कैसे पहचाने मुँह का कैंसर के लक्षण?

अगर राह चलते किसी साधारण मनुष्य से यह प्रश्न पूछ लिया जाए की दुनिया की सबसे घातक बीमारी कौन सी है तो उसका जवाब कैंसर ही होगा। एक कहावत भी संसार में बहुत प्रचलित है कि कोई भी बीमारी हो जाए लेकिन भगवान किसी को कैंसर ना दे। जीवन और मृत्यु के बीच लटकती दो धारी तलवार ही कैंसर कहलाती है। कैंसर के अनेक प्रकार हैं लेकिन आज इस लेख में हम बात करने वाले हैं मुँह के कैंसर के बारे में। मुँह का कैंसर या ओरल कैंसर का संसार का सबसे आम कर्क रोग किन्तु सबसे घातक प्रकार है।

भारत में सर्वाधिक देखे गए कैंसर में मुँह का कैंसर दूसरे स्थान पर है। कुल एक लाख के आस-पास के ओरल कैंसर के नए मामले को दर्ज किया है। फेफड़ों का कैंसर सर्वाधिक मामलों के साथ पहले स्थान पर बना हुआ है। अर्थात ओरल कैंसर के विरुद्ध कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।

इस लेख में मुँह का कैंसर क्या होता है, मुँह का कैंसर के प्रकार, ओरल कैंसर के लक्षण, मुँह का कैंसर के कारण, मुँह का कैंसर का सर्वाइवल रेट, ओरल कैंसर का इलाज, ओरल कैंसर की रोकथाम और निष्कर्ष को आम जन की भाषा में सारगर्भित करने वाले हैं।

और पढ़ें: भारत में मौखिक कैंसर के इलाज की लागत

मुँह का कैंसर क्या होता है? (What Is Oral cancer In Hindi)

Oral Cancer Stages In Hindi

मुँह का कैंसर अपने नाम के अनुरूप मुँह के भीतर किसी भी स्थान विशेष में कर्क रोग के कोशिकाओं की वृद्धि के कारण उसके ऊतकों का निवास स्थान बन जाना ही ओरल कैंसर अथवा कर्क रोग है। इन ऊतकों का अंतिम स्वरूप गांठ या ट्यूमर में रूपायित होना है। ओष्ठ, मसूड़े, जीभ, गाल की भीतरी सतह, जिभ्रा की ऊपरी तल, जिभ्रा की ऊपरी सतह और टॉन्सिल अथवा गर्दन में होने वाली गांठ ही मुँह के कैंसर के रूप में जानी जाती है। सही समय पर यथासंभव इलाज न हो पाने के कारण यह कैंसर शरीर के अन्य अंगों में भी अपना साम्राज्य स्थापित कर सकता है।

विश्व के अधिकांश क्षेत्रों में तथा मेडिकल साइंस के टर्मिनोलोजी (शब्दकोश) में ओरल कैंसर और ओरल कैंसर शब्द का प्रयोग कम होता है। इन शब्दों के स्थान पर कैंसर ऑफ हेड एंड टॉन्सिल अर्थात कंठ और सर का कैंसर शब्द का प्रयोग किया जाता है।

अन्य किसी भी कर्क रोग की तरह ओरल कैंसर का इलाज संभव है। बशर्ते यह रोग अपनी प्रारंभिक अवस्था या प्रारंभिक चरण में हो। अगर यह अंतिम चरण तक पहुंच चुका हो तो इलाज और उसके तत्पश्चात बचने की संभावना कम हो जाती है।

मुँह का कैंसर के प्रकार (Oral Cancer Stages In Hindi)

