मोतियाबिंद: लक्षण, कारण और सर्जरी

उम्र की एक विशेष दहलीज पार कर लेने पर अर्थात वृद्धावस्था में एक विशेष प्रकार के नेत्र रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। सीनियर सिटीजन को होने वाले इस विशेष प्रकार के नेत्र रोग को मोतियाबिंद कहते हैं। मोतियाबिंद क्या है- इस प्रश्न का उत्तर सरल भाषा में समझा जाए तो इस रोग से पीड़ित व्यक्ति में देखने की क्षमता कम हो जाती है और फलस्वरूप उसकी दृष्टि धुंधली हो जाती है। आज के इस लेख में मोतियाबिंद क्या है, मोतियाबिंद कैसे होता है, मोतियाबिंद क्यों होता है, मोतियाबिंद के प्रकार, मोतियाबिंद के लक्षण, मोतियाबिंद होने के कारण, मोतियाबिंद ऑपरेशन कैसे होता है और निष्कर्ष पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है।

मोतियाबिंद क्या है? (Cataract In Hindi)

Cataract In Hindi

ये एक ऐसी अवस्था है जिसमें आँख का लेंस (किसी कारणवश) टूट जाता है तो आँखों के आगे स्थाई रूप से धुंधलापन छा जाता है। मेडिकल टर्मिनोलॉजी में मोतियाबिंद को कैटरैक्ट कहते हैं। लेंस में धुंधलापन के एक नहीं अनेक कारण हैं। किसी व्यक्ति को कैटरैक्ट हो जाने पर दृष्टि धुंधली हो जाने के अलावा पूरी दुनिया पीले रंग की भी दिखने लगती है। इसके अतिरिक्त मरीज को एक वस्तु की दोहरी छवि भी दिखने लगती है।

मोतियाबिंद कैसे होता है?

हमारी आँख में एक लेंस होता है जो प्रोटीन से बना होता है। लेंस की सहायता से हमारी आँख बाहर से आने वाली प्रकाश की किरणों को मोड़ देती हैं ताकि इस लेंस के पीछे बने पर्दे पर स्पष्ट छवि बन सके। प्रोटीन क्षतिग्रस्त हो जाने से लेंस स्थाई रूप से धुंधला हो जाता है। फलस्वरूप व्यक्ति की दृष्टि भी धुंधली हो जाती है। लेंस के धुंधले होने के बहुत सारे कारण है।

मोतियाबिंद के प्रकार

आइए जानें मोतियाबिंद के प्रकार जो कि निम्नलिखित हैं :

  • न्यूक्लियर कैटरैक्ट : इस प्रकार के कैटरैक्ट में लेंस का रंग भूरा या पीला पड़ जाता है। रंगों में अंतर कर पाना कठिन होता है। दूर की दृष्टि धुंधली होती है। हालांकि इसके प्रभाव के चलते कुछ समय के लिए पढ़ने वाले छोटे अक्षर भी साफ दिखाई देते हैं।
  • कोर्टिकल कैटरैक्ट : लेंस की बाहरी परत जिसे कोर्टेक्स कहते हैं, उसमें सफेद धब्बे हो जाते हैं। धीरे-धीरे ये धब्बे आंखों के बीच में आ जाते हैं और दृष्टि धुंधली हो जाती है।
  • पोस्टीरियर सबकैप्सुलेर कैटरैक्ट : लेंस के पिछले भाग में काला धब्बा बन जाते हैं जो आँखों में आने वाले प्रकाश का मार्ग बाधित कर देता है। इस रोग के चलते पढ़ने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इस रोग के कारण पर्याप्त प्रकाश होने पर भी पढ़ने-लिखने और देखने में कठिनाई होती है।
  • कंजेनिटल कैटरैक्ट : ये जन्मजात होता है। अनुवांशिक कारणों से यह माता-पिता द्वारा बच्चों में आ जाता है। अगर परिवार के किसी सदस्य को मोतियाबिंद हुआ है या था तो इसमें कोई संदेह नहीं कि आने वाली पीढ़ी को भी ये बीमारी हो जाती है।

