा होने दे। स्वच्छता का पालन करने से चिकनगुनिया से बचाव हो सकता है।
  • नारियल पानी का सेवन : जितना हो सके नारियल पानी का सेवन करें। चेचक संक्रमित व्यक्ति को कम पानी पीने के कारण निर्जलीकरण हो जाता है। नारियल में मौजूद पोषक तत्व जैसे इलेक्ट्रोलाइट्स शरीर में निर्जलीकरण नहीं होने देते।
  • पपीते के पत्ते के रस का सेवन : चेचक में ब्लड प्लेटलेट्स की गिनती कम हो जाती है जिसे बढ़ाने में पापीती के पत्ते का रस बहुत असरकाकर होता है। इसे पीने से चेचक तुरंत ठीक हो जाता है और बीमारी से लड़ने की शक्ति भी संक्रमित व्यक्ति प्राप्त होती है।
  • हरी पत्तेदार सब्जी है समाधान : रक्त संबंधित रोग में, या ऐसी कोई भी बीमारी जिसमें आयरन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम आदि की कमी हो तो पालक, लौकी, करेला, आदि प्रकार की हरी सब्जी खाने से वह आपके रोग हर लेता है।
  • संक्रमित व्यक्ति से दूर रहें : चेचक संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से चिकनगुनिया वायरस आसानी से फैल सकता है। इसलिए संक्रमित व्यक्ति से उचित दूरी बना कर रखें। इसके अलावा संक्रमित व्यक्ति अपने चेचक के दाने को विश्राम करते समय भी ढक कर रखें ताकि वायरस आस-पास के वातावरण में न फैले।

निष्कर्ष

उपरोक्त लेख के माध्यम से हमने जाना कि चिकनगुनिया या चेचक एक संक्रामक रोग है। वर्षा ऋतु या पानी का स्थान इसके लिए अनुकूल माना जाता है। इसके लक्षण में लाल चकत्ते, तेज बुखार, जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, अनावश्यक थकान, कमजोरी, मतली और उल्टी सम्मिलित हैं। चेचक के दाने संरचना में काबुली चने के समान होते हैं इसलिए इस बीमारी को चिकपीस भी कहते हैं।

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