किसी भी कर्क रोग की भांति ओरल कैंसर प्रभावित क्षेत्र मेंकितना विकसित हो चुका है या मुँह में कैंसर कितना उन्नत है या मरीज के मुँह में कैंसर कितना फ़ैल चुका इसका पता लगाने के लिए कैंसर विशेषज्ञ मुँह के कर्क रोग को विभिन्न चरणों में वर्गीकृत करते हैं। मुँह का कैंसर के प्रकार के पता लगने से ओरल कैंसर कैंसर का इलाज की रूपरेखा को तैयार करता है। यह चिकित्सकों को बीमारी की गंभीरता और उपचार की तैयारी से अवगत कराता है। चरणों का वर्गीकरण डॉक्टरों के लिए बीमारी की वृहत्तर जानकारी तथा उनके इलाज की संभावना का स्पष्ट चित्र उकेरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इस लेख के पहले भाग में उल्लेख किया गया है कि ओरल कैंसर का इलाज तभी संभव है जब वह अपने प्रारंभिक चरण में हो। अंतिम चरण में यह अपने सबसे घातक रूप को प्राप्त कर लेता है। चरण के बढ़ते कर्म में यह और भी घातक होता चला जाता है। ऐसी परिस्थिति में ओरल कैंसर शरीर के अन्य अंगों में तो विस्तार करता ही है अपितु वह अनेक बीमारियों को भी जन्म देता है। मुँह के कर्क रोग की अनियंत्रित कोशिकाओं की वृद्धि शरीर को अनेक बीमारियों का घर बना देता है।

आइए, मुँह का कैंसर के प्रकार पर विधिवत चर्चा करें :

  • शून्य चरण : मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इसे स्टेज ज़ीरो माउथ कैंसर या कार्सिनोमा इन सीटू कहते हैं। ओरल कैंसर का शुरूआती चरण है। इस स्टेज में ओंठ के ऊपरी भाग या मसूड़े में निर्मित कैंसर की नवीन कोशिकाएं के भविष्य में कैंसर ऊतक बनने की संभावना बनी रहती है। इस स्टेज में नाक, कान और गला विशेषज्ञ या फिर दन्त रोग विशेषज्ञ मेडिकल उपचार के माध्यम से कैंसर को उसकी प्रारंभिक अवस्था में मारने के लिए सक्षम होते हैं।
  • प्रथम चरण : मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इसे स्टेज वन (Stage 1) या टी वन (T1) कहते हैं। इस चरण में कैंसर अपने प्रारंभिक अवस्था में किन्तु अब कैंसर प्रभावित स्थान विशेष में ट्यूमर का निर्माण हो चुका है। गांठ का आकार अधिकतम दो सेंटीमीटर होता है।
  • द्वितीय चरण : मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इसे स्टेज टू (Stage 2) या टी टू (T2) कहते हैं। प्रथम चरण और द्वितीय चरण में केवल एक समानता है कि ट्यूमर लिम्फ नोड्स में प्रवेश नहीं कर पाता। इसका आकार न्यूनतम दो सेंटीमीटर और अधिकतम चार सेंटीमीटर होता है।
  • तृतीय चरण : मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इसे स्टेज थ्री (Stage 3) या टी थ्री (T3) कहते हैं। इस स्टेज की कैंसर मरीज के गरदन की लिम्फ नोड्स में प्रवेश कर चुकी है। आकार में यह न्यूनतम चार सेंटीमीटर की होती है। यह प्रारम्भिक श्रेणी में सम्मिलित नहीं होती किन्तु इस स्टेज में मरीज की हालत को गंभीर मान लेना चाहिए।
  • चतुर्थ चरण : सामान्य भाषा में इसे अंतिम चरण भी कहते हैं लेकिन मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इसे स्टेज फाइव (Stage 5) या टी फाइव (T5) कहते हैं। यह ओरल कैंसर की सबसे उन्नत स्टेज है। ट्यूमर अर्थात गांठ किसी भी आकार का हो सकता है। इस स्टेज में कैंसर जबड़े या मसूड़े में फ़ैल जाता है। साथ ही गर्दन की किसी एक या सभी लिम्फ में गांठ की अनियंत्रित वृद्धि देखने को मिलती है। मुँह और गर्दन के अतिरिक्त यह ट्यूमर शरीर के अन्य अंगों में भी विस्तार कर लेता है।