मोतियाबिंद के लक्षण

लेंस के प्रोटीन 40 वर्ष की आयु पर क्षतिग्रस्त होना प्रारंभ हो जाते हैं लेकिन इसके लक्षण 60 या उसके बाद की उम्र में दिखाई देते हैं। हालांकि वर्तमान समय में प्रदूषित वातावरण, स्वास्थ्य की नवीन समस्याएं और आधुनिक जीवनशैली के चलते 50 वर्ष की आयु वर्ग इस बीमारी से अछूती नहीं है।

आइए जानें मोतियाबिंद के लक्षण जो की निम्नलिखित हैं :

  • धुंधली दृष्टि : रोगी को सब धुंधला दिखने लगता है। ऐसा लगता है कि आँखों के सामने कोहरा या धुंध छा गया है। वास्तव में लेंस के प्रोटीन जब क्षतिग्रस्त हो जाते हैं तो आपस में चिपक जाते हैं और धुंधलापन छा जाता है।
  • पीतांबरी दृष्टि : वस्तु का वास्तविक रंग चाहे जो भी हो लेकिन मोतियाबिंद में बनने वाली छवि केवल पीले रंग की दिखाई देती है। तड़कते-भड़कते रंग जैसे लाल, हरा आदि भी पीले ही दिखाई देते हैं। आँखों में बसे लेंस का काम बाहरी प्रकाश को मोड़ कर छवि का निर्माण करना होता है लेकिन लेंस के धुंधलेपन के चलते बहुत कम प्रकाश रेटिना(पर्दे) पर गिरता है जिस कारण वस्तु की असली छवि के स्थान पर पीले रंग की छवि बन जाती है।
  • प्रकाश से विचलित होना : आँखों का धुंधला लेंस कम प्रकाश का आदि हो जाता है इसलिए वह सूर्य का तीव्र प्रकाश, गाडी की हेडलाइट, स्ट्रीट लाइट आदि सभी प्रकार के प्रकाश को झेलने की क्षमता खो देता है। दरअसल प्रोटीन क्षतिग्रस्त लेंस बहुत कम प्रकाश को आँखों के भीतर जाने देता है इसलिए आँखें अचानक से आए अत्यधिक प्रकाश को झेलने की शक्ति खो देती हैं।
  • नेत्र रोग की शिकायत : जिस व्यक्ति को मोतियाबिंद हो जाता है उसे नेत्र रोग की भी समस्या से जूझना पड़ता है। नेत्र रोग जैसे दूर की दृष्टि, पास की दृष्टि आदि-आदि। दरअसल धुंधले लेंस को ठीक नहीं किया जा सकता इसलिए सर्जरी के माध्यम से पुराने के स्थान पर नया लेंस लगाया जाता है।
  • चश्मे का नंबर बढ़ जाना : अगर मोतियाबिंद होने से पूर्व व्यक्ति को दृष्टि की समस्या रही है तो ये बीमारी होने के पश्चात नेत्र रोग की समस्या और गंभीर हो जाती है। अर्थात अगर बीमारी होने से पूर्व उस व्यक्ति को चश्मा लगता था तो संभव है कि बीमारी होने के पश्चात उसके चश्मे का नंबर बढ़ जाएगा। यह नंबर साल दर साल बढ़ता ही रहेगा जब तक कि ऑपरेशन के माध्यम से धुंधले लेंस के स्थान पर नया लेंस न लगा दिया जाए।
  • पढ़ने-लिखने में कठिनाई : अगर किसी व्यक्ति को मोतियाबिंद हो जाए तो उसे पढ़ने-लिखने के लिए अतिरिक्त प्रकाश की आवयश्कता होती है। दरअसल इस बीमारी के चलते आँखों का लेंस धुंधला हो जाता है और फलस्वरूप बहुत कम प्रकाश ही भीतर आ पाता है। इसलिए व्यक्ति को पढ़ने-लिखने के लिए अलग से प्रकाश की व्यवस्था करनी होती है।
  • रात में दिखाई नहीं देना : चूंकि कम प्रकाश आने के चलते व्यक्ति को दिन में देखने में कठिनाई होती है इसलिए जब सूरज ढल जाता है तथा रात का घना अंधेरा छा जाता है तो कम प्रकाश की व्यवस्था और आँखों में मोतियाबिंद की वजह से दिन में ही कम दिखाई देता है तो स्वाभाविक है कि रात  में प्रकाश की कमी से कुछ भी साफ-साफ दिखाई नहीं देता।
  • दोहरी छवि का भ्रम : मोतियाबिंद में व्यक्ति को किसी एक वस्तु की वास्तविक छवि दिखने के स्थान पर दोहरी छवि दिखने लगती है। अर्थात अगर उसके सामने कोई एक व्यक्ति खड़ा है तो उसे उस व्यक्ति के दो चेहरे, दो आँख, दो कान आदि दिखाई देने लगते हैं। हालांकि इन दो छवियों में अंतर कर पाना इतना भी कठिन नहीं होता क्योंकि ये दोहरी छवि आपस में चिपकी हुई होती हैं।