आइए, इस लेख के अगले भाग में मुँह का कैंसर के लक्षण पर विस्तार से चर्चा करें।

मुँह का कैंसर के लक्षण (Oral Cancer Symptoms In Hindi)

प्रारम्भिक स्टेज में मुँह का कैंसर का लक्षण पहचान पाना असंभव होता है। ऐसे में जब कोई मरीज डॉक्टर के पास आता है तो उसमें कैंसर का चरण सबसे घातक स्तर पर हो इसकी संभावना सबसे अधिक होती है। तृतीय चरण और चतुर्थ चरण के कैंसर इलाज होने के तत्पश्चात मरीज के शरीर में पुनः निर्मित हो सकते हैं।

सकल संसार में होने वाले सभी ओरल कैंसर के मामले में पुरुष मरीजों की संख्या सर्वाधिक है। वैसे तो वृद्धजनों को यह समस्या होना आम बात है लेकिन हाल में युवाओं में भी ओरल कैंसर के मामले में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है। कम उम्र के पुरुषों को ओरल कैंसर होना जनसंख्या के लिंगानुपात के संदर्भ में एक खतरे की घंटी के समान है। अगर जागरूकता और सतर्कता हो तो मुँह का कैंसर के लक्षण की पहचान प्रारम्भिक स्तर पर ही आसानी से की जा सकती है।

चलिए विधिवत रूप से मुँह का कैंसर के लक्षण की वृहत्तर चर्चा करें:

  • मुँह में घाव : गर्दन या मुँह के किसी भी भाग में एक ऐसा घाव होना जिससे रक्त का रिसाव आसानी से होने लगता है। अगर यह घाव और रक्त का रिसाव दो सप्ताह से अधिक समय बीत जाने पर भी ठीक ना हो तो यह ओरल कैंसर के लक्षण है।
  • मुँह सुन्न हो जाना : अगर बिना किसी कारण के आपका मुँह या उसका कोई भाग (गर्दन, तालु आदि) में सूजन हो यह भी प्रमुख लक्षण में सूचीबद्ध होता है।
  • खाना खाने में कठिनाई : अगर आपको खाना चबाने या निगलने अथवा चबाने और निगलने में कठिनाई हो रही है तो यह निश्चित ही मुँह का कैंसर के लक्षण है। होठ या मुँह के भीतर का ट्यूमर खाना चबाने के अति आवश्यक कार्य में बाधा पैदा करता है। गर्दन में विकसित हो चुकी ट्यूमर खाने को निगलने से रोकने का काम कराती है।
  • बदबूदार सांस : अगर ओरल कैंसर के लक्षण दिखने के क्रम में श्वास में दुर्गन्ध भी लक्षित हो तो उसे हॉलीटोसिस कहते हैं। मरीज के मुँह से लगातार बदबूदार सांस आती है। इस लक्षण के अतिरिक्त मुँह का सूखना भी सम्मिलित हो सकता है।
  • कान में दर्द : मेडिकल टर्मिनोलॉजी में इसे ओटाल्जिया भी कहते हैं। जब ओरल कैंसर का ट्यूमर अपने साम्राज्य का विस्तार करते हुए कान में भी स्थापित हो जाता है तो ऐसे में कान में दर्द होना शुरू हो जाता है।
  • अचानक से वजन घटना : अमूमन मरीज में अप्रत्याशित रूप से शरीर का वजन घटना भी प्रमुख संकेत के रूप में देखा गया है। शरीर के कुल वजन का लगभग दस प्रतिशत या उससे अधिक वजन काम हो सकता है।

इन सामान्य लक्षणों के अतिरिक्त मरीजों के मुँह में धब्बे भी परिलक्षित होते हैं। हालांकि यह धब्बे एक समान नहीं होते इसलिए इन धब्बों को विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है जो कि इस प्रकार है :

  • ल्यूकोप्लाकिया : जब मुँह में श्वेत रंग के धब्बे देखने को मिले तो इस अवस्था को ल्यूकोप्लाकिया कहते हैं। ये ग्रे रंग के धब्बे भी हो सकते हैं। ऐसी अवस्था में ओरल होने की संभावना अधिक होती है।
  • एरिथ्रोप्लाकिया : जब मुँह में सफ़ेद और लाल रंग का विशिष्ट धब्बा दृष्टिगत हो लेकिन धब्बों के रंग में लाल रंग की अधिकता हो तो उसे एरिथ्रोप्लाकिया कहते हैं। इन धब्बों को कुरेदने से रक्त का रिसाव हो सकता है। यह कैंसर युक्त या कैंसर मुक्त दोनों में से कोई भी हो सकते हैं। धूम्रपान के कारण ऐसी अवस्था का मुँह में उत्पन्न होना प्रमुख कारण है।
  • इरिथ्रोल्यूकोप्लाकिया : जब मुँह में सफ़ेद और लाल रंग का विशिष्ट धब्बा दृष्टिगत हो तो उसे इरिथ्रोल्यूकोप्लाकिया कहते हैं।

मुँह का कैंसर के लक्षण को आत्मसात कर लेने के तत्पश्चात अब समय आ गया है कि ओरल कैंसर के कारण को जान लिया जाए।

मुँह का कैंसर के कारण (Oral Cancer Causes In Hindi)

लक्षण पहचान लेने से इसके कारणों को भी पता लगाया जा सकता है। इसलिए लेख के इस भाग में मुँह का कैंसर के कारण की चर्चा होगी :

  • तंबाकू और गुटखा सेवन : तंबाकू से धूम्रपान के अतिरिक्त इसको खाने से भी ओरल कैंसर हो जाता है। तंबाकू में उपस्थित निकोटीन कैंसर ऊतकों को जन्म देता है। हाल ही के समय में युवाओं में गुटखा सेवन के बढ़ते चलन के कारण कम उम्र के लोगों में भी ओरल कैंसर के संकेत देखे गए हैं। तंबाकू और गुटखा का सेवन ओरल कैंसर के कारण बनता है।
  • धूम्रपान : अगर सिगरेट, बीड़ी, हुक्का या अन्य किसी भी प्रकार के नशीले तत्व का धूम्रपान आदत में शुमार है तो निश्चित ही मुँह का कैंसर के कारण है। धूम्रपान को इस श्रेणी के मुँह और फेफड़ों के कैंसर का सबसे प्रमुख कारण माना जाता है। तम्बाकू का धुंआ मुँह में कैंसर कोशिकाओं का निर्माण कर उसे कैंसर ऊतक में परिवर्तित कर देता है जिससे मुँह या गर्दन में कैंसर ट्यूमर बन जाती है।
  • मदिरा सेवन : शराब का अत्यधिक सेवन ओरल कैंसर को आमंत्रण देता है। इसलिए शराब पीना प्रमुख रूप से ओरल कैंसर के कारण माना जाता है। आम तौर पर यह भरम है कि शराब के सेवन से ओरल कैंसर नहीं होता।
  • उम्र की दहलीज पार कर लेने पर : उम्र और जीवन के बढ़ते क्रम में इंसान का इम्यून कमजोर होने लगता है। इसलिए बुढ़ापे को मुँह का कैंसर के कारण माना जाता है।
  • पारिवारिक इतिहास : अगर परिवार में पुरानी पीढ़ी को ओरल कैंसर रहा है तो निश्चित ही आने वाली पीढ़ी को यह बीमारी होने की संभावना बानी रहती है।

मुँह का कैंसर के लक्षण और ओरल कैंसर के कारण को जान लेने के तत्पश्चात् ओरल कैंसर का इलाज पर प्रकाश डालना आवश्यक हो जाता है।