मोतियाबिंद होने के कारण

रेटिना(पर्दे) पर बहुत कम प्रकाश गिरने से आंखों द्वारा देखे जाने वाली वस्तुओं की स्पष्ट छवि नहीं बना पाती इसलिए मोतियाबिंद हो जाता है। उम्र के बढ़ते क्रम में आँखों के लेंस में जो प्रोटीन होते हैं, वे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। ये क्षतिग्रस्त प्रोटीन आपस में चिपक जाते हैं और लेंस धुंधला हो जाता है। इस धुंधले लेंस के कारण दृष्टि निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाली किरणों की मात्रा बहुत कम हो जाती है। जब पर्याप्त प्रकाश नहीं होगा तो आँखों में बनने वाली छवि भी खराब ही होगी। लेकिन इस बीमारी के एक नहीं अनेक कारण हैं जिनके बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। जानकारी मिलने से जागरूकता का प्रयास सफल होता है।

आइए जानें मोतियाबिंद होने के कारण जो कि निम्नलिखित हैं :

  • वृद्धावस्था के कारण : उम्र के बढ़ते क्रम में व्यक्ति की आँखों के लेंस बहुत कम लचीले हो जाते हैं। साथ ही इसकी चौड़ाई भी कम हो जाती है। फलस्वरूप साफ और सटीक छवि निर्माण की विशेषता का लोप हो जाता है। ऐसी परिस्थिति में लेंस में जो प्रोटीन होता है वह धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होने लगता है और साठ वर्ष की आयु या उसके बाद पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाता है। ये क्षतिग्रस्त प्रोटीन आपस में चिपक जाते हैं और आँखों का लेंस तथा दृष्टि धुंधली हो जाती है।
  • आपका जेंडर : मेनोपॉज होने के पश्चात महिलाओं के हार्मोन में अचानक से परिवर्तन लक्षित होते हैं जिसके चलते मोतियाबिंद होने की संभावना बनी रहती है। स्त्री या पुरुष दोनों इस बीमारी से अछूते नहीं है लेकिन महिलाओं में इस बीमारी के होने की संभावना पुरुषों की तुलना में कई गुना अधिक है। अमेरिका की नेत्र संबंधी बीमारियों पर शोध करने वाली संस्था ‘अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी’ के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं को नेत्र रोग होने के आसार अधिक रहते हैं।
  • मधुमेह के कारण : जब कोई व्यक्ति मधुमेह या डायबिटीज का रोगी हो तो उसे शनैः-शनैः (धीमे-धीमे) मोतियाबिंद होने लगता है। मधुमेह की बीमारी के चलते शरीर में ब्लड शुगर या ब्लड ग्लूकोज की मात्रा में बहुत अधिक वृद्धि हो जाती है। ब्लड शुगर की इस बढ़ी हुई मात्रा के कारण आँखों के लेंस की बनावट में धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगता है और अंततः लेंस का प्रोटीन क्षतिग्रस्त हो जाता है।