मुँह का कैंसर का इलाज (Oral Cancer Treatment In Hindi)

अगर कोई मनुष्य को मुँह के कैंसर से ग्रसित है और वह तृतीय और चतुर्थ चरण में है तो उसका इलाज दवाइयों से संभव नहीं है। दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक ओरल कैंसर से निजात पाने के लिए सर्जरी ही सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण मुँह का कैंसर का इलाज है। लेकिन सभी मरीजों में एक समान सर्जरी नहीं हो सकती। सर्जरी मरीज के ट्यूमर के अनुरूप ही की जाती है इसलिए मुँह का कैंसर का इलाज के अंतर्गत इस लेख में सर्जरी के विभिन्न प्रकारों पर चर्चा करना अनिवार्य हो जाता है :

  • प्राइमरी ट्यूमर सर्जरी : कैंसर के इलाज में गांठ को चीरा मार कर शरीर से अलग करना पारंपरिक इलाज का तरीका है। मुँह का कैंसर का इलाज में ट्यूमर को अलग करने के लिए भी चीरा मारा जाता है।
  • ग्लोसेक्टोमी : अगर कैंसर ट्यूमर के कारण आपकी जीभ प्रभावित हो चुकी है तथा ऊतक विकसित हो कर उन्नत चरण में परिवर्तित हो गया है तो ऐसे में चिकित्सक द्वारा जीभ के प्रभावित क्षेत्र को ही निकाल दिया जाता है। कुछ मामलों में पूरी जीभ को निकाल दिया जाता है।
  • मैन्डीब्युलेक्टोमी : जबड़े के निचले भाग में स्थित कैंसर ट्यूमर को हटान के लिए की जाने वाली सर्जरी।
  • मैक्सिल्लेक्टोमी : जीभ के ऊपर की छत या सतह जो हड्डी नुमा अनुभूति देती है उसमें कैंसर ऊतकों के जन्म लेने या विस्तार करने से उस सतह को सर्जरी के माध्यम से हटा दिया जाता है।
  • सेंटिनल लिम्फ नोड बायोप्सी : अगर मुंह के अतिरिक्त कैंसर ट्यूमर गर्दन के लिम्फ नोड्स में भी फ़ैल चूका है तो इस इलाज की पद्धति का प्रयोग किया जाता है।
  • गर्दन की सर्जरी : अगर कैंसर का ट्यूमर पूरे लिम्फ नोड्स को क्षतिग्रस्त कर चुका है तो ऐसे में सर्जरी के माध्यम से पूरे लिम्फ नोड्स को ही निकाल दिया जाता है।
  • रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी : ऊपर उल्लेखित किसी भी सर्जरी के कारण अगर मरीज अपना अमूल्य अंग खो डेटा है तो इस पद्धति के माध्यम से उसके शरीर में पुनः उस अंग का नीमरान किया जाता है।

लेकिन इन सर्जरी के अतिरिक्त या सर्जरी के साथ अन्य उपचार पद्धतियों को भी विशेषज्ञ चिकित्सा पद्धति में सम्मिलित करते हैं। इसलिए मुँह का कैंसर का इलाज के अंतर्गत अन्य पद्धतियों पर भी चर्चा कर लेना चाहिए : 

  • रेडिएशन थेरेपी : इस पद्धति के अंतर्गत रेडिएशन का प्रयोग कर कैंसर कोशिकाओं को समाप्त कर दिया जाता है।
  • टार्गेटेड थेरेपी : इस पद्धति के अंतर्गत दवाइयों या प्रतिरोधक क्षमता अथवा दोनों का प्रयोग कर कैंसर कोशिकाओं को समाप्त कर दिया जाता है।
  • कीमोथेरेपी : कैंसर को खत्म करने के लिए केवल दवाइयों का सहारा लिया जाता है।
  • इम्यूनोथेरेपी : मरीज के इम्यून सिस्टम को बेहतर कर कैंसर को समाप्त करने की पद्धति। इस पद्धति को बायोलॉजिकल मेथड भी कहते हैं।