  • हाई ब्लड प्रेशर के कारण : हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर के कारण लेंस में जो प्रोटीन है, उसकी संरचना में परिवर्तन होने लगता है और आगे चलकर प्रोटीन को पूर्णतः क्षतिग्रस्त कर देता है। प्रोटीन के क्षतिग्रस्त होने के पश्चात व्यक्ति को मोतियाबिंद हो जाता है।
  • मोटापे के कारण : जो लोग मोटापे की समस्या से जूझ रहे हैं उनके शरीर में सी-रिएक्टिव प्रोटीन और फाइब्रोजेन की मात्रा बहुत बढ़ जाती है। साथ ही ब्लड शुगर और डायबिटीज की शिकायत मोटापे में होती ही है। मोटापा तथा इससे जुड़े इन सभी समस्याओं को मोतियाबिंद का कारण माना जाता है। हालांकि इन तथ्यों की पुष्टि और उसके पीछे का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
  • चोट या दुर्घटना के कारण : अगर पूर्व में कभी आँखों में कोई चोट लगी हो या किसी दुर्घटना के चलते व्यक्ति को आगे चलकर मोतियाबिंद की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। आँखों को पहुंचे इस नुकसान के कारण उसकी वास्तविक संरचना कुरूप हो जाती है जो समय के साथ स्वतः सुधार नहीं कर पाती और अंततः मोतियाबिंद हो जाता है।
  • लंबे समय तक धूप में रहने के कारण : प्रातःकाल लाल दिखने वाले सूरज की किरणों के अलावा अगर कोई व्यक्ति लंबे समय तक धूप में रहे तो उससे निकलने वाली पराबैंगनी किरणें आंखों के लेंस को पीतांबरी रंग का कर देती हैं जो कि सबसे प्रमुख लक्षण है।
  • मोतियाबिंद का पारिवारिक इतिहास : अगर परिवार के किसी सदस्य को मोतियाबिंद हुआ है या था तो इसमें कोई संदेह नहीं कि आने वाली पीढ़ी को भी ये बीमारी हो सकती है। परिवार के एक सदस्य को ये बीमारी होने पर अन्य सभी सदस्यों में अनुवांशिक कारणों के चलते ये रोग फैल जाता है।
  • धूम्रपान के कारण : अगर किसी व्यक्ति को सिगरेट पीने की बुरी आदत है तो ये आगे चलकर मोतियाबिंद का कारण बन सकती है। सिगरेट पीने से आँखों में फ्री रेडिकल्स की संख्या में वृद्धि हो जाती है। ये फ्री रेडिकल्स लेंस की लिपिड और प्रोटीन को क्षतिग्रस्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रोटीन क्षतिग्रस्त की प्रक्रिया में फ्री रेडिकल्स द्वारा ऑक्सीडेशन और प्रीऑक्सीडेशन का मार्ग प्रशस्त किया जाता है और अंततः आंखों के लेंस में बसे प्रोटीन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
  • शराब पीने के कारण : मदिरापान या शराब पीने के कारण कैटरैक्ट की शिकायत हो सकती है। दरअसल शराब पीने से लिवर में साइटोक्रोम नामक एंजाइम बनने लगता है जो कैटरैक्ट को जन्म देने वाला एजेंट(कारक) माना जाता है।

मोतियाबिंद ऑपरेशन कैसे होता है?