मरीज के ट्यूमर की उपस्थिति के आधार पर ओरल कैंसर का इलाज किया जाता है। इसमें सर्जरी प्रमुख रूप से इस्तेमाल में लायी जाती है लेकिन इसके अतिरिक्त या इसके साथ में अन्य पद्धतियों का भी प्रयोग किया जाता है।

मुँह का कैंसर का सर्वाइवल रेट (Oral Cancer Survival Rate In Hindi)

मेडिकल साइंस ने ओरल कैंसर का इलाज संभव तो कर दिया है लेकिन इससे एक और प्रश्न मन में पैदा हो जाता है कि क्या मुँह का कैंसर का सर्वाइवल रेट है। ओरल कैंसर के प्रारम्भिक चरणों में गर लक्षण परिलक्षित होते हियँ तो ऐसे में इसका इलाज होना बहुत आसान है। इलाज होने के पांच साल तक मरीज के जीवित रहने की संभावना बनी रहती है। कई मामलों में मरीज को दस वर्षों का अधिक जीवनदान भी मिला है।

लेकिन ओरल कैंसर का सर्वाइवल रेट इलाज के परिणाम या दुष्प्रभाव(साइड इफेक्ट) के अतिरिक्त मरीज के मानसिक स्थिति पर भी निर्भर करता है। इलाज के बाद मन में भय और चिंता का निवास होना स्वाभाविक है। इसलिए समय-समय पर परामर्श की भी आवयश्कता पड़ सकती है।

ध्यान रहे कि इलाज के बाद ओरल कैंसर का सर्वाइवल रेट मनुष्य के खानपान और अन्य आदतों पर भी निर्भर करता है। इसलिए चिकित्सकों द्वारा यह सलाह दी जाती है कि ओरल कैंसर का सर्वाइवल रेट को बढ़ाने के लिए ओरल कैंसर के कारण को मरीज में आदत के तौर पर विकसित ना होने दे।

मुँह के कैंसर की रोकथाम (Oral Cancer Prevention In Hindi)

मुँह के कैंसर की रोकथाम के लिए कोई विशेष या सटीक उपाय नहीं है अपितु यह सलाह होती है कि ओरल कैंसर के कारण को मरीज में आदत के तौर पर विकसित ना होने दिया जाए। इसलिए किसी भी मरीज को ओरल कैंसर की रोकथाम के लिए सामान्य तौर पर इन परहेज का अनुपालन करना चाहिए :

  • धूम्रपान ना करें
  • तंबाकू और गुटखा का सेवन न करें
  • सुपारी का परहेज करें
  • शराब के अत्यधिक सेवन से बचें
  • प्लास्टिक कप या बर्तन का उपयोग कम से कम करें
  • मसूड़ों या मुँह की बीमारी से बचाव
  • दिन में दो बार ब्रश करें
  • खाना खाने के बाद ठीक से कुल्ला करें
  • दांत में अधिक समय तक खाना न चिपके रहने दें

निष्कर्ष

हमने इस लेख के माध्यम से जाना कि ओरल कैंसर न केवल संसार की सबसे घातक बीमारियों में से एक है अपितु इसके लक्षण और कारणों को पहचान कर इसका संभावित इलाज भी कर सकते हैं। लेकिन अन्य सभी कैंसर की बीमारियों की तरह मुँह का कैंसर का इलाज लोगों के जीवन में वित्तीय संकट ला सकता है। दरअसल उपचार में लगने वाली अथाह धन राशि मध्यम वर्गीय और निर्धन लोगों को इलाज से कोसों दूर कर सकती है। ऐसे में अनेक भारतीय परिवारों के लिए तथा ज़रूरतमंदों के लिए मुँह के कैंसर के उपचार हेतु पैसा इकठ्ठा करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है। ऐसी परिस्थिति में क्राउडफंडिंग एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

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