मेडिकल साइंस के विकास और समय के बढ़ते क्रम में मोतियाबिंद का इलाज खोज लिया गया है। इसके इलाज की सबसे अच्छी विशेषता ये है कि बहुत कम समय में और आसानी से इसका इलाज किया जा सकता है। अच्छी बात ये है कि ऑपरेशन के पश्चात मरीज को तुरंत डिस्चार्ज कर दिया जाता है। हालांकि इसका ट्रीटमेंट सामान्य सामान्य रूप से सभी के लिए एक जैसा नहीं होता। इसके ऑपरेशन या सर्जरी के अनेक प्रकार हैं और कौन सी पद्धति मरीज के लिए उपयुक्त होगी ये मरीज की मेडिकल स्थिति, बीमारी की गंभीरता तथा अन्य बातों पर निर्भर करती है।

आइए जानें कि मोतियाबिंद का ऑपरेशन कैसे होता है :

  • नॉर्मल सर्जिकल मेथड : इस प्रक्रिया के अंतर्गत सर्जरी के माध्यम से मरीज के खराब लेंस के स्थान पर कृत्रिम लेंस(इंट्रा ऑक्युलर लेंस) लगा दिया जाता है। एनेस्थीसिया देने के पश्चात मरीज की आँखें सुन्न और खुली रह जाती हैं जिससे सर्जरी करना बहुत आसान हो जाता है। मरीज तुरंत डिस्चार्ज भी हो जाता है लेकिन इस ऑपरेशन से दृष्टि ठीक नहीं होती। सर्जरी के बाद भी मरीज को चश्मा लगाना पड़ता है।
  • एक्स्ट्राकैप्सुलेर कैटरैक्ट एक्सट्रैक्शन : छोटे आकार की खोखली नली के द्वारा पुराने खराब लेंस को निकालने के पश्चात अल्ट्रासाउंड की सहायता से कृत्रिम लेंस को लगा दिया जाता है। इस सर्जरी का एक अन्य नाम फैकोइमलसिफिकेशन भी है।
  • रेगुलर फैको कैटरैक्ट सर्जरी : आकार में मुड़ी हुई सुई की तरह दिखने वाली ‘फोरसेप्स’ की सहायता से इस सर्जरी की प्रक्रिया को पूरा किया जाता है। वैक्यूम के द्वारा लेंस निकालने के पश्चात आँखों में कृत्रिम लेंस लगाया जाता है।
  • रोबोटिक कैटरैक्ट सर्जरी : ऑपरेशन की इस प्रक्रिया में केवल लेजर बीम का प्रयोग किया जाता है ताकि मरीज को दर्द भी न हो और सर्जरी में खून भी न बहे। सर्जरी में आने वाली समस्याओं हेतु आधुनिक निवारण के अंतर्गत रोबोट की सहायता से मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया जाता है। ये मेडिकल साइंस की सबसे नई तकनीक है जिसमें नवाचार के माध्यम से किया गया सबसे अच्छा किन्तु सबसे महंगा इलाज है।

निष्कर्ष

कैटरैक्ट सबसे आम और प्रचलित बीमारियों में से एक है। इसके लक्षण 40 वर्ष की आयु से निर्मित होने लगते हैं लेकिन बाहर से दिखाई नहीं देते। साठ वर्ष या उसके बाद ही लक्षण स्पष्ट रूप से दिखने लगते हैं। हालांकि प्रदूषित वातावरण, स्वास्थ्य की नई समस्याएं और आधुनिक जीवनशैली के चलते 50 वर्ष की आयु वर्ग इस बीमारी से अछूती नहीं है।। कैटरैक्ट की सही और सटीक जानकारी होना अनिवार्य है क्योंकि यह जागरूकता की ओर बढ़ने तथा सफल होने वाला एक बहुत ही आसान कदम है।

अगर धन की कमी के चलते मोतियाबिंद का इलाज नहीं हो पा रहा है तो निराश होने की आवश्यकता नहीं है। क्राउडफंडिंग आपको सर्जरी करवाने में मदद कर सकता है। क्राउडफंडिंग के कैंपेन के माध्यम से आप अपनी आवश्यकता को उन लोगों तक पहुंचाते हैं जो बुरे समय में आपकी मदद कर सकते हैं।